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मूरख पंचायत ,………नई सुबह की ओर !

हमार देश
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आदरणीय मित्रों बहनों एवं गुरुजनों …सादर प्रणाम …….. मूरखों की पंचायत में पुनः आपका हार्दिक स्वागत है …..पंचायत जम चुकी है ….शुरुआत के लिए सूत्रधार तैयार हैं …….वो अभिवादन की मुद्रा में शुरू हुए …

“…. बहनों भाइयों माताओं पिताओं और बालगोपालों ….सबको दिल से राम राम परनाम !……….. मानवता पर फैला गहरा अँधेरा जल्दी सुबह होने का संकेत लगता है ,…लंबी डरावनी रात में हम बहुत लुटे ,….निशाचरी लुटेरे रखवाली का पाखंड करके हमारा सबकुछ लूटते रहे ,…….अंधेरगर्दी में हमने अपना धन गंवाया ,….धरम संस्कार गंवाया ,.अपनी सेहत गंवाई ,…. सुख चैन गंवाया ,……..हमारी धरती माँ पर अथाह गहरे जख्म हुए ,…हम खुद अपनी धरती में जहर भरने को मजबूर हुए ,……..संसार की पोषक प्रकृति को लालची शैतानों ने बेरहमी से नोचा … लुटेरों ने गरीबी बीमारी नशा अपराध से हमको सराबोर कर दिया,…..  अगर स्वामीजी जैसे ईश्वरपुत्र भारतमाता की कोख से पैदा न होते .. तो ….शैतान इंसानियत मिटाकर ही दम लेते ……”

एक मूरख ने टोका ……………..“..काहे न पैदा होते भाई !……पावन धरती हमेशा सपूत पैदा करती है ,……दुनिया में देश खातिर उतने लोग जिए नहीं .. जितने भारत माता पर मर मिटे !…… बलिदानी सपूत फिर फिर जनम लेते हैं ,….काम पूरा होने तक लेते रहेंगे !…..लेकिन उनको काली रात में पैदा करके भगवान कहाँ सो जाते हैं !..”

सूत्रधार फिर बोले …………..“…. दिन रात सदा सर्वत्र ईश्वर हैं ,…अंधी लुंज चेतना से हम उनको देख सुन नहीं पाते ,…….करोड़ों सालों का सच्चा मानव इतिहास गवाह है ,…मानवता के दुश्मन कभी नहीं बचते ,……हमें बचाने का सनातन ठेका परमपिता का है ,..उन्होंने फिर हमको सदा सतर्क रहने का पाठ दिया है ,…… नए दिन में हमको शून्य से शुरुआत करनी होगी ,..,,हम जख्मों को ठीक करेंगे ,…सब मिलकर उन्नति का नया शिखर छुएंगे !….मानव इतिहास का नया दिन बहुत से ज्यादा लंबा होने की विश्वास भरी विनती के साथ हम कार्यवाही शुरू करेंगे !……

एक बुजुर्ग प्यार से तमके ……………“….कारवाही बाद में शुरू करना !….पहिले बताओ राक्षसी रात में हम कुछ बचे या … केवल ढांचा बचा इमारत गयी !..”

एक पंच महोदय बोले …………….“…इमारत बनती बिगड़ती है काका !……..मानवता परमपिता से चलकर उन तक पहुँचने की अनंत यात्रा है !…यात्रा में दिन रात ढलान उठाव ठहराव सब आते हैं !…..भयानक अँधेरे में बचाने वाली ताकत हमेशा जागती हैं ,…. नहीं तो कब का हजम हो गए होते ,…परमशक्ति की प्रेरणा से अनेकों महापुरुष मानवता खातिर दीपक बने !…जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण सांझ बेला की घोषणा करने आये थे ,….रात बिताने में उनकी शिक्षा मानवता खातिर वरदान बनी !……. बुद्ध महावीर ईसा मोहम्मद से लेकर आदि शंकराचार्य नानक कबीर रामदास गोविन्द सिंह जैसे अनेकों महापुरुषों ने हमको बचाया ,……बाबा तुलसी सूरदास जैसों ने खौफनाक समय में भरसक उजाला फैलाया ,…….मीरा और चैतन्य महाप्रभु जैसे भक्तों ने काली रात में प्रेम धुन पर नचाया !..”

