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“…वाह !……मूरख पंचायत का सूत्रधार पूंछे मूरख कौन है !……………मूरखों भरी दुनिया में हम अव्वल मूरख हैं !…….”……………..एक मूरख ने आश्चर्य मिश्रित व्यंग्य कसते हुए अपना पेट ठोंका तो वो अचकचा गए !……… पंचायत को पांच मिनट के लिए मुल्तवी कर दिया ……..सब पानी पेशाब की जरूरत पूरी करने लगे ,..सूत्रधार पूरी बात समझने मेरे पास आ गए ………………कुछ देर में सब फिर जम गए …..सूत्रधार बोले …
“…भाई कुछ पढेलिखे देशभक्त कम्पूटरी पत्रिका शुरू करने वाले हैं !…कलमी इन्कलाब के प्रयास में हमको भी जगह मिल सकती है !………संचालक खातिर सवाल आये हैं !…..ई सवाल ज्यादा जमता है …..मूरख कौन है !..”
पंच मंडली कुछ गंभीर हो गयी ,….एक बोले ……… “…..अव्वल बात.. मूरखों का संचालक कोई नहीं है !……परमपिता की डोर के हम कठपुतली हैं !…….मक्खीमार लोग फालतू वाले खबरीलाल हैं ! ……..”…………………..सबके साथ मुझे भी हंसी आ गयी !…..
.एक मूरख भरपूर प्यार से बोला …………“..सवाल जमा तो उत्तर ढूंढो भाई !…”……………
दूसरा बोला…………….“…हमारे हिसाब से सब मूरख हैं ,….ढूंढो उनको जो नहीं हैं !..”……………..
“..सब मूरख माने !…”…………..एक शंका और आई ….उत्तर मिला
“..मूरखों का तमाम किस्म हैं भाई !……कोई लुटता है .. कोई लूटता है .. कोई लुटाता है !……….मूरख तो सभी हैं !…”………..
“..माने सब भारतवासी मूरख हैं !..”………….शंका यकीन में बदलने लगी
पहला फिर बोला …………“….केवल भारतवासी नहीं दुनियावासी कहो भाई !…चहुंओर अँधेरा छाया है !.. भारत दुनिया बचाने खातिर जुटे भारतपुत्र मूरख नहीं सच्चे ज्ञानी हैं !…… ज्ञान पर चले वाला ज्ञानी …..बाकी मूरख हैं !!..”
“..हमारे स्वामीजी महाज्ञानी हैं !……..दिनरात मानवता के उत्थान खातिर जुटे रहते हैं !……महानतम लक्ष्य खातिर जिंदगी सौंप दिया !…”………….दूसरे ने हाथ जोड़कर कहा तो पहले ने भी हाथ जोड़े
“… सही कहा योगेस !……स्वामीजी महाज्ञानी महापुरुष हैं !……..ऊ अवतारी राष्ट्रऋषि हैं !…..लाखों करोड़ों को ज्ञानी बनाया है ,…..सब मूरखों को ज्ञानी बनाने आये हैं !..”……………..
“.. मूरख कौन है भाई .. साफ़ साफ़ बताओ !……”…………एक महिला उकताई तो पंच साहब बोले
“..बाकी सब मूरख हैं ,….चोर डाकू भ्रष्ट ठग निकम्मा … आलसी नशेड़ी अय्याश अपराधी सब मूरख हैं !…..चुपचाप अपराध पतन देखने सहने वाला मूरख है !……….कामी क्रोधी लोभी अहंकारी मूरख है !….इर्ष्यालु मूरख है …..झूठा छली कपटी मूरख !……सिगरेटिया .. खैनी गुटखा बीड़ीबाज मूरख है !……..अपनी पतंग उड़ाने खातिर दूसरों का डोर लेने वाला मूरख है !……चापलूसी करने और कराने वाला मूरख है !…….सबको मूरख बनाने वाला मूरख है !…….सबसे मूरख बनने वाला मूरख है !………सबको मूरख समझने वाला मूरख है !….खुद को मूरख समझने वाला भी मूरख है ,……… कम ज्यादा मूरखता सबमें है !………. डूब जाने वाला राक्षस है !…….पार जाने वाला महाज्ञानी देवता है !…”………………..एक पंच ने मूरखता को विस्तार दिया तो एक युवा बोला
“.भगवाने भला करें !…..ई हिसाब से हमारे अंदर मूरखता के तमाम गुण हैं !…..”
