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मूरख पंचायत ,…सुख सागर तट !

हमार देश
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“….भगवान की दुनिया में भगवत्ता ही सत्य है !………….”…………….एक महिला बोली तो दूसरी का सवाल आया

“…भैय्या कोई ई बताए ,.हम कौन हैं ?……काहे धरती पर दुःख भोगते हैं ,… भगवान की माया का है !..”

मूरखाधीश बोली ……“…..दुनिया माया नहीं प्रभु की योगमाया है बहिन !……….. हम धरती पर सुख भोग करे खातिर इंसान बने हैं ,…..उन्नति करते हुए उनके परमसुख में मिले खातिर सब विस्तार विधान साधन है ,……….परमात्म अंश आत्मा सब जीव की एक है ,… चौरासी लाख योनियों के बाद मानव शरीर मिलता है…..मानव तन मन बुद्धि से सच्चिदानंद परमब्रम्ह को पा सकता है ,…… उनको जान अपनाकर ही सुख पाता है !…ई योगमाया प्रभु से हमारा अटूट बंधन है !….”

“..जब उनके ही अंश हैं तो काहे भटकते है ,…मानवता काहे रोती है !………..”………….माता का पीड़ित प्रश्न फिर खड़ा हुआ कुछ पल मौन के बाद एक पंच बोले .

………….“…तिरगुनी प्रकृति में तम का उभार भटकाता है ,…. अँधेरे के राज में सत्य सिमट जाता है ,……आत्म अज्ञान में ईश्वर के अंश मूरख बनते हैं !…..जैसे रात के बाद दिन होता है ,……वैसे हमारी आत्मा का प्रकाशित होना लाजिमी है !…. बल्ब के जलते ही चहुंओर प्रकाश होगा ,….मानवता उत्सव मनाएगी ,…धरती खुशी से सराबोर होगी !…”

“…अच्छा खुशी और सुख एकै चीज हैं !..”…………….एक नवमूरख ने सवाल दागा तो साथी ने समझाया

“..नहीं ,…सुख गाड़ी और खुशी मंजिल है ,.”

“…माने खुशी एकै बार होती है …”………..नवमूरख ने अगला प्रश्न किया दूसरा जरा खीजकर बोला .

“…नहीं घोंचू !……जैसे बनारस से दिल्ली चले हों ,……हर स्टेशन पर मंजिल की करीबी खुशी लाती है ,.वैसे जीवन का जन्म बचपना जवानी बुढापा मौत सब खुशी के स्टेशन हैं !…तबहीं सोलहों संस्कार होते थे ,.संस्कारी खुशी से जीवन यात्रा संवारती है ,…रास्ते का मेलमिलाप दानापानी पढ़ाई गप्प सब खुशी देती हैं !…….आखिरी मंजिल मौत सनातन सत्य है ,……यात्रा सुख भरी हो तो दिल्ली पहुँचने का आनंद खुशी से भर देता है ,…………”

.साथी की दलील पर नवयुवा बोला ………….. “…माने सुख तृप्ति है और खुशी उत्सव ! ….”………

…..पहला शेखी के अंदाज में बोला …….. “… सही समझे हो !……..तृप्ति से ही सच्चा उत्सव होता है ,…..सच्चा उत्सव भी तृप्त करता है !…..”

एक महिला युवा शेखी पर जरा तुनकी ………….“… ई बात छोडो ….कोई ठीक ठीक बताओ सुख का मतलब का है !..”

युवा ने तुनकी का उत्तर प्रेम भरी चुटकी से दिया …………“..अरे चाची ……काहे गुम हो !….सुख माने सुन्दरतम् तृप्ति !….सु …. ख !……..सु से सुन्दरतम् ख से तृप्ति !…”

“..ठीक है लेकिन जीवन में का मतलब है !…”…………….. चाची का सवाल कायम रहा तो युवा बेबस दिखा ,……. चश्माधारी साहब ने प्रयास किया

“..जीवन में सुख मतलब …. शरीर मन समेत सब इन्द्रियों का सुंदर तृप्ति ,…….आत्म तृप्ति !….”

“…ई तो बड़ा अड्गड बात है ,….आत्म तृप्ति होना असंभव है !…..”……………….एक साहब ने फुलस्टाप लगाने का प्रयास किया तो पंच साहब बोले .