“… पाखंडी लोग भी तो सिद्ध संत महंत बने !…”…………..एक युवा ने व्यंग्य किया तो महिला बोली

“..भैय्या कलियुग में अब तक प्रभु ने सूरज नहीं उगाया ,…..तबहीं हमने बचाया कम गंवाया ज्यादा है !…लुटती पिटती मानवता खाई की तरफ गिरती जाती है !…लूटराज में नशे वासना अपराध आतंक अन्याय का बोलबाला है !…”

दूसरे पंच ने युवा और महिला को संबोधित किया …………..“… सब महापुरुष दीपक थे ,..कुछ पवित्र घी से रोशन थे .. कुछ चर्बी से भी चले !…..दीपक कितनौ प्रचंड हो ,.. नीचे अँधेरा जरूर रहता है ,…. रोशनी सीमित होती है ,…. बाद में निशाचरी ताकतें वही रोशनी के छलावे से इंसानियत लूटती है !..”

सूत्रधार फिर बोले ………..“….धूर्त पाखंडियों को किनारे रखो भाई !…….रामकृष्ण विवेकानंद श्री अरविन्द नयी सुबह का संदेशा लाये ,…..महर्षि दयानंद ने मानवता को राह दिखाई !..उनकी प्रेरणा से आजादी की मतवाली लहर चली ,…बिरतानी हकूमत को देश शातिर चमचों के हवाले करना पड़ा  …आचार्य श्रीराम जैसे सिद्ध गुरू ने स्याह रात में वेदमाता गायत्री की शक्ति किरण फैलाई !…………..आजौ अनेकों महापुरुष मानवता खातिर प्रकाश फैलाए हैं !…असंख्य साधु महात्मा भक्त जुगनू से मशाल की तरह जलते हैं !……….ब्रम्ह्मुहूर्त में प्रेम से जगाने खातिर परमपिता ने श्रीश्री रविशंकर को भेजा ,….मानवता का काफिला मिटाने वाले अंधे राक्षसों के नाश खातिर स्वामीजी आये !…….साथ में फिर पूरी सेना लाये हैं !…..अबकी ई सेना लालची राक्षसों का काम तमाम करेगी !…”

एक युवती बोली …………..“..काम तमाम हुआ समझो चाचा !…. योगक्रान्ति की महान शक्ति से हर इंसान में देवता जागेगा ! ……..दुनिया का हर आदमी स्वामीजी का सिपाही है ,..कुछ जागे हैं ,…..कुछ सोये हैं ,..कुछ नींद की खुमारी में बौराये हैं !..”

इसबार ग्राम मामा बोले ……….“…बौराये तो हमहू हैं बालिका !……शैतान गांधिन का लुटेरा गिरोह भयानक मायाजाल फैलाए है ,…चौतरफा दिखत बाटे !…..अच्छे भले इंसान शैतान का गुलामी करत बा !….. उठ के धपाक से लुढकत हैं !..”

“…मामा हम किधर से अच्छे भले हैं !…..”…………..एक युवा ने व्यंग्य किया तो बौराये से मामा अगल बगल से खुद को देखने लगे …….एक वृद्ध आगे बोले

“ … लुढकना मूरख स्वभाव है !…..उद्दंड अबोधता से मात पिता का बहुत प्रेम मिलता है ,….. फिसलकर रोये तो भगवान उठाने दौडते हैं !…….उनके आते ही सब अँधेरा साफ़ .. शैतानी मायाजाल का चिंदी चिंदी उड़ेगा ! ….राक्षसों का दफ़न होना पक्का है ,…….भोर किरण खुलने पर निशाचरी ताकतों को छुपना पड़ता है ,…….ई मानवता के पथभ्रष्ट होने पर फैलते हैं ….फिर रात आती है ,..सब युगन में यही हुआ है ,…….यही परमपिता की माया है !……”