“..फिर इलाजौ बताते चलो भाई !….”……………पीछे से एक वृद्ध बोले तो उत्तर मिला
“… सुचेतना ही इलाज लागे भाई !……”…………..
“…ऊ कहाँ ढूंढें !…..हमको शकल सूरत भी न पता …..ठिकाना कैसे ढूँढेंगे !..”………….घोर समस्या उठी तो जबाब टपका
“…नहीं पता तो ढूंढो !…….का गैय्या पता देकर खोती है !…….जंगल में भटकना पड़ता है !….”
एक गौपालक बोला …….“…कभी अपने आपौ लौटती है !…..भगवान का कृपा से चेतना भी लौटेगी !….”
……..“…चेतना खोयी नहीं सोयी है भैय्या !…..ऊ जंगल पहाड़ में नहीं ..हमारे अंदर है !….”……..एक पंच से झिड़की मिली तो तुरंत अगला सवाल आया ..
“…फिर जगाने का फार्मूला बताओ !….”
काफी देर से मौन एक बुजुर्ग बोले ………“..जगाने का तमाम फार्मूला हैं ,…..प्यार से जगाने खातिर दिल से योग प्राणायाम करो !…..प्राण साधो ……मन भक्ति में डुबाओ !…….नाम जपो ….. विनती करो !…..गाना भजन गाओ !…….गुदगुदी करो !…..हिलाओ डुलाओ !……..पानी डालो !… नहीं तो कसकर लात जमाओ !….आखिर में भगवान जगाएंगे ही !…..महामाई दया जरूर करती हैं !.”
दूसरे बुजुर्ग भी बोल उठे ……….“…बेकार बात लंबी न खींचो !…. ठोस तरकीब बताओ !……राष्ट्र चेतना कैसे जागे !….समाज चेतना कैसे जागे !……युवा जागरण कैसे हो !..नारी जागृति कैसे आये !…….घनी अचेतना कैसे टूटे !…”
“…अचेतना मिटाने खातिर स्वामीजी सालों से जुटे हैं ,… सवाल पूंछने वाले का यही परयास है !…..भारतमित्र मंच कलमी इन्कलाब खातिर है !..”…………..सूत्रधार ने पुनः भारतमित्र मंच की याद दिलाई तो पंचाधीश बोली .
“…भारत उत्थान खातिर हर प्रयास को दिल से परनाम है !…..सबको हमारी बहुत बहुत शुभकामना है ….सच्चे प्रयास को एकदिन सफलता जरूर मिलेगी !.. अच्छे काम में बाहरी रुकावट पड़ती हैं ,…. हम खुद अपनी चाहत के दुश्मन बनते हैं….. स्वार्थ अहंकार रुकावट डालते है !…… उनसे निराश नहीं होना चाहिए !……. ईश्वरीय ताकत सच्चाई को आगे ही बढ़ाती है !……देवी देवता इंसान के साथ राक्षस भी राह दिखाते हैं ,…..रास्ते के कंकड पत्थर कौव्वा बिल्ली तक रास्ता बताते हैं !…….अहंकारहीन कामयाबी हमेशा पूरी होगी !….कभी स्वार्थ अहंकार फंसे तो तुरंत निकलना होगा !…… भारतमित्र मंच को हमारा प्रणाम है !….बार बार प्रणाम है !…….. पूरी दुनिया को फिर भारतमित्र बनना चाहिए !…पापमुक्त दुनिया होनी चाहिए…..!………हमको सबसे जरूरी और सबकी जड़ आत्मचेतना लगती है !……वही से सब टहनी पत्ता का विकास होगा !….स्वामीजी सबको वही रास्ता दिखाते हैं ! …सबको वही देखना चाहिए !……..”