“..भाई …राम नाम से कुछौ असंभव नहीं है !………”

“..थोड़ा विस्तार से बताओ !……”……………..चश्माधारी ने आशा से पूछा तो पंच बोले

“…सुख का साम्राज्य माने रामराज्य !…..रामराज्य का मतलब पूरी तृप्ति है ,…..कौनो चिंता कलेश तकलीफ नहीं हो सकती है ,….दुःख का पूरा विनाश ही रामराज्य होगा !….सुन्दर प्रकृति हमको सुंदरता से पालने में समर्थ है !….सुन्दर सेहत ,….सुन्दर मन ,…सबको सुन्दर पौष्टिक भोजन ……सम्मान से रोजगार …..अच्छे जरूरी कपडे ,……अच्छा घर ,…अच्छा परिवार ,…अच्छे गाँव .. अच्छे शहर ,…अच्छे समाज .. अच्छे देश ,…अच्छा शासन ,…..अच्छी व्यवस्था !…अच्छी दुनिया ….रामराज्य में सबकुछ अच्छा ही होगा !….पूर्ण सुरक्षित साम्राज्य में सुख शान्ति उल्लास आनंद ही होगा !…”

चश्माधारी साहब फिर निराशा सेबोले ………“…इंसान बड़ा हरामखोर हो गया ,…..लालच अहंकार में दूसरे का दुःख नहीं दिखता है !…..लुटेरी व्यवस्था ने सबकुछ लूट लिया है ,…लूट लूट कर घाटे का बजट दिखाते रहे ,….हजारी पंच सौव्वा नोट इतना छापे कि हमारी मुद्रा का कौनो भरोसा नहीं ,…हर इंसान बेहाल है !…दलाल सत्ताई मालामाल हैं ! …”

दूसरे पंच साहब बोले …………….“…..सही कहते हो तुम !….मानवता द्रोहियों ने भारत को बहुत लूटा ,..मिटने से पहले जागना है ,….फिर राक्षसों को मिटाकर अपना निर्माण ही हमारा काम है ,…ईश्वर हमारे साथ हैं ,.ई काम जरूर होगा ,………इंसान का आखिरी लालच सुख है ,….अहंकार से सबकुछ पाकर भी सुख से दूर रहता है ,……रामबाण से सबके अहंकार का अ मिटेगा ,…..बचेगा केवल हंकार !…..राम खातिर हंकार ,……परमपिता खातिर भूख !…ई भूख सुख ही सुख लाएगी ,……सुख परमसुख का रास्ता पड़ाव है !……परमसुख ही योगमाया का लक्ष्य है !……वैसे हर जनम उनके और करीब जाना इंसानी लक्ष्य है !…..यही सत्य सनातन व्यवस्था है !..”

“..कहना सरल है ,..एक मिनट में हो गया !…करे में का का करना होगा …”…………..दूसरे सज्जन ने सवाल उठाया तो एक अन्य मूरख बोला ..

“..हमको सिरफ राम राम करना हैं ,…. सब काम वही करेंगे !…….आत्मा पर लिपटी कालिख मिटे तो सब दिव्यात्मा हैं !…….दिव्यात्माओं की धरती दिव्यता से भर जायेगी !….हम ईश्वरपुत्र ईश्वर ही होंगे !..”

“…बच्चा !… कालिख का परत बहुत मोटी है ,……..कैसे मिटेगी !……”…………………….एक बुजुर्ग ने फिर संशय रखा तो बगल बैठे अधेड़ बोले

“…बापू …..राम रसायन के आगे कौनो दीवार नहीं टिक सकती है ,……”

“…अच्छा सुख लेकर का करेंगे !…….अधिया गटककर मूतने में बड़ा सुख है !…..”…………….एक अमली खड़ा होकर बोला तो सब घूरने लगे ,….वो सहमकर बैठ गया ………..एक पंच ने उत्तर देना मुनासिब समझा

“..किसी को भी दुःख देने वाला सुख महादुख का कारण बनता है ,……..यही ईश्वरीय विधान है ,….योगमाया के मजबूत नियम हैं !…..अनजानी गलती को परमपिता क्षमा कर सकते हैं ,….जानबूझकर किये पाप की सजा जरूर मिलती है !..”

“..फिर हमको नरक जाना होगा !………”……..अमली बैठे बैठे बोला तो युवा भडका

“…नरम स्वर्ग की सीमा है लल्लू !….सीमा से गिरे कर्म हुए तो जाना होगा ,..काहे से उन पापों की सजा धरती पर नहीं मिल सकती है ,…… सीमा से ऊपर पुण्य से स्वर्ग का अधिकार भी मिलेगा ,…..काँटा बराबर होते ही फिर धरती पर जनम होगा ,…..बीच वाले यहीं आते जाते रहेंगे ,…….सब योनि में भटकेंगे !…..काहे न अच्छे कर्म करके परमसुख की तरफ बढ़ो !…”………….