एक पंच फिर बोले …………“… अब उषाकाल है ,…हजारों साल बाद ई समय आया है ,….अपना विनाश देखकर शैतान और ज्यादा छल कपट साजिश लूट मार काट करते हैं ……. अब जागने वाला भरपूर अमृतपान करेगा !…….अथाह अमृत बांटने वाला कंजूसी नहीं करेगा !….बाकी हमारी इच्छा है ,.. कितना पीते कितना गिराते हैं ..सुख सागर में गोता लगावे खातिर कूदना होगा !……”

बुजुर्ग फिर बोले …………“…रात उनकी दिन उनका …..दुःख दरिया उनका सुखसागर उनका …..धरती सूरज चाँद तारे सब उनके .. हम उनके सबकुछ उनका …..उनके सिवा और कुछ नहीं है ,……आदि शंकराचार्य जी ने बिलकुल सही कहा था ,..ब्रम्ह सत्यम जगत मिथ्या !…….”

इस बार बुद्धिजीवी टाइप वाला बोला ………….“…शंकर जी ब्रम्ह सिद्धी के बाद कहे होंगे !…….ब्रम्हमिथ्या ही मानव सत्य है !……हमको नियम से ई सत्य पालना होगा ,…तबहीं परम सत्य तक पहुँच सकते हैं …..संसार साधना के बिना ब्रम्ह साधना नामुमकिन है ,…. जैसे बिना जड़ के बरगद पीपल !…..”

उनके साथी ने सदा की तरह पीछा किया ………..“..सही कहा भाई !……..तबहीं वेद भगवान चार आश्रम बताए हैं !…….सही समय पर सब होना चाहिए !…”

“…वेद भगवान आदर्श हालत की आम व्यवस्था बताये है ,……..परमपिता बाल सन्यासी और बुजुर्ग योद्धा भी बनाते हैं ,….उनकी कृपा से सब एक साथ सधेंगे !…..”……………..बुद्धिजीवी ने पलटी खायी तो एक महिला ने मोर्चा संभाला

“…वेद भगवान के प्रकाश में ही मानवता का परम उत्थान हुआ है ,…फिर होगा ,…… परमपिता की माया वही जान सकते हैं ,…हम इतना समझते हैं की उनके विस्तार का अंत नहीं है ,. हर इंसान जीव वनस्पति की अलग खासियत होती है ,…..उनकी खातिर कुछौ असंभव नहीं है ,……..धरती के उद्धार खातिर परमशक्ति जरूर जागती है !…..बामन भगवान ढाई कदम से दुनिया नाप लेते हैं … ब्रम्ह माया कौनो कुतुबमीनार नहीं है ,..विस्तार विराम माया का अंग है ,…मानव पिंड में पूरा ब्रम्हांड भर दिया !….कौन जानता है आज कितने लोक हैं ,…का पता सात से सत्रह हो गए हों !…का पता दो चार ही बचे हों !….का पता ऊ लोग सुपरतम जहाज हथियार चलाते हों !…”

“..अपने भाई लोग भी मंगल पर घूमने वाले हैं …..”……….एक युवा भावशून्यता से बोला तो दूसरे बुजुर्गवार बोले

“…घूमकर का करेंगे ,..खोज इंसानी स्वभाव है ,…..लेकिन पहले नीचे खोजो तब ऊपर चढ़ना ,…धरती के सत्यानाश पर उतारू हैं ,….इंसानी जिंदगी अँधेरे में डूबी है ,….हम मंगल पर जंगल ढूढते हैं !………..सद्ज्ञान बिना विज्ञान नागफनी का बाँझ पेड़ है !..”

दूसरे साथी आगे बढे …………….“…अरे हमारे ब्रम्हदर्शी महर्षियों को का नहीं प्राप्त था ,..भगवत्ता मोही महायोगी लोग महाविज्ञानी थे ,…..बिना पेट्रोल मन की गति से चलने वाले जहाज बनाते थे ,.एक तीर से ब्रम्हांड मिटाने की ताकत थी ,.लेकिन… विश्वशांति खातिर नित प्रार्थना करते थे ,….रिद्धि सिद्धी पलक झपकते ब्रम्हांड संपदा लाती थी .लेकिन …एक लंगोटी धोती और अन्नकण पत्ते से जीवन बिताते थे !..मेनका उर्वशी जैसी अतुल सुंदरी सानिध्य मांगती थी ,…लेकिन ऊ जगत सेवा खातिर तपस्या में लीन रहते थे !…..”

