मूरखपंचायत ,…धर्मनिरपेक्ष कलाकारी -२
………………. प्रस्तुति रुकते ही तालियाँ गूंजने लगी ……खड़े हो चुके मूरखों से वाह वाही की आवाजें भी उठी ………पंचों ने कलाकारों का हाथ थामा तो गले मिलने में भी देर न लगी !……..माहौल सहज होते ही सूत्रधार भावुकता से बोले …………….. “…हम आपको परनाम करते हैं !……आपने गा बजाकर वही सुनाया जिसको पूरा भारत कहता सुनता है ,…..परनाम है भाई लोग !…परनाम है !…गीत संगीत में बहुत ऊर्जा ताकत है !….”
कलाकार मंडली जोशीले अभिनन्दन पर मौन विह्वलता से निहाल हो गयी ,…..हाथ जोड़कर सबका आभार जताया !………..मूरखों ने फिर तालियाँ बजाकर अभिनन्दन किया ………..एक युवा ने सकुचाते हुए फरमाइश पेश की …
“…चाचाजी !…..धरमनिरपेक्षिता पर कुछ सुनाओ ,….बहुतै हल्ला है !..”
गायक हंसकर बोले ………… “…भैय्या हम रेशमिया मलिक जैसे गीत संगीतकार नही !….टुटपुन्जिये कलाकार हैं !……भगवान की कृपा से गा बजायकर पेट पालते हैं ……. भारत भुखेरी में दिली तकलीफ निकल गया !……कहते हैं कलाकार की तकलीफ में भगवान का आवाज होता है !…….आगे आप लोग सुनाओ …….हम ताल लगा देंगे !……….”
“…. जीके दिल में देशप्रेम इंसानियत है .. ऊ कलाकार है ,….बाकी बेकार हैं……….. सबसे बड़े कलाकार परमपिता हैं भैय्या ,…….सोलहों कला पूरी हैं !………वैसे सब लोग कुछ कलाकार होते हैं !………. कलाकार टुटपुंजिया नही होता भाई !……हमको आपलोगन पर बहुत मान है !……”…………….एक बुजुर्ग स्नेह से बोले तो वो फिर हाथ जोड़कर मुस्काए ! …….उनकी सरलता ने सबका दिल फिर जीत लिया ,……सूत्रधार का कलाकार बाहर निकला ,…..बोले …………….. “…कलाकार शैतानो हैं !…धर्मनिरपेक्षी कलाकारी से मानवता खाते हैं ,…………. आप लोग ढोल बजाओ .. मंजीरा खनकाओ ……..हम सवाल नचाएंगे ,…..सब जबाब ठोकेंगे !…”…………….पंचायत फिर उत्साह से भरी ……वादकों ने तुरत फुरत वाद्य संभाले ,..सूत्रधार तैयार मिले ….
“..तो पहला सवाल !………..धर्मनिरपेक्षता माने का !….”………… बिना लय के भी वाद्य पीछे से बोल उठे …धम छन धम छन धम धम छन छन छनन छनन छन धम्म !……..मूरख सुनने में मस्त हो गए ….सूत्रधार ने टोका “…..अरे जबाब ठोंको भाई !…” .. ठुकाई की बौछार होने लगी !
“..धरमनिर्पेक्षता माने मानवता खाऊ पिलान !….”………
“..माने लूट का लाइसेंस !….”
“.. घोटालों का अधिकार !….”
“…माने कांग्रेसी अमरीकावाद !…”
“…माने अमरीकी शांतिदायक महाबम !..”
“..माने पूंजीवादी आदमखोरी !..”
“…माने कालाधन रक्षक कमांडो !…”
“..धरम निर्पेक्षिता माने गद्दारों का राज !…”
“..माने मुलायम का घरेलू समाजवाद !…”
“..मायावादी ठेके वाला दलितवाद !….”
“..माने आडवाणी के जिन्ना !..”
“..माने गाँधी का काला भण्डार !..”
“..धरमनिरपेक्षिता माने शैतानों का राज !..”
“..धरमनिरपेक्षिता माने हिंदुस्तान की बर्बादी !..”
“..माने अपराधी की चांदी !…” ……….हर उत्तर के साथ यथासंभव वाद्यों की धुनाई होती रही ….उत्तर न रुके तो सूत्रधार को रोकना पड़ा …….
“..बस बस !..अब अगला सवाल ….धरमनिरपेक्षिता से का होता है !….उत्तर फिर बरसने लगे .”
“…सोने का चिड़िया कंगाल होता है !..”
“…इंसानियत बेहाल होती है !..”
“..यूरोप अमरीका मालामाल होता है !…”
“..नेताओं का विकास होता है !…”
“..गौहत्या से सत्ता का उत्पाद बढ़ता है !..”
