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मूरख पंचाय ,..धरम चेतना -१

हमार देश
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कुछ देर बाद एक मूरख खड़ा होकर बोला !…… “…… सबको बनाने वाला भगवान !…..चलाने वाला भगवान !……सबकुछ देने वाला भगवान !……….”………………..फिर वो चुप हो गया ,…..सब ताकने लगे …..कोई कुछ नहीं बोला …. वो फिर शरमाते हुए बोला ……….. “…..….हमार कहना है ,…धरती पर सबके पोषण खातिर सब साधन दिया !…..धरती सूरज चंदा तारे .. पहाड़ समुद्र पठार मैदान खेत जंगल .. नदी रेगिस्तान बादल बरखा ..हवा पानी अन्न फल दवा दारू सबकुछ दिया !……… प्रभु ने का सबरंगी दुनिया बनायी !……फिर लोभी पापी अधूरा इंसान काहे बनाया ……”

“…..ई मायापति का मजेदार सधा खेल है …..उनका काम अधूरा नहीं होता …पूरा करने खातिर इंसान बनाया !.. धरम पर चलते हुए दो सौ करोड़ साल से धरती को नुक्सान नहीं हुआ !.…अधर्मी राज हजार साल में बर्बादी की कगार पर ले आया !…....सबसे बड़े धर्मपालक खुद परमेश्वर हैं !………खरबों मील के अनेकों ब्रम्हांड शून्य में चलाते हैं !…… ईशपुत्र इंसान अनंत विस्तार में सबसे बड़ा साझीदार है !……वो खुद सबमें हैं !……..औलाद बाप जैसी ताकतवर होती है !……. गिरने उठने वाले दोनों रास्ते हैं !….उन्होंने मानवता उठाने वाला रास्ता बताया है ,……साक्षात अवतार लेकर खुद चलके दिखाया है !…….उठते रहे तो बहुतै अच्छा !……….गिरे तो दयानिधान फिर पाठ पढ़ाते हैं ….जागते जगाते उठाते हैं !…..मानवता को फिर प्रकाश देते हैं !….

“… तुम लोग फिर बासी बात शुरू कर दिए !…..रोज बासी ठूंसते हो का !…”……….सूत्रधार ने जरा गुस्से में कटाक्ष किया तो पहला मूरख जोर से बोला ..

“…हमार सवाल ताजा है साहेब !….”

“…तो हाजिर करो !….काहे मील भर लंबी कहानी गढ़ते हो ! …” …………दूसरे ने भी पहले को खींचा तो वो बोला

“….इंसान दुनिया का मालिक है या नौकर !….”…………पहले ने सवाल पूंछा तो एक महिला ने व्यंग्य किया

“….का लजीज गरम सवाल है लल्लू !….बताओ भाई कोई !..”

“…..परमपिता के दास बने तो हम धरती के मालिक हैं !…..दासता तोड़े की चाहत अपराधी बनाती है !….बर्बादी लाती है !…”………..एक बुजुर्ग ने उत्तर दिया तो मूरख खोपडियां सहमति में हिली …..

“…एक और खबर है भाई !……उन्नाव के शोभन संतजी ने एक किले में सैकड़ों टन सोना दबा बताया है !….कहते हैं की राजा राव रामबख्श ने उनको सपने में बताया !……लुटेरी सरकारें खोदने खातिर जुट गयी हैं !..”…….एक मूरख ने और गरम खबर सुनाई तो दूसरा बोला .