“…..खबरी खबर पहुंचा देगा माता !…….तुम धरम वाला किस्सा बताओ !……का धरम चेतना में कौनो रिश्ता है !..”……..एक युवा ने व्यंग्य से सवाल किया तो पंचाधीश फिर बोली
“.. औरत मर्द जैसा गहरा रिश्ता है !…….चेतना से धरम चलता है ,…..धरम ही चेतना सही रखता है !…..”
“..लेकिन कौनो चेतना को गहरी याद बताया था !……”………..एक और सवाल उठा एक पंच बोले .
“..सही बताया था !….सबसे गहरी याद का है !…..सब भगवान की औलाद हैं ,..उनकी बनाई सुन्दर संपन्न दुनिया में आये हैं ,…..उनसे बिछडकर उनकी रची माया में उन्नति करते हुए फिर भगवान तक जाना है !…यही आत्मचेतना है !……आत्मचेतना सब मूरखता का नाश करती है !..वही भटके इंसानों को धर्ममार्ग पर लाती है !……”….
“..और चेतना का दुश्मन भी होगा !…”…………………….पीछे से सवाल आया तो पंच खड़े हो गए
“…सर्वव्यापी चेतना का दुश्मन बराबर व्यापी अहंकार है !………मैं लल्लू कल्लू खिलावन वसीम जोसफ !…मैं सरला मीरा वहीदा !….मैं हिन्दू मुसलमान सिक्ख ईसाई !….मैं बंगाली पंजाबी मराठी !…..मैं पंडित मुल्ला ठाकुर बनिया !……मैं डाक्टर अधिकारी ठेकेदार नेता गरीब किसान !…….मैं अमीर मैं गरीब !…..मैं लंबा छोटा ..मैं तेज धीमा !……मैं अच्छा बुरा ज्ञानी मूरख !…..मैं आगे मैं पीछे !……मैं ऊपर मैं नीचे !..मैं सुन्दर मैं बदसूरत !………मैं मैं मैं मैं में मैं मानवता को बकरी की तरह कटवाता है !…..अहंकार मानवता खातिर भीषण बारूद है !…लालची शैतान वही बारूद में तीली लगाते हैं !..”
“..फिर का होना चाहिए !…”…………अगला सवाल हाजिर हुआ …दूसरे बोले पंच
“..आत्मचेतना जागनी चाहिए !…….फिर अहंकार स्वाभिमानी चेतना में बदल जाएगा !…आत्मघाती बारूद मानवता रक्षक हथियार बन जाएगा !…..सर्वत्र भगवत्ता होगी !….फिर होगा ….हम ईश्वरपुत्र प्रकृतिपुत्र !..हम धरतीपुत्र भारतपुत्र राष्ट्रपुत्र !…….हम शक्तिशाली कल्याणकारी न्यायकारी धर्मधारी !..”
“.. तो भाई !….मानव का धरम भी बताओ !…..चेतना जोर से कैसे बढ़े ……भारी गिरावट महान उठान में बदलना चाहिए !…”……..एक बुजुर्ग ने पुरानी बात दोहराई .तो उनके पीछे बैठी दादी बोली .
“..मानव का धरम मानव का हित करना है !……….मानव का हित मानवता बढ़ाने में है !……..मानवता पापमुक्त दुनिया में बढती है !…….सच्चा प्रेम मानवता की तलाश है !…. ईश्वर का रास्ता है !…”
“……लेकिन सच्चा प्रेम कहाँ मिलेगा दादी !….”……………एक युवती के भावुक सवाल पर पंचायत में अजब लहर दिखी …….दादी ने ही जबाब दिया .
