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मूरख पंचायत ,..सच के सपने -१

हमार देश
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गतांक से आगे ….

“…फिर वहै खजाना दिखाओ ….शिक्षाधर्म का कहता है !…”…………..एक मूरख ने उत्साह से कहा तो पंच बोले …

“…शिक्षा जीवन का नींव आधार है !…..शिक्षा धर्म मानवता की मुख्य शक्ति है ,…. शिक्षा से सद्गुण विकास होता है ,… मानव चरित्र संवारते हुए ज्ञान भरना शिक्षा है ,……शिक्षा मानव विकार रोकने की सफल दवाई है !……नकलची रटंत विद्या की जगह शुभ संस्कार भरते हुए काबिलियत निखारनी चाहिए …..डिगरी के साथ अच्छी सोच पर बेधड़क चलने का आत्मविश्वास मिलना चाहिए !..”

एक महिला अपने अबोध के सर पर हाथ फेरते बोली ……….“….सब बच्चों को बराबर मजबूत शिक्षा मिले !…….जहाँ हम मजदूर का बच्चा पढ़े .. वहीँ अधिकारी व्यापारी नेता का पढ़े !…….फीस की हायतोबा मारामारी नहीं होनी चाहिए !…….”

……..“…मोटी मलाई खाने नहाने धोने वाले मगरमच्छों को दफा करेंगे …..सबको भरपूर दूध घी मिलेगा !.”………एक युवा जोश से बोला तो बीच से एक बुजुर्ग उचके .

“….शिक्षा फीसमुक्त और भरपूर गुणी हो !…शिक्षा तंत्र से शासनी गुलामी हटनी चाहिए !…..शिक्षा का मोल कोई नहीं चुका सकता ,…महतारी बाप समाज अपनी शक्ति इच्छा से विद्यालय को धर्म दक्षिणा देंगे …..सब सहयोग देंगे !….शासन हर सुविधा वेतन देगा !…….. विद्यार्थी जिंदगी भर माँ बाप गुरु देश का सेवक रहेगा !………समाजी सहयोग सम्मान ..और .. शासनी साधन सुरक्षा से हमारे शिक्षक लोग भारत को बहुत सुन्दर बना देंगे !…..”

पंचाधीश मुस्काकर बोली …….. “…स्वामीजी शिक्षा खातिर यही चाहते हैं !……सबको बराबर सुशिक्षा उनका दिया मन्त्र है !…….”

………….“…सबकुछ उनका दिया है मैय्या !….वही सोये भारत को जगाये हैं ,…मिटी उम्मीदें फिर लाये हैं !……………हमारी शिक्षा व्यवस्था बहुतै ऊंचे दर्जे की रही !……..खुद अंग्रेजी इतिहासकार बताए हैं .. हर दो सौ आबादी पर गुरुकुल थे ,…भारत में अनेकों महाविद्यालय विश्वविद्यालय थे ,….सब समाज के सहयोग से चलते थे !…”……………एक युवा ने इतिहास याद किया तो दूसरे ने बात काटी

“..तबहीं कुटिल अंग्रेजी सत्ता ने सबको मिटाया !……तब पूरा भारत शिक्षित संपन्न था ,…..सब अपने अधिकार कर्तव्य का पालन करते थे ,..सब सुखी सम्पन थे !……भारत की दुर्दशा लालची लुटेरों की देन है !…”

“..बिगड़ी बनेगी जरूर भैया !…..हम भारतवासी मिलकर बनायेंगे ,…लेकिन … खैरात में गुणी शिक्षा कैसे मिलेगी !..”…………………..युवा आक्रोश पर प्रौढ़ सांत्वना के साथ शंका आई ,….पीछे बैठा मूरख तमक गया

“…हम खैरात नहीं मांगते ,..न हम खैरातीलाल हैं ,..हम भारत पुत्र हैं !…….हमको हमारा अधिकार चाहिए ,…..सर्वसुलभ शिक्षा व्यवस्था हमारा सुनहरा इतिहास भविष्य है …”

एक और पंच बोले ……….“…अधिकार कर्तव्य से मिलेगा !…. हम अपनी कर्तव्यशील व्यवस्था बनायेंगे ,….निन्यानबे लूटकर इकन्नी खैरात देना लूटतंत्र का काम है !……एक लेकर सौ गुना दाम लौटाना राष्ट्रधर्म है !…..हमको सत्ता से दान खैरात नही अपना हक चाहिए ! .”

“.. फिरौ दान खैरात का मतलब तो है !..”……एक बुजुर्ग महिला ने अलग सुर उठाया तो पंच फिर बोले

“….दान का सनातन महत्व है चाची !……दान भी धरम है ,….भूखे प्राणी को थाली से रोटी देना धरम है ,.. शिक्षा महादान है ,…हमारे पूर्वज युगों से यही करते आये हैं ,…..स्वामीजी दुनिया को यही बांटते हैं ,..एक पाई दान लेकर समाज को सैकड़ों हजारों लाखों गुना लौटाना उनकी महानता है !…”

“..तबहीं लूटतंत्र के ढीले पुर्जवा उनके पिछवा पड़ल बाटे !..”…………….ग्राम मामा ने अपने अंदाज में चुटकी ली तो तनिक हास्य के बीच पंच फिर बोले .

