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मूरखपंचायत ,………..तर्पण !

हमार देश
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आदरणीय मित्रों ,.बहनों एवं गुरुजनों ,..सादर प्रणाम ……… मूरख पंचायत स्थल पर सहकारी श्राद्ध आयोजित हुई ,……..आँखों देखे हाल में आपका हादिक स्वागत है ,..देरी के लिए ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ !………

… पूर्वजों से प्रेम हो या पीछे न रहने की होड़ !……मूरख लोग परिवार सहित पूरे मनोयोग से जुटे रहे … कुछ लोग तमाशबीन पुलिस की तरह मौका मुआइना भी करते मिले !…..आमने सामने दो कतारों में टाटपट्टी जाजिम बिछाई गयी ,…..बीच की जगह में कुछ जगह अगियारी लगाई गयी ,….. मूरख लोग घर से पूड़ी खीर आदि लेकर आये ,…बीच में बड़ी अगियारी के सामने पंडित जी विराजे !….बाकी सब भी बैठ गए ,..कम जगह के कारण बच्चों को खड़े होना पड़ा !…….पंडित जी ने दो पूडियों को तोड़ा .. टुकड़ों पर खीर शक्कर मिलाकर रख लिया ,….बाकियों ने उनका अनुसरण किया !…….फिर मन्त्र बोलते हुए आग के चारों तरफ जल डाला !…यह अग्निदेव का आवाहन पूजन जैसा लगा !…….सबने क्रिया दोहराई !……अब पंडित जी बोले …

“…सब लोग अपने महतारी बाप दादा दादी नाना नानी और ज्ञात अज्ञात सब गुजरे पूर्वजों का ध्यान करके खीर पूड़ी होम करो !…….मन में श्रद्धाभाव से विनती करो कि हम आपके कर्जदार हैं ,…..आप जहाँ भी हैं ,…आपकी आत्मतृप्ति हो !….आप संतुष्ट हों !….”

“..लेकिन कहाँ होंगे !….बिना पता कहाँ चिट्ठी डालें पंडित भैय्या !..”……एक मूरख का सवाल आया तो पंडित जी समझाने लगे .

“..आत्मा परमात्मा का गाँव जिला मोहल्ला कोई न जाने बदलू !……..लेकिन ऊ सर्वत्र हैं …सबका हाल जानते हैं ,….परलौकिक दुनिया भाव की भूखी है !……भाव भरी विनती पर खम्भे से भगवान निकलते हैं !…..हम जितना अंदर से बोलेंगे ..ऊ उतना साफ़ सुनेंगे !…आत्मा परमात्मा का सीधा सम्बन्ध है !..”

“..बात ठीक है भैय्या ,..लेकिन कुछ जानकारी होना जरूरी है ..ई खातिर पूंछे !……कोई पूर्वज स्वर्ग में होगा ,…कोई नर्क में गिरा होगा ,….कोई धरती पर होगा ,…..आग में डालने से पूड़ी शक्कर कैसे लेंगे !…….उनको न मिला तो इत्ती मंहगाई सब बेकार होगा !.”…………बदलू ने अपनी शंका विस्तार से रखी तो एक महिला बोली .

“… मंहगाई खातिर पुरखों का का कसूर !………..हमको लूटैं खांय वाले नेता अफसर कंपनी चाक चौबंद हैं !……भूखे मरें हम और हमारे पुरखे !..”……

“.. आज लुटेरों की सराध न करो !!……बदलू की शंका निपटाओ पंडित !..”………….एक बुजुर्ग ने महिला को डपटते हुए पंडितजी को आदेश दिया तो वो फिर समझाऊ अंदाज में बोले ..

“..भाई .. आग देवताओं का मुंह है !…..देवता इंसान राक्षस सबका आत्मा एकै है !……आत्मा बहुतै महीन बहुतै छोटा होता है …कौनो सूक्ष्मदर्शी दूरबीन से नहीं देख सकते !……”

“..चाचा विज्ञान भूगोल हमको पढ़ने दो ,…तुम बापू का जबाब दो !…”……..बदलू के लड़के ने पंडित जी को टोका तो बदलू आगबबूला हो गया .