“…धरती बंजर होती है !….”
“..लुटेरों शैतानों का राज चलता है !…”
“…भारत मूरख बनता है !….”
“..देशभक्तों पर जुल्म होता है !…”
“..अपराधियों को सम्मान मिलता है !…”
“..भगवत्ता का परमान रामसेतु मिटाकर विदेशी तिजोरी भरने का पिलान बनता है !..”
“…विदेशी साजिशों पर अमल होता है !..”
“…गिरों की नक़ल होती है !..”
“…मानवता रोती है !….”
“…नैतिकता खोती है !..”
“…स्वाभिमान मरता है !..”
“…डाकू नाटक करता है !…”
“..अमरीका दुनिया लूटता है !..”
“…मुसलमान बढ़ता है !………गद्दार चढ़ता है !!…”…………….आक्रोश भरे हास्योत्तरों में वाद्ययंत्र तडका लगा रहे थे … आखिरी जबाब से एक चचा तमक गए ..
“…ई झूठ है ,…मुसलमान कैसे चढ़ता है ,……”
एक बुजुर्ग का आक्रोश सातवें आसमान पर पहुंच गया …………..“…ई धरमनिरपेक्षिता का सबसे बड़ा कारनामा है !……..अपना भाई खुद को गद्दार मानने लगा ,……आजादी की जंग सब मिलकर लड़े ,…अंग्रेजों के पिट्ठू गाँधी नेहरू जिन्ना की धरमनिरपेक्षिता ने अलग किया !….अब वही काम नए गाँधी मुलायम माया लल्लू नितीश जैसे गद्दार धर्मनिरपेक्षी करते हैं ,……गद्दार मुसलमान नहीं ..देश के नेता हैं !!…खंड खंड भारत का उनका सपना है ,..हिन्दू मुसलमान महज औजार हैं !………………….तुम काहे बमके शकील !…”
बुजुर्ग ने जोर से पूछा तो शकील भाई अचकचाए !…….फिर बोले ….. “………..हमको कुछ कहे लायक छोड़ा है ,… मुसलमान काहे गद्दार माने जाते हैं !….हमारी औलादों में जिहादी जोश काहे भरता है !…..सरकार हमको का देती है ,….वही गरीबी अनपढ़ी बेकारी बीमारी हमको मारती है ,..वही सबको खाती है !…..मुसलमान चढ़ता नहीं गिरता है !…….”
एक पंच बोले …………“.मुसलमान महामूरख बने हैं ,…अमन के मक्कार फरिश्तों कत्लेआम को जन्नत का टिकट बताया !…….अब गरीबी जलालत का जिंदगी हैं !………जवानी अपराध में गिरती हैं !…. दलाल कठमुल्ले अंधजिहादी सोच भरते हैं ,.. इंसानियत मारकर कोई जन्नत कैसे जाएगा !…….राजसत्ता भूखी इंसानियत को टाफी से बहलाती हैं ….आम मुसलमान का दोख नहीं है काका !…ऊ सच्चा नमाजी धर्मपरायण है !….”
बुजुर्ग फिर पलटे……………….. “…. दोख तो सबका है भैय्या !……..धरम के नाम से शैतानी साजिशों में फंसना भयानक दोख है !…..आँख मूँदकर देशद्रोही कठमुल्लों के पीछे चलना महान दोख है ,……..यहाँ मुसलमान गांधियों के सहारे हो गया ,….ऊ दलाल देश बेसहारा कर दिए !….जब देश न रहेगा तो सहारा कौन होगा !……वोट खातिर सब मुसलामानों को तुष्ट करते हैं !………लुटेरी सत्ता शासन घोर अन्याय करता हैं ,..ई मानवता खाऊ दंगे भडकाते हैं !……अपराधी मुल्ला मंत्री सरकारी खास हैं ,….अन्याय के खिलाफ बोले वाले अपराधी बनाए गए हैं !….”
चचा फिर बोले ……………“…अंग्रेजों का साजिश कब तक चलेगा काका !…….पेट भूखा है ,…हरामखोर लुटेरे पैर का मालिश दिखाते हैं……हमको शिक्षा चाहिए ,….रोजगार सम्मान चाहिए !….तरक्की चाहिए !…औलादों के अच्छे भविष्य खातिर पूर्वज लड़े थे !…”
एक युवा प्यार से बोला ………….“…चचा अच्छे भविष्य खातिर झूठा कठमुल्लापन छोड़ना होगा !…….सच्चे धर्मपथ पर चलना होगा !…… तब इंसानी मौज मिलेगी ……. शैतानियत में शैतानी मौते मिलेगी !..”