“..गुरु शिक्षक समाज मिलकर उनका काम आगे फैलाएगा ,….दान लेकर दान करना मानवता है !….अनेकों गुरुकुल दान के बल पर मनस्वी तेजस्वी ओजस्वी मानव बनाते हैं ,…… जरूरत पर दान का विशेष महत्व होता है !……दान की ताकत से युग बदलते हैं ,…इहलोक परलोक सुधरता है ,…हम दान के दुलारों की औलादें हैं !……. सर्वकल्याणी दान बहुतै अच्छा होता है !…”

“..लेकिन तमाम पाखंडी दानौ पचा जाते हैं !..”………….बीच से एक उल्टा तीर चला तो एक पंच तनिक आवेश में बोले

“…….. दानदाता में विवेक होना चाहिए …..समझना चाहिए !..किसको दान का जरूरत है ,…कौन मानव जीव कुदरत की सेवा करता है ,..कौन केवल दान लेने खातिर फ़ालतू पहाड़ा पढाता है !……..सही दान से इहलोक परलोक सुधरता है ,…गलत दान से और बिगड़ता है ,.”

“..साधू महात्मा के चोले में शराबी कबाबी अय्याश भी घुसे हैं ,….उनको समझने का तरीका का है !…”………..एक और प्रश्न उठा तो बुद्धिजीवी टाइप वाला मूरख बोला .

“…….जो सच्चा काम करे ,…करवाए .. करना सिखाये तो समझो सच्चा साधू संत !….स्वामीजी जैसा जीवन कर्म संगठन साफ़ पारदर्शी दिव्य हो तो बिन कहे भरसक दान देना चाहिए !…….हमारी भटकती आत्माओं को उन्नतिपथ दिखाने वाले को कुछ न चाहिए …फिरौ सबकुछ देना चाहिए !……… निष्कामी साधू दूर से पहचाने जाते हैं ,…ऊ कुछ नहीं मांगते !…..मतलब भरका भगवान देते हैं .. धन उनके कौनो काम का नहीं !…….. फ़ालतू में मटकने, कृपा बांटने वाले भटकाते हैं ….धर्म चोले में अधर्म फैलाते हैं …..उनसे बहुत दूर रहना चाहिए !.”

“..तमाम लोग भूत भविष्य गपियाकर दान माल गांठते हैं !..उनसे दूर रहना ठीक है !…”………..एक और मत आया तो एक युवती बोली ………

….“…..हमारा गौरवी इतिहास महान दानकथाओं से भरा है ,…महर्षि दधीचि देवताओं को अपनी हड्डी तक दान किये !……दान से गौ गंगा प्रकृति जीव मानव सेवा करने वाले अनेकों हाथ हैं !…..स्वामीजी दान से मानवता की अथाह सेवा करते हैं !……दानवीर भारतपुत्रों से भारतस्वाभिमान जागा है !……..अब हमारा अधिकार हमको जल्दी मिलेगा !….दुःख भागेगा .. सुख आएगा !..”

“…सब अधिकार कर्तव्य से मिलेंगे !…………सुख दुःख एक सिक्का के पहलू नही लगते ,…..ई हमारे दुनिवायी धंधे पर दिव्य व्यापार का एकाधिकार है ,……जन्मजन्मांतर तक खाता चलता है !…….कहीं हम उधार चुकाते हैं ,…कहीं डुबाने वाला कर्जा लेते हैं ,……कहीं जमा खाता चलता है ,…हम दुनियावी काम अच्छे से किये ,…सबको सुख दिए तो सुखे मिलेगा !…….दुःख के बदले सूद्ब्याज समेत दुखे मिलेगा !…”……………..बुजुर्गा ने युवती की बात घुमाई तो मरियल से बाबा आँख बंदकर बोले .

“..मायापति को हर खेल खेलने का पूरा अधिकार है ,..ऊ सबकुछ हमारे भले खातिर करते हैं ,…..ऊ सत्य हैं .. सुन्दर हैं ….. सनातन विजेता हैं !…सबको अपने पापों के लिए उनसे क्षमा मांगनी चाहिए ,….ऊ जरूर क्षमा करेंगे !…..”

“.प्रेम से उनका नाम लो बाबा !……ऊ हमेशा प्रेम से क्षमा करते हैं !……..लेकिन हमारी खातिर उनका सनातन सत्य का है बाबा !…..”……………..बाबा को समर्थन के साथ प्रश्न उठा तो पंच साहब बोले

“… अधिकार और कर्तव्य ठोस सिक्के के दो सनातन पहलू लागें ,… हम कर्तव्यनिष्ठ बने तो अधिकार मिलेगा ..हम उसका महत्व समझेंगे !….. कोई गिरोह कभी अधिकार से अन्धकार नहीं कर सकता ,…सच्ची कर्तव्यनिष्ठा ही धर्मनिष्ठा है ,….वही मानवता है ….वही सब उन्नति का चाबी है ……भूत भविष्य का आंकड़ा यही है !..”………….