“..बीच में काहे कूदा हरामखोर !…..यहै विज्ञान पढते हो ,…..सभ्यता संस्कार छुवा तक नहीं !…. तुम जीते जी हमार सराध करोगे !.”

बच्चा सहम गया तो आगे बैठे बुजुर्ग बोले …………….. “…ऊको सभ्यता संस्कार कौन देगा बदलू !…तुम दिन भर तू तड़ाक गाली गलौच करते हो !….सरकारी मास्टर काहे परवाह करेंगे ,… गुलाम सरकार को गिरे हिन्दुस्तानी चाहिए !..” ………………..दस सेकेण्ड के लिए सब चुप हो गए ,……एक और मूरख बोला

“..अरे तुम बताओ पंडित भैय्या !…..अगियारी की आंच फुल हो गयी …”

पंडित जी फिर शुरू हुए …………….. “…..आत्मा को हवा से खुराक मिलती है ,…वहै प्राण है ,….प्राण ब्रम्ह हैं ,..वही सबको पालते हैं !…. सामान आग में जलकर हवा में मिलता है ,……अर्पण का सूक्ष्म रूप सूक्ष्म भावना से जुडकर सूक्ष्म आत्मा तक पहुँचता है ,…… पता ठिकाना भावना चेतना ढूंढ लेती है ,….हमारे पुरखों का अदृश्य चेतना हमारे बीच भी रहती होगी !….देवी देवता परमेश्वर सब रहते हैं ,……भाव से बुलाने पर करीब आते हैं !…अग्नि वायु हमारी श्राद्ध हवन उनको पहुंचाते हैं !…”

“..और जो यहाँ नहीं हैं उनको कैसे !…माने स्वर्ग नर्क वालों को कैसे मिलता होगा …” …..एक और शंका आई

..पंडितजी जरा गुस्से में बोले ……… “…..पितरपक्ष में ऊ वायुमंडल में आते होंगे !…….वैसे भी भावना प्रार्थना को वायुमंडल का जरूरत नहीं !………चलो पहले हवन करो फिर बताएँगे !….”

बदलू पूरा संतुष्ट नहीं दिखे लेकिन सब होम के लिए तैयार हो गए ,…….पंडित जी फिर बोले …

“…..मन में भावना करो ….. आदरणीय पूर्वजों !…..हमारा श्रद्धा प्रणाम स्वीकार करो !….आपके तमाम पुरुषार्थ खातिर हम हमेशा आपके कृतज्ञ हैं ,…..हमको आशीर्वाद दो कि हम भी अपनी संतति को अच्छा सुखी शांत भविष्य देकर जाएं !…”

“..का देकर जायेंगे ,..धरती आकाश हवा पानी जमीन जंगल सबकुछ मिटाते हैं !……लुटेरी व्यवस्था में ..”…….एक मूरख फिर फटा तो पंडितजी ने इशारे से चुप कराया …..फिर बोले …..

“… प्रार्थना करो …… स्वर्ग वालों के पुण्य कमजोर न हों !…ऊ हमेशा भगवान में लीन रहें !……..नर्कवाले पूर्वजों के पाप जल्दी कटें !….परमेश्वर उनको क्षमा करें !……. दुनिया में फिर आये पूर्वज शुभगामी बनें !….सबके सद्कर्म बढ़ें ,…..सबको सुख शान्ति मिले !…. पाप करने का मौका किसी को न मिले !…..सब कलुष काटते हुए हम भगवान से जुड़ें !!…..”