अमली का चेहरा शून्य रहा तो एक मूरख ने झिड़का ………..“…अरे इसको छोडो न !…..ई बताओ देशद्रोहियों का का होगा !…हमको नोचने वाले मगरमच्छों का हिसाब कैसे बराबर होगा ….”

दूसरे साथी ने उत्तर दिया …………..“…हिसाब तो बराबर होना ही है ,…..इंसानियत के दुश्मनों की सजा से शैतानियत भी खौफ खायेगी !…..”…….

“…अरे शैतान को छोडो !……इनको शरणागति भी नहीं मिलेगी !….अहंकारी रावण भी अपनी प्रजा का सुख देखता था !…ई गद्दार !!!!……..चलो छोडो ………हमको अपना हिसाब देखना चाहिए ! ….”……………..खड़े युवा ने पंचायत का रुख फिर मोड़ा तो समर्थन में आवाज उठी

“…हाँ ,…हमारे जीवन में सुख सागर कैसे भरेगा !..”

एक पंच महोदय बोले …………“…इंसानी सुख के दो विभाग हैं ,….व्यवस्था और आचरण !…जैसे इंजन और ढांचा !….यात्री इंसानी समाज इनसे चलता है ,…….दोनों एकदूसरे पर निर्भर हैं !…..अच्छी व्यवस्था से अच्छा आचरण बनता है ,….सदाचार से अच्छी व्यवस्था चलती है !..”

“..तबहीं अंग्रेजों ने हमारा आचरण कंडम करे खातिर लुटेरी व्यवस्था बनाई !..”……………….एक बुजुर्ग तमके तो बुजुर्ग पंच बोले

“…हाँ भाई !…….सुशिक्षा सदाचार का नींव है ,….उसको हिलाने खातिर कुशिक्षा प्रणाली गढ़ी..!……..संयम मर्यादा आचरण का दीवार है ,…..उसको तोड़े खातिर नशे वासना के चमकीले गोले दागते हैं ,….समाज परिवार आचरण की छत है ,..लूटराज में उसको खंडित करे खातिर लालच स्वार्थ का मिसाइल गिराते हैं !…”

“..वही तो !…. बहुत बर्बादी हो गयी !….कैसे निकलेंगे ई तूफ़ान से ..”…………………चाची फिर बोली तो युवा उत्साह उबला

“……काला तूफ़ान कुछ न बिगाड़ पायेगा !……कौनो तूफ़ान महाप्रभु की आज्ञा से बड़ा नही है !……..सीताराम का चप्पू है .. रामदेव पतवार है !…..हम तूफ़ान से निकलकर पूरी दुनिया में सुख शान्ति लायेंगे !….भारत फिर विश्वगुरु बनेगा !……ढांचा इंजन सब दुरुस्त करने खातिर जुटना होगा !…..स्वामीजी की शुरू की गयी महाक्रान्ति पूर्ण सफल होगी !…इंसान का देवत्व जागेगा ,…धरती जाग्रत देवताओं से भर जायेगी !…”

“…इंसान जकड़ा है ,…….. हम शैतानी बेड़ियों में कसे हैं !……उधर मिस्र सीरिया लीबिया का हाल देखो !….कौन किसकी खातिर क्रान्ति किया ,…. इंसानियत खून से लथपथ है !….लालची गिरोह ने बहुत सद्पुरुषों को मिटाया ,…कहीं स्वामीजी को भी !..”………..एक और बुजुर्ग निराशा में डूबे तो

“..स्वामीजी को बुरी नजर से देखा भी तो हजारों लाखों रामदेव पैदा होंगे बाबा !…कोई मरने से नहीं डरता है ,…….भारत लीबिया सीरिया नहीं है ,….हमारे अंदर सनातन स्वत्रंता का बीज है !……हमारी फ़ौज पुलिस राक्षसों की गुलाम नहीं है !…….. संसारी जिम्मेदारी कुछ बांधती हैं ,..वर्ना उनकी सेना में साक्षात भर्ती होते ,…..हम हिन्दुस्तानी अपने उद्धारक के सेवादार हैं ! ..स्वामीजी की जय !…स्वामीजी के जय !!….भारत माता की जय !!…”…………युवाओं के साथ बुजुर्गों के जयकारे गरज उठे ……………..रुकने पर एक महिला बोली

“…अच्छा ..स्वतंत्रता है का चीज !!…..”