तीसरे बुजुर्ग भी उकडूं हुए  …………..“…उनका खजाना परमानंद था भाई ,….हम मूरखों की तरह पगलाए न थे ,…ब्रम्ह साधक हमेशा संसार की चिंता करता है !….”

“… चिंता नहीं चिंतन कहो बाबा !…..ऊ संसार का कल्याण करते थे ,…..उनको अपना काम याद था ,..भगवान ने सबको कुछ काम से भेजा है ,…अच्छा हम मरने से काहे डरते हैं !!…”…………एक महिला ने मत रखते हुए सवाल किया तो युवा ने उत्तर दिया

“..काहे से कि मोह माया घेरे रहती है ,…”

महिला संतुष्ट न हुई …………… “..ई ऊपरी जबाब है ,… औलाद से लात जूते खाकर काहे का मोह ,…..हम मरने से डरते हैं … काहे से कि हमारे कम्पूटर में सबसे पुराना आदेश भगवान का है ,……………जाओ मेरा काम करना ,…संसार का कल्याण करना ,…..मुझ जैसा बनना ,…तुम मेरे ही बीज हो ! …. सुशक्तिवान बनो … अनंत रूप में मात पिता की तरह तुम्हारे साथ हूँ ……………….एक से अनेक होना ही उनकी योगमाया है !..”

“…फिर चाची !….”………….युवा उत्सुक हुआ तो महिला फिर बोली

“…फिर का !…बिना आदेश पालना के सर्वोच्च सत्ता के सामने जाने में डर न लगेगा !………यहाँ काली खुरपेंची खेलकर अंतर्मन डराता है ,…..जनम जन्मांतर तक अनेक योनियों में आत्मा घिसते हैं ,…..फिरौ पावन परकाश से दूर रहते हैं !..”

..“…सब उनकी छलिया माया है ,..हमको काहे पेट दिए ,..काहे सब इंद्री दिया ,…हम गुलाम बनते हैं !…” ………. एक निरुत्साही जोर से बोला तो पास बैठा युवा व्यंग्यात्मक लहजे में बोला

“.. गुलामी तोड़ने का ज्ञान भी दिए हैं ,..बिना इम्तिहान नतीजा कैसे मिलेगा !……….इंद्री पेट शरीर सब उनके लक्ष्य का साधन है ,….सब औजार आत्मा को परमात्मा से मिलाने खातिर हैं .. सबका पोषण करते हुए संसार में सुख शान्ति फैलाना हमारा काम है  ,….. उनकी तरफ जाओ ,…साधना करो ,….. करना कुछ है नहीं ,….बेमतलब टांग फंसाते हैं !…”

तकरार के बीच महिला आई ……………….“…भैय्या दुनिया मूरखों से भरी है ,….अँधेरी रात में चहुंओर अन्याय अत्याचार दुःख अशांति है ,..मानवता त्राहि त्राहि करती है ,..लुटेरे हमको खाते हैं ,……जब इतने ज्ञानी हो तो ईका निदान सोचो !..यही मानवता की साधना है !..”

एक मूरख ने सुर मिलाया…………….“…सही कहा भौजी ,..मुलायम सोनिया का सांठगांठ से सीबीई जुगाडू एकाउटेंट बन गयी ,..सब मिलबांटकर हमको खाते पचाते हैं ,…..देश खाने वाले गद्दारों की मौज है ,..देश में त्राहि त्राहि मची है …लुटेरी व्यवस्था में भारतद्रोही लुटेरे हमारे शासक हैं ,…मानवता नोची जाती है ,….मिलीजुली शैतानी नौटंकी से मानवता कैसे उठेगी !…….”

खड़ा युवा पंचाधीश की तरफ इशारा करके बोला ………………..“…बड़की दादी ने धरम को जेसीबी बताया है ,…….रामराज की गारंटी है !…”

“…लेकिन धरम है का चीज …..ठीक से समझाओ !…”……………एक युवा ने पुराना सवाल दोहराया तो एक मूरख घूरकर बोला

“…सवाल बढ़िया है …लेकिन ज्यादा जरूरी सवाल हम का हैं ,..हम कौन हैं !…”…………….घूरकर बोलने के अंदाज से गफलत फ़ैल गयी ,..एक बोला

“..हम बदलू पुत्र राम आसरे ..”