सब पंडितजी को ध्यान से सुनते रहे ,..कुछ आँखें भाव से बंद हो गयी !……..पंडित जी ने टोका …… “… होम करो सबलोग !…. पूर्वजों को याद करते हुए करो !……सद्भावना प्रार्थना करते हुए अन्न का आहुति डालो !…..अन्न भी ब्रम्ह है !…”

सब मूरख शांत भाव से खीर पूड़ी शक्कर मिली भावना अग्नि में समर्पित करने लगे ,….बच्चों की मासूम उत्सुक निगाहें उनपर टिकी रही ,….पूर्वजों को याद करते हुए हर आँख गीली हुई ,……पंडित जी स्वभावतः कुछ मन्त्र बोलते रहे !..आहुतियां डालते रहे !….अंत में उन्होंने शान्ति पाठ किया ,…सब अन्न को अग्नि द्वारा वायु में मिलते देखते रहे ,…..चेहरों पर आत्मसंतुष्टि का गहन भाव चीखकर बताने लगा कि आहुतियों के साथ भावना प्रार्थना नियत पते पर पहुँची ……काफी देर तक कोई कुछ न बोला !……फिर एक बुजुर्ग अगियारी को प्रणाम करके खड़े हुए ,….सब भावुकता से प्रणाम करने लगे ….बुजुर्ग बोले ……

“……बाकी भोजन इकट्टा रख दो !……सब लोग ई प्रसाद लेंगे !..”

बुजुर्ग आदेश का पालन शुरू हुआ !..एक नववधू बोली ,… “..पहिले बताते बाबा ,… ज्यादा लाते !..”

बुजुर्ग बनावटी गुस्से में बोले ….. “..जो आया ऊ बहुत है बहू !….परसाद कम ज्यादा नही होता !..”

बहू ने संकोचभरी मुस्कान से बची पूडियों को एक बड़ी थाली में रख दिया ! …….प्रसाद इकठ्ठा होने के बाद बंटने लगा ,…एक पूड़ी पर चम्मच भर खीर सबको मिली ,…..बिना मेवा मसाला कम दूध से इतनी स्वादिष्ट खीर सिर्फ प्रसाद हो सकती है ,..सब प्रसाद खाते हुए सिमटने लगे …इधर बदलू ने गुट बनाकर फिर पंडितजी को घेर लिया ,…..उन्होंने पानी माँगा तो फट से दिया गया ,…..पंडित जी पानी पीकर फिर जमीनासीन हो गए ,..उत्सुक गिरोह की अगुवाई में सब फिर बैठने लगे !…..

एक बोला ,….. “.पंडित भैय्या श्राद्ध का महिमा हम समझ गए !…..एक बात बताओ ,…..तमाम लोग पूर्वजों का पिंडदान करने गया जाते हैं ,…ऊका का महत्त्व है ,…बहुत लोग जाने की औकात नहीं रखते ,.फिर उनके पुरखे कैसे तरते हैं !….”

पंडित जी ने जेब से खैनी निकाली ,…..मलते हुए बोले !….. “..हमारे पूर्वज ऋषि मुनि सब परम्परा बनाए !……हम वही का पालन करते हैं ,….. परम्परा का मतलब इंसान को इंसान से .. आत्मा को आत्मा से जोड़ना है !……सद्भावना गोंद का काम करती है ,…तभी परमात्मा से जुड़ते हैं ,….प्रार्थना से सूखी भावना सद्भावना बन जाती है !……….गया तीर्थ अंतरिक्ष के हिसाब से खास जगह पर हैं !…….कौनो देव महादेव की विशेष कृपा होगी !…..दूसरे लोक में रहने वाले पूर्वजों को आनेजाने में आसानी होगा !……मोह माया में फंसी कुछ आत्माएं धरती पर व्याकुल होकर भटकती हैं ,..उनको भी सद्गति मिलती होगी ,………गया जाने वाला अपने गाँव रिश्तेदारी दोस्ती दुश्मनी वाली सब जगह जाता है ,….अक्षत दान लेकर सब जगह अक्षत डालते हैं ,….फंसी आत्माओं का कल्याण ,…दुश्मनी मिटाकर इंसानों का भी कल्याण !…. और देशाटन तीरथयात्रा का बहुत महत्त्व है ,….लोग एकजुट होकर जाते हैं ,..मेलमिलाप सद्भावना बढती है ,..घूमने से ज्ञान बढ़ता है !…सब तीरथ का खास महत्त्व है ….लेकिन मस्ती करने तीरथ जाना महापाप है !……. पिंडदान से पशुपक्षियों को आहार मिलता है ,…उनकी आत्मा तृप्त तो पूर्वज भी तृप्त !…..आत्माजगत बहुत महीन धागे से जुड़ा है !……सब एक दूसरे से जुड़े हैं !….सब जगह परमेश्वर व्यापित हैं !……..हमने पूर्वजों खातिर प्रार्थना कर्मकांड किया तो अनायासे हमको लाभ होगा ,….प्रेम बढ़ेगा !… ऊ कौनो योनि में हमसे मिलेंगे तो प्रेम सद्भावना बढ़ेगा !…ईश्वरीय व्यवस्था के बैंक में लेनी जरूर देनी होगी ,……देनी मिलेगी जरूर ….चक्रवृद्धि ब्याज समेत !..”