एक महिला बोली ………..“……हम मूरख भूत भविष्य का जानें ,…लेकिन इतना जानते हैं ….. आज अच्छा है तो कल अच्छा किये होंगे ,.. आज अच्छा किया तो आज कल अच्छा होगा ,……सब वेद शास्त्र यही कहते हैं !.”

“….लेकिन पच्छिमी कथा कुछ और कहती है ,..तमाम बुद्धिजीवी जनम करम व्यवस्था नहीं मानते !…”…….एक बेसुरी शंका उठी तो वृद्धा माई बोली .

“..जनम करम व्यवस्था न माने वालों की बुद्धि परजीवी है ,….लूटी खूनी मलाई खाकर बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है !……भगवान कृपा हुई तो कभी उनको भी आजादी मिलेगी !….नहीं तो इहलोक परलोक सबलोक में नरकै होगा !.”

सूत्रधार महोदय भी बोले ………..“…पच्छिमी कथा कुछ और नहीं .. यही कहती है !…समय पाबंदी और कर्मठता आधुनिक विकसितों की अच्छाई है ,…..यही वेद का शिक्षा है !…..ऊ मतलब भरकी शिक्षा अपनाते है …हम पूरी गाते हैं !.”

एक और मूरख खड़ा हुआ …………..“…..देश काल परिस्थिति मुताबिक़ कम ज्यादा अच्छाई बुराई सब जगह रही !….वैदिक परकाश में युगों तक भारत दमकता रहा !……कोई पंथ सम्प्रदाय वैदिक शिक्षा से अलग नही है ….काहे से कि ऊ भागवत ज्ञान है !….खुद परमपिता मानवता को राह दिखाए हैं ,…सनातन उत्थानपथ बताये हैं !…….हमारे तपसी ऋषि मुनि सनातन वैदिक मन्त्रों की खोज करते रहे ,..ईशपथ दिखाते रहे …मानवता बाँटते बढ़ाते रहे !….”

दूसरा भी बोला ……….“…..एक समय वैदिक शिक्षा सभ्यता पूरी दुनिया में थी ,……पूरी दुनिया में भगवान शिव गणेश राम सीता दुर्गा पूजे जाते थे ,. उनकी कृपामयी शिक्षा से सब सुखी थे…..संस्कृत मन्त्र बोले जाते थे ,…यज्ञ हवन से सब जगह पवित्रता महकती थी ,….हरीभरी सुन्दर दुनिया योगमयी थी ,….ईशपुत्र मानव देवता सहगामी थे ,..अहंकारी अत्याचारी राक्षस भी कुछ धर्मपालन करते थे !………फिर ज़माना बदला .. काहे से कि बदलाव भगवान का सबसे पक्का नियम है …पतन ही उत्थान का नींव है !…..हर रात नए दिन की खबर देती है !..”

“….अब देवता राक्षस सब इंसान में घुसे हैं ,……मानव कर्तव्य समझना अपनाना सच्चा धरम है …..सब सुख यही में हैं !..”…………..पंचाधीश ने संक्षेप में निपटाया तो मुंह छुपाकर एक युवा ने आवाज बुलंद की…

“….. फिर पीछे लटककर भटक गए ,.. शिक्षा पर बतियाओ !…”……

एक मूरख खड़ा होकर बोला ……………“…मानवता उत्थान खातिर वैदिक शिक्षा व्यवस्था को नए हिसाब से चलाना चाहिए !…..गुरुकुली शिक्षा सबसे उत्तम है !……… पांचवीं आठवीं तक स्कूल हर गली मोहल्ले में होना चाहिए……….हर बच्चा जरूर पढ़े !……….. छह से बारह तक गुरुकुल होने चाहिए ……कोई चाहे तो नौंवी में जाए !…..बच्चे दिन रात वहीँ रहें !…. पढाए सिखाये जांय !….काबिल उन्नत इंसान गढे जांय !……आगे की पढ़ाई खातिर तहसीलवार महाविद्यालय जिलावार विश्वविद्यालय होने चाहिए !…….किसी को शिक्षा में कतई कोई रुकावट न आये …..भरसक सुशिक्षा सबका अधिकार है !….सुशिक्षा से ही राष्ट्र मानव उन्नतिपथ पाता है !.”

“..भैय्या स्कूल कालेज तमाम खुले हैं ….उनसे का मिलता है !……हमारे बच्चे नक़ल आवारगी लुच्चई अय्याशी नशा फरेब चोरी डाका अपराध सीखते हैं !…”………………एक महिला ने सवाल उठाया तो बुजुर्ग समर्थन में बोले .

“…केवल खुलने से का मिलेगा !…..तमाम साल से संसदौ खुलती है ,….लेकिन होता का है …….”………………क्रमशः !

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