दूसरा …..“..हम मुसाफिर वल्द मुश्ताक अली ..”

“..कैलाशचंद पुत्र श्री मालिकचंद…”

अगला ……. “..हम फकीरे बाप अमीरे..”

महिला भी पीछे न रही …………. “..हम कमला पुत्री रमेश ..”

मूंछ पर हाथ रख अगला परिचय आया  ………..“…हुकुम सिंह वल्द इंसान सिंह…”

एक बुजुर्ग सिर पकड़कर गरजे …………“….अरे भगवान खातिर चुप हो जाओ मूरखों !…..ई परिचय समारोह नहीं पंचायत है ,……..और ललुआ तुम सोये हो का !…………कब से बतिया रहे हैं ,……….हम मानव परमपिता के प्यारे पुत्र हैं ,…उनसे चलकर उन जैसा बनकर उनतक पहुँचने की यात्रा हैं ,…उनसे बिछड़ी आत्मा को उनमें मिलाना है ,….हम उनके बताए रास्ते से भटके हैं .. ई लिए परेशान हैं ,….. नए गिरोहों ने अपने फायदे के हिसाब से रास्ता बता दिया ,…..सबकुछ समाहित करने वाले धरम को नाली से संकरा बता दिया !……..परमपिता की कौनो सीमा नहीं है ,..न उनका विस्तार रुकता है ,..ऊ सैकड़ों ब्रम्हांड बना मिटा सकते हैं ,…..मानवता उत्थान खातिर उन्होंने हमको सब साधन सब जतन दिए हैं ,…अपनी बुद्धि विवेक से सबका इस्तेमाल कर उठना हमारा कर्तव्य है ,…… राक्षसी ताकतें इंसान में घुसकर मानवता की घोर परीक्षा लेती हैं ,…… दयानिधान घनी काली रात में हमको अनेकों दिये दिखाते हैं ,…… हम देखें चाहे आँख बंद करके रोते रहें  ….. हमारी मर्जी !…..हम उनको छोड़ने की मूरखता करते हैं ,…ऊ हमको नहीं छोड़ सकते हैं ,…ऊ फिर आयेंगे …. अँधेरे से निकलने की राह दिखाएँगे ,…….इंसान को सच्चे धरम पर लौटना होगा ,…..यही मानवता उत्थान का पहला और आखिरी रास्ता है !…..यही हमें उजली सुबह तक पहुंचायेगा ……अँधेरा प्रकाश में बदल जायेगा !…”…………………बाबा के क्रोधित वक्तव्य पर सब चुप हो गए …….वो फिर बोले

“…और हाँ .. धरम सत्ताई टुकड़ों पर नही चलता ,..ऊ आदर्श व्यवस्था देता है ,…..धरम धरती नहीं कब्जाता ,…उसको पाप अत्याचार से मुक्त करता है !…………….धरम विस्तार खातिर मारकाट छलकपट नहीं करता ,..ऊ मानवता का विस्तार करता है !………………धरम लालच खौफ नहीं दिखाता ,..ऊ लालच खौफ को मिटाता है ,!…..धरम दान से मौज मस्ती नहीं करता ,…ऊ झूठी मौज में डूबों को ज्ञान दान देता है !……….धरम उंच नीच भेदभाव नहीं करता ,…ऊ समानता दिखाता है !…..धरम नफरत हिंसा नहीं फैलाता है ,…..ऊ प्रेम से पाखण्ड को तोड़ता है !………आँख वालों खातिर धरम अंदर से बाहर तक पारदर्शी होता है ,…समयगति के हिसाब से लचीला होता है ,…… धरम सब तरफ से सम्पूर्ण है होता !…”……………बुजुर्ग बोलते बोलते जरा गुस्से में आये तो एक युवा ने संभाला …

“…ठीक है बाबा !…….निशानी कहावत बहुत दिन से पढते सुनते हैं ,……….. धरम का परिभाषा व्याख्या पालन सब बताओ ,… तबहीं समझेंगे !….” ……………………क्रमशः

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