“..बात ठीक लागत बा !..किन्तु नयके फैशन में नहीं जमता है भाई !….नया ज़माना ई सब नाय मानता !…”……………….ग्राम मामा ने पंडितजी को आधुनिक सुई से पंचर किया तो दूसरा मूरख बोला

“..नयका फैशन अंग्रेजी देन है ,.सुपरफास्ट आधुनिकी जंजाल में अपना पता नहीं है ,.तभी अंग्रेजी दुनिया मानसिक रोगी होती जाती है ,……….बड़े आये हमको सिखाने !.. कमाने खाने उड़ाने वाले सही में हंसना भूल गए !….डिप्रेसन का बीमारी से चालाकी चौपटी की कगार पर है ,. उनको आत्मा परमात्मा शान्ति परमशान्ति सुख परमसुख का जरसौ ज्ञान नहीं है !…… दुनियावी ज्ञान में जरूर बढे हैं ,…काहे से कि लुटेरी सत्ताएं खोज को बढ़ावा नहीं दिए !…महाज्ञानी विज्ञानी से भारत का इतिहास वर्तमान भरा पड़ा है ,……. यहाँ गद्दार गाँधी छाप चोर डाकू गिरोह विदेशी विदेशी माला जपते हैं !…….ऊ शातिर जुगाड़बाजी से दुनिया कब्जाना जानते हैं …बस !!……….”

एक साथी गुस्से में बोला ………….“…चूल्हे में जांय हरामखोर लुटेरे !….ऊ मैकाले की महामूरख औलादें हैं ,….भारत का पगड़ी गिराने खातिर लालची विदेशी उनको देश सौंप गए !…..अब पच्छिम खुद खँडहर होता जाता है ,….एकदिन उनको दौड़कर हमारे संस्कार परम्परा सोच अपनाना होगा ,…यहाँ देने वाला सुखी होता है !…….”

“…ऊ अपनाने की जगह कब्जाना जानते हैं ,….सब ज्ञान का बीज भारत भूमि से गया है ,..ऊ हाईब्रीडिंग करना जानते हैं ,…….योग ध्यान आयुर्वेद पर अपना लेबिल लगाते हैं !……”………..एक मूरख ने अपना मत रखा तो पहला फिर बोला

शैतानों को छोडो यार !……सब विदेशी ज्ञानी विज्ञानी भारत महिमा बताए हैं ,…….वैसे पंडित ने सही बात कही !….पूरा आत्माजगत जुड़ा है !..”…………एक युवा ने दिशा बदली तो बुजुर्ग बोले

“..यहै आध्यात्म है !…सब आत्मा परमात्मा से जुड़े हैं ,….. बटन बंद रखते हैं तो बलब कैसे जलेगा !……इंसान जीव पेड़ पौधा दोस्त दुश्मन पूर्वज औलाद सबका आत्मा एक है !……अंदर से सब एक हैं !……सबके साथ सद्भावना होनी चाहिए ,……यहै श्राद्ध तर्पण है ,….कर्मकांड है …….यही परम्परा है !…. सबका भला करने से अपना अच्छा होता है ! .”