“..राजा पहले स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे !….सपने में आये हैं तो संत साहेब को जरूर बताए होंगे कि लुटेरों से भारत आजाद करना बाकी है ..!………….गद्दारों के हाथ हमारे पूर्वजों की कमाई नहीं लगना चाहिए !……..देश खाने वाले गद्दार विकास के नाम पर सब खजाना खा जायेंगे !……”

तीसरा मूरख भी बोला ………… “…..सब किलों में हमारा खजाना दबा था !…….पुराने संतों महंतों और काली सत्ता को जानकारी हो सकती है !…… संत भी नाम ख्याति खातिर शातिर दलालों के मोहरे बन सकते हैं !……..अगर राजा साहेब से कौनो रूप में मुलाक़ात हुई होगी .. तो ..संत शोभन सरकार भारतद्रोही राजतंत्र के खिलाफ खड़े होंगे !…अंग्रेजी लूटतंत्र को दफनाने खातिर बुजुर्ग हाथ कुदाल थामेंगे !………हमारे पूर्वजों का खजाना भारत उत्थान में लगेगा !…..”

“..ठण्ड रखो !…..धरमी इंसान धरम पहचानकर धरम ही करेगा भाई !…”………….एक बुजुर्ग ने मामला निपटाया तो फिर पुराना सवाल उठा

“…..तो धरम का चीज है !…..ऊ चेतना कैसे मिले !..”………

“….धरम को भगवान से करारनामा मानो बुद्धू !……. चेतना करारनामा मानने ..उसपर चलाने वाली ऊर्जा है !.ई ऊर्जा भी परमात्मा का एक रुप है !…”…..एक पंच ने कहा तो पीछे से एक बुजुर्ग बोले

“….. भैय्या सबकुछ उनका रचा दिया है !….हमको नाम जपते हुए ,….उनका ध्यान करते हुए ..उनके रास्ते पर चलना है !..”………

………“….बड़ी जल्दी समझे बाबा !…….अब करारनामे पर लौटने दो !……..धरम सब मर्ज का इलाज है तो जल्दी पेश करो माता !……….बहुत भूख लगी है !…..”….. एक युवा की व्यंग्य भरी व्यग्रता छलकी …तो एक बुजुर्ग मासूमियत से बोले .

“…मानव धरम इंसानी कर्मों का विधि तरीका है !…….मानवता उत्थान का रास्ता है ,….सर्वव्यापी सर्वस्वामी से मिलने की राह है !…….”

“..ठीक है बाबा ….आगे तो बढ़ो !…”………….एक युवती सिर खुजाकर बोली तो पंचाधीश ने कहा

“… धरम का पहला पायदान समता है …..यहै आदि सत्य है ……सब इंसान बराबर हैं !……सब एकै मूलबीज से हैं !……सबके अंदर भी वही हैं !!…”

एक मूरख ने विस्मय से काटा …………“..माने हिन्दू मुसलमान सिक्ख ईसाई जैन यहूदी बौद्ध शिया सुन्नी मसीह आदमी औरत सब बराबर है !..”

“..बिलकुल !…”……………पंचाधीश ने उत्तर दिया

“…अगड़ा पिछड़ा दलित बाभन ठाकुर सूद कुर्मी यादव नामधारी सहजधारी सतनामी रामनामी रामगढिया रामदासिया दलित जाट मुसहर जाटव अल्पसंखी बहुसंखी सब हैं !…”…………युवा ने फिर लंबी सांस खींची तो एक महिला बोली

“…काहे नहीं !…भगवान राम से सीखो !….उनका दोस्ती राजाओं भीलों वानरों सबसे थी !… शबरी के जूठे बेर प्रेम से खाए !….आपसी प्रेम समता सीढ़ी का बांस है !..”

………….“..फिर पंजाबी नेपाली नागा तमिल मलयाली बंगाली अफगानी अरबी तुर्क अमरीकी रूसी जर्मन चीनी पाकिस्तानी काले गोरे पीले लंबे ठिगने बौने भी एक हैं !……”…………युवा का विस्मय हांफने लगा तो पंचाधीश दृढ स्वर में बोली

“.मानवता के जितने खंड हो सकते हैं !…..ऊ सब अंदर से एक हैं !…सबकी पहली जड़ भगवान है !…सबकी आत्मा भगवान है !…….वही पर शरीर रूप रंग जाति मजहब देश प्रदेश का मुलम्मा चढ़ता है !……जनम से हर इंसान बराबर हैं !….जाति सम्प्रदाय क्षेत्र रूप रंग भेद अधर्म है !..”……………..पंचाधीश ने शांत लहजे में उत्तर दिया ……एक बुजुर्ग ने पहले सहमति जताई ,..