चचा की पीड़ा फिर बही ……………..“… हम सच्चे हिन्दुस्तानी हैं लल्ला !…हमारे पुरखे एक हैं …..लेकिन सत्ताई साजिश ने सब तरफ से नफरत भरा हैं !..”………………….कुछ देर के लिए मौन व्याप्त हो गया .
एक पंच साहब बोले ……………………..“…..हिन्दुस्तानी मिट्टी से पलने वाले सब लोग हिन्दुस्तानी है !… कुछ देर खातिर भटकाव झूठा होता है ,…….तीर तलवार से सच पर झूठ पोता गया है ,…दाढ़ी बढ़ाकर मूंछ मुडाने से कोई मुसलमान नहीं होता ,..और न अंग छिलाने से बनता है !………..देश काल का जरूरत में एकै नूर से सब पंथ सम्प्रदाय उपजे हैं ,….अब सबका काम पूरा होगा !……आज धरमनिरपेक्षिता महापाखंड है ,….काहे से की दूसरा धरम है ही नहीं !…..मानव एक है !…. सनातन मानव धरम एक है !…..बनाने वाला एक है !….पालने वाला एक है !……मिटाने वाला एक है !……………हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई बौद्ध जैन सब कल का अधूरा बात है ,……दुनियावी मेले के अँधेरे में हम कल बिछड़े थे ,……शैतान लालची तभी हमको खाये गिराए !…… नयी सुबह में फिर मिलना होगा !… सबको मिलना ही होगा ,…यही परमपिता का आदेश है ,….उनको ओंकार कहो …राम कहो ..अल्लाह कहो ..गाड़ कहो ..अकाल पुरख कहो शिव विष्णु ब्रम्हा शक्ति कहो …सब एक हैं !..दुनिया में उनके सिवा कुछ और नहीं ,…सबरूप वही शून्य वही !…..सबनाम उनके बेनाम वही !…..हमारी जबान से उनमें फरक नहीं पड़ता …….उनको माता मानो पिता मानो गुरु मानो भाई मित्र कुछौ मानो ……ऊ हमेशा हमारे साथ हैं ,..हमारे बीच हैं ,..हमारे अंदर बाहर सब जगह हैं !….वही मंदिर में वही मस्जिद में वही चर्च गुरुद्वारा में … वही झोपड़ी बिल्डिंग में .. वही सब जीव जंतु पेड़ पौधा में हैं !…वही हवा पानी धरती हैं !….उनके सिवा ई दुनिया में दूसरा कोई सच नहीं !….धरम उनका दिया रास्ता है ,…..फिर दूसरा तीसरा चौथा धरम कैसे सच होगा !..”
“..लेकिन सबका अपना मान्यता परम्परा है !……सबके बीच सच का है !….”……………….एक सवाल उठा तो पंच फिर बोले ….
“.सच वही है ,.. सबके बीच वही हैं !……अँधेरे में घर का सामान अंदाजे से उठाते है ,….सबकुछ बिखरता है …लोग गिरते पड़ते मरते हैं ,….चोर डाकू परजीवी आदमखोर दांव मारते हैं ,….फिर प्रकाश होने पर अँधेरा भागता है ,….सबकुछ दिखता है ,…..बिखराव रुकता है ,..टकराव रुकता है ,…उन्नति होती है !….अलग देश जमीन का अलग परम्परा होता है !..परम्परा से किसी को लाभ मिले तो बुराई नहीं !…… परम्परा खातिर आँख मूंदे तो हमारी गलती ,…भगवान का कौनो गलती नहीं होता ,…दयानिधान तो हमेशा राह दिखाते हैं !..”……………..मौन पंचायत में सहमति भाव फ़ैल गया …….कलाकार मंडली शांत मुस्कान से टुकुर टुकुर देखती रही ……….अचानक व्यग्र युवा की गीतनुमा आवाज फैली
“…सबकुछ बताए भैया धरम न बताए !…..” …………सूत्रधार फिर खिसियाकर हँसने लगे ,…पंचों से सलाह के बाद बोले ..आजका पंचायत यहीं रोकते हैं ,…कलाकार भाइयों को सबकी तरफ से लाख लाख धन्यवाद है !…उन्होंने मानवता को और तेज मीठी आवाज दिया है !……..कल पितर अमावस है !…………हम एकसाथ पूर्वजों का श्राद्ध करेंगे !……कल ग्यारह बजे जिससे जो बनेगा ऊ लेकर आएगा !!……..जय सियाराम !…….”
पंचायत में जयसियाराम .. वन्देमातरम .. भारत माता की जय .. फिर गूँजने लगे …….आज की पंचायत फिर विसर्जित हो गयी ……
वन्देमातरम!
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