“..ईश्वर का सच्चा प्रेम सबजगह फैला है …हम वही ढूँढने में व्याकुल रहते हैं !…अँधेरे में पाप को सुख समझकर उसे प्रेम का नाटक करते हैं ,..नतीजे में दुःख मिलता है !………सच्चे प्रेम खातिर हमको खुद से प्रेम करना होगा !….सबसे प्रेम करना होगा !……केवल दिखाने खातिर नहीं ,…अंदर से करना होगा !……..बीमार बच्चे को माँ रोकर कड़वी दवा पिलाती है …….ई सच्चा प्रेम है …… कोई गलत करे तो रोकना मानव का धरम है !……”
“…लेकिन दुनियावी गचडम पचडम में हम पाप पुण्य कैसे समझें !…..”…………….एक युवा ने पूंछा ……
“…चेतना जागी तो समझने का जरूरतै नहीं !..…”……..पंच ने संक्षिप्त उत्तर दिया तो बुद्धिजीवी भाई ने सवाल किया
“..मूरखता की तरह चेतना भी तमाम किसिम के होती होगी !….”
उत्तर साथी से मिला ……………“..जरूर !…..अचेतना ..ऊपरी चेतना !…..भीतरी चेतना !..गहरी चेतना …कुचेतना … सुचेतना !……आदि चेतना आदि आदि !…”
एक पंच बोले ……………“…आदि चेतना सद्चेतना चेतन जगत का मूल है !……..इससे जुड़े तो भगवान से जुड़े …….ये जागी भगवान जागे !….फिर हिसाब की जरूरत नहीं ……पिछला अगला सब पाप मिट जाएगा !….”
“..लेकिन जगाने में बहुत मेहनत समय लगता होगा भाई !….”………..एक अधेड़ मूरख ने प्रश्न किया तो पंच ने समझाया
“..भगवान से मिलन खातिर मेहनत समय का परवाह किया तो मिलन का चाहतै झूठी है !…. दिल में सच्ची पुकार उठेगी तो ऊ जल्दी मिलेंगे !…”
“…फिरौ अगर न जागी तो !..”………….मूरख की शंका गहन हुई
“….. तो सीधा विश्वास करो !…सच को मान लो ….आखिर में मानना होगा !…..परमपिता की बनायी दुनिया में हमसे किसी इंसान जीव वनस्पति धरती को दुःख न मिले .. किसी का नुक्सान न हो …..तो पाप नहीं होगा !….अहिंसा परमो धर्मः !…..सबको सुख मिले सबका लाभ हो तो पुण्य भण्डार मिला समझो !……”
“..ई तो मुश्किल है !……….भारत सपूतों से लुटेरे शैतानों का कितना नुक्सान होगा !…..जेल में रोज मातम मनाएंगे !……फांसी पर लटकने वालों को कम दुःख होगा !.”………………एक युवा शंका आई दूसरा युवा बोला
“…ई मुश्किल नहीं सरल काम है !……मानवता को महान दुःख भयानक त्रास देने वालों पर दया भी पाप है ,…साजिशी शैतानों को सजा देना जरूरी है !…….अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च !….माने अहिंसा परम धरम है और धर्म रक्षा खातिर हिंसा भी अहिंसा जितनी पवित्र है !….अन्यायी अत्याचारी को दंड अहिंसा है ! ..”
“..भैय्या जी !…..खिचड़ी में स्वाद कम आता है ! ……एक एक बात करो !..”……….एक महिला ने ताना मारा तो सूत्रधार ने भटकते मूरखों को फिर समझाया !………अब हम मूरखता चेतना पाप पुण्य प्यार मोहबत छोड़कर पहले मानव धर्म का बात करेंगे ….वही में सबकुछ आता है !….पंचायत शांत हो गयी !…………….क्रमशः
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