“..काहे न होंगे !…….सब के निन्यानबे गुणसूत्र एक जैसे हैं ,…केवल एक पैसा फरक है !…”………….बाकी भी सहमत दिखे

“…लेकिन फरक तो है न !…”……………….एक बुजुर्ग महिला ने असंतोष दिखाया तो युवा बोला

“.. निन्यानबे भाग सोना में एक भाग पीतल ताम्बा लोहा जस्ता होता है !…. का कहोगी दादी ,….सोना कि पीतल ताम्बा !..”

“..अरे चवन्नी सोना हो ,.. तो सोना ही बोलेंगे !….”…………बुजुर्गा के उत्तर पर करीबी बुजुर्ग बोले

“..फिर सब सोना हैं !…..सब मानव भगवान की औलाद हैं !..काया गढे खातिर माँ बाप के गुणसूत्र मिलते हैं !…लालन पालन खातिर अलग जमीन आबोहवा मिलती है ,…..ऊ भी भगवान की कृपा से !…”

बीच से आवाज उठी …….“..ठीक ……..सब एक जैसे हैं तो सबका हार बनाकर लाकर में जमा करो !..”

“..इंसान और सोना में फरक है !……..सोना महज अमानत है ,…दिखावा है !……इंसान इंसान के काम आता है !…..”………………..एक युवती ने कटाक्ष किया तो दादी ने सवाल उठाया

“…फिरौ इंसान में बंटवारा तो होगा !……सबके घर रसोई अलग होते हैं..! …….खुद ईश्वर के तमाम रूप में भेद है ,……मानव में भेद तो होगा !….”

एक पंच बोले …………..“..बिलकुल है !….एक पेड़ की शाखा पत्ती फल फूल अलग होते हैं ,…..लेकिन कम से कम दूरी होना चाहिए !……आहार विहार में फरक है !……….मांसभक्षी शाकाहारी एक पंगत में नहीं खा सकते !……सद्कर्मी गुरु को शराबी के बाजू बैठना गंवारा न होगा !…लेकिन ..आज शराबी भी शिक्षक बने हैं !……..ज्ञानकर्मी रक्षाकर्मी सफाईकर्मी के काम में भेद है ,…दाम में भेद है !…..लेकिन सुविधा सम्मान अधिकार शिक्षा इलाज न्याय में फर्क नहीं होना चाहिए !…..किसी को दूसरे की कीमत पर सुविधा नहीं होना चाहिए !……..सफाईकर्मी शिक्षा अपनाकर ज्ञानकर्मी बनना चाहिए !…..नालायक ज्ञानकर्मी को चपरासी भी न होना चाहिए !……परिश्रम साधना से सबको ऊंची जीविका जीवन अपनाने खातिर पुरुषार्थ करना चाहिए !……….सब इंसान सदज्ञान सद्कर्म से पंडित ,….पराक्रम बलिदान से क्षत्रिय ,…बुद्धि व्यापार से वैश्य और मेहनत परिश्रम से सूद हैं !…..बढ़ी ताकत मुख्य वर्ण बनी !……….वर्ण बताने लिखने बोलने का जरूरत नहीं !……सब सम्मानित हैं !… सबमें सबकुछ हैं !………इंसानियत खातिर सब कर्म सब इंसान बराबर जरूरी हैं !……..किसी का कम ज्यादा सम्मान नहीं !..कम ज्यादा अधिकार नहीं !…..भगवान के सामने वही बड़ा जिसने अपना काम उनका ध्यान रखते हुए किया !….पुजारी मंदिर में चढावा देखे और मजदूर फावड़े में भगवान तो कौन बड़ा हुआ …..मजदूर !!..”…………….पंच की लंबी बात पर एकमत सहमति उठी

“..हाँ !.हाँ ..”……..……………क्रमशः !

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