“..लेकिन कुछ पशुमानव परंपरा के नाम पर जानवर काटते हैं !…..”………..युवा फिर बोला

दूसरा मूरख बोला …………“…ऊ सब झूठे अज्ञानी हैं ,…अब सबको समझना चाहिए ..जानबूझकर पाप करे वालों को बहुत कष्ट भोगना पड़ता है ,………..धर्म परम्परा या पेट के नाम पर कौनो इंसान जानवर पेड़ प्रकृति से अत्याचार करना गलत है ,…और ईश्वरी इन्साफ में गलती की सजा जरूर मिलती है !..सच्चा पिता औलाद के भले खातिर ही दंड देता है !… ”

सहमति की लहर में सिर हिलने लगे ..एक खोया मूरख बोला …………..“..अब घर चलो यार !…..बाकी बातें पंचायत खातिर बकाया रखो ,…..सूद समेत वसूलेंगे !….आज बहुतै अच्छा लगा ,……माई की बहुत याद आई …..हमारी माई गाना गाकर निराई करती थी !,….”

“..कुछ हमको भी सुना दो ….”…………साथी ने फरमाइश की तो वो बोला

“…. अब ठीक से याद नहीं है … फिरौ सुनो !……………..दुनिया एक मेला ..हियाँ बहुत झमेला …सब आये अकेला ..सब जाए अकेला ..डगर एक सफर एक …एक होकर भी रोये अकेला ….अरे इंसान अब समझो …..न तुम अकेला ….न हम अकेला …सबको जोड़े भगवन अकेला …रिश्ते माटी का खिलौना ….घर गली का बिछौना ….धन दौलत सफर का किराया ..तू का लेकर आया …भगवान का बन भगवान को दे ….सबको देने वाला वही अकेला !…………………..ऐसा कुछ गाती रही …….माई बहुत बढ़िया गाती थी !..”…………मूरख यादों में और गहरे गया तो साथी भी गिरा .

“…ऊ बहुत अच्छी थी !..हमको भी सांवा खीर खिलाती थी !….”

एक बुजुर्ग भी भावुक हुए ………….“……..सब माई बाप में भगवान होते हैं ,…..हर कण में उनके रहते भी मानवता उठने की जगह गिरती हैं ,….काहे से कि ऊ अदृश्य सूक्ष्म रहते हैं ,….इंसान उनसे बहुत दूर हो जाता है ,….यहाँ सबको कुछ करने खातिर भेजते हैं !……. नवरात में महामाई से विनती करेंगे ,….अबकी जनम में हमसे काम पूरा कराएँ !……. भूख गरीबी अन्याय चीख पुकार आत्माओं को छीलती है ,….पाप से सबका पतन होता है ,…..तमाम दशहरा बीत गए !……….रावणी अन्याय से धरती माता की आजादी देना उनका काम है ,…परमदयालु आदिमाता अनंत शक्ति वाली हैं ,…हजार जनम का बाकी काम एक मिनट में कर सकती हैं ,….”

बगल बैठा मूरख उनके कंधे पर हाथ रख बोला …………“..ऊ कृपा जरूर करेंगी काका !…..माता पिता ममता ही लुटाते हैं ,..”

अनायास चर्चा गहन भावनात्मक होती गयी …..कुछ लोग जा चुके थे ,…पंडित जी अगले कार्यक्रम के लिए धीरे से निकल चुके थे ,…….बच्चों की धमा चौकड़ी और बढ़ी तो सबकी घर लौटने की सलाह बनी !……महिलाओं बच्चों ने खाली बर्तन उठा लिए ,……अर्ध तृप्त आत्माएं घर की तरफ चल पड़ी …….. सहकारी श्राद्ध तर्पण पूरा हुआ !…

वन्देमातरम !

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