…………….“..स्वतंत्र माने स्व का तंत्र !…..”…………….एक युवा ने अपना गणित बताया ,……..पंच साहब बोले

“…हमारा परिवार ,. समाज ,…..हमारा देश ,….हमारी धरती !……और हम !………जिस तंत्र से सर्व कल्याण हो वही स्वतंत्र है !……स्वतंत्रता भगवान राम लाये थे ,…..परमपिता ने मानवलीला करके हमको स्वतंत्रता दिखाई है ,…हमारा स्व हमारी आत्मा है ,….वह भी भगवान है ,….उससे जुड़ते ही सब तंत्र ठीक होगा !.”

“….माने सुख वाली गाड़ी स्वतंत्रता है !…”……………एक अन्य मूरख ने अपना पेंच भिडाया

“…तो भैय्या इंजन माने व्यवस्था ठीक करे का उपाय भी बताओ !…”…………दूसरे की आवाज आई ,……अगले मूरख ने उत्तर दिया

“..ई अंग्रेजी इंजन ठीक नहीं हो सकता ,….व्यवस्था परिवर्तन ही होगा ,….. आचरण ठीक करना होगा !……विचार व्यवस्था सब स्वदेशी होंगे !…..सबके सुख खातिर स्वामीजी यही काम में जुटे हैं !!….”

सूत्रधार घड़ी देखकर बोले ………….“..सब काम होगा ,…हम कल फिर जुटेंगे ,…..आज भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है ,……हमको उत्सव में घुलना चाहिए !……परमेश्वर कृष्णा ही राम हैं !…….वही हमको बनाए हैं ,…..उनकी दया अपरम्पार है ,….वही सबको सबकुछ देते लेते हैं !……उन्हें हमको भी सबकुछ देंना पड़ेगा !………का हो मानव भैय्या ,.कुछ बोलोगे ….”

सहज आग्रह पर मानव शुरू हुआ ……….. “…..हमारी मूरखता महज इतनी है कि सबको अलग अलग देखते हैं ,……हम धर्म जाति क्षेत्र भाषा में बंटकर भूल जाते हैं कि सब भगवान के हैं !………..ये हमारी मूल सोच नहीं है ,….आज के रावणों ने फूटी सोच हमारे अंदर ठूंसी है !….तभी वो महामूरख और हम मूरख हैं ,…….दुनिया में हर किसी का पूरा हिसाब होता है ,…..हर अन्याय पाप का बदला ब्याज सहित मिलता है !……..हम सब एक हैं ,…एक ही हैं ,…और हमेशा एक रहेंगे ,…क्योंकि परमपिता एक है ,….वही एक अनेक है ,…..हम उसकी प्यारी संतानें हैं !……… परमपिता के लिए एक होकर काम करना हमारा परम कर्तव्य है !…….उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ,..उनके दिए साधनों से अपनी और सबकी जीवन यात्रा सुखी करेंगे ,……….हमारी औलादों को बीमा नहीं हमारा सच्चा पुरुषार्थ चाहिए !……माताओं के दुलार के साथ बच्चों को उनकी निर्माण शक्ति चाहिए ,….परमपिता ने मानव को उत्थान के लिए ही बनाया है ,…मानवता का उत्थान दिव्यता में होगा ,…..देवभूमि भारत से दिव्यजगत का मधुर नाद संसार में गूंजेगा !…….त्राहि त्राहि करती मानवता उठकर दिव्य सुखसागर का आनंद लेगी ….आज जग पालनहार कन्हैया फिर आएगा !……हमारी आत्मा को जगायेगा !…….हमें स्वागत में समर्पित होना चाहिए ,…”

……..सब हाथ जोड़कर बैठ गए ………मधुर स्वरों में सरल प्रार्थना शुरू हुई ..

सीताराम …सीताराम …….सीताराम जय सीताराम !

राधेश्याम…राधेश्याम ……राधेश्याम जय राधेश्याम !!

सीताराम …सीताराम … सीताराम जय सीताराम !

राधेश्याम …राधेश्याम …राधेश्याम जय राधेश्याम !!

…………..अब आयेंगे कन्हाई ,धरती लेगी अंगडाई

जागेगा सोया इंसान, जागेगा सबका ईमान

भरे उजाला श्याम गात में ,रखवाला सबका घनश्याम

अब आओ तुम कन्हाई, रात पूरी होने आई ,…बोलो

राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम जय राधेश्याम

सीताराम सीताराम सीताराम जय सीताराम

…………………….प्रार्थना के बाद शब्द कहाँ बचते हैं …….मूरखसभा फिर विसर्जित हो गयी …..

वन्देमातरम !……

(आदरणीय पाठकों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई !)

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