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आदरणीय मित्रों ,बहनों एवं गुरुजनों ,…सादर प्रणाम !……अखबार पढते हुए निर्जीव सी पीड़ा होती है ,… “महाकुम्भ में भगदड़ !…पैंतीस ,सैंतीस,चालीस मरे !……सौ पचास घायल ….कोई जिम्मेदार नहीं !….”……….कीड़े मकोडों की जिम्मेदारी कोई लेता है क्या !…….मासूम मगरमच्छ घुमाफिराकर इतना ही बोले कि इलाहबाद रेलवे स्टेशन उत्तरप्रदेश या भारत में नहीं है ,.. हमें तो खाऊलालों का आभारी होना चाहिए ,… मन की बात नहीं बोले !…. “..तीन करोड़ लोगों में दो चार सौ अपने घर में मरते होंगे … कौन जिम्मेदारी लेगा !……दस पांच तो खुद फंदा लगाते होंगे ,…सड़क पर सौ की रफ़्तार से काल दबोचे तो कौन जिम्मेदार होता है ,….बीमारी से कम मरते हैं क्या !….. दवाई खाकर और ज्यादा मरते हैं ,…..जहर मिलावटखोरी में हिस्सेदारी नेताओं का धंधा है ,.. नशेड़ी मौतों की जिम्मेदारी कौन यादव खान गाँधी लेगा ,…इंसानियत मरती है तो बार बार मरे !… .देश बेचने वालों को सेल कामयाब करनी है ,..विदेशी मैनेजमेंट फंदा यही है …..फालतू हल्ला मचाना बेकारों का काम है ,..कीड़ों मकोडों का काम मरना ही है …..नेताओं का रोटी सेंकना !… महान नेता बार बार समझाते आये हैं .
दोतीन घंटे कोई नहीं पहुंचा तो कौन सा आसमान टूट पड़ा ,.आखिर अधिकारी लोग वीआईपी हैं ,..ऊपर से सब देखते थे ,……. मेला वाले जल्दी निपटाने के चक्कर में सबको स्टेशन ही भेज रहे थे ,…उनको क्या पता कब कौन गाड़ी कहाँ जायेगी ,….जहाँ मरना है जाकर मरो !……रेलवे वाले गरीबनवाज क्यों परेशान हों ,…जितने घुस सकते हो बेधड़क घुसो ,…जब गाड़ी होगी तो चले जाना ,….फिर जब मर ही गए तो क्यों चिल्लाना ,….रेलवे का अस्पताल भी तो मरा पड़ा था ,…मंत्रीजी के चेहरे पर कोई शिकन आई !…..चले आते हैं कुम्भ नहाने ,… घर से कफ़न लेकर चलना चाहिए ,…ठण्ड में भूखे प्यासे रहने से बेहिसाब पुण्य मिला होगा …मरने वालों को सीधा मोक्ष !… घर वालों को बोनस में लाखों का नजराना मिलेगा !….दुखी परेशान होना बहुत गलत है ,…सबके हाथों में लड्डू ही लड्डू हैं !..”
लेकिन खां साहब ने स्टूल छोड़कर महान त्याग कर दिया ,…जितना समेटना था वो निपट गया ,……..भैय्या जी तो मुख्यमंत्री बडी मेहनत से बने !……सोने की चिड़िया देश में गरीब नौजवानों को शाम की दवाई के साथ टेबलेट का रंगीन सपना बांटा ,…बेरोजगारी बाँट रहे हैं ,…..शुक्र मनाओ नेताजी ने मुफ्त वियाग्रा नहीं बांटी .. वर्ना तमाम मार्डन नारियाँ नौकरीशुदा होती …प्यारे पति बलात्कारी बनकर घरवाली करते !…….खैर ,.देश बांटने की योजना में गांधियों की बराबरी कर मुख्यमंत्री बने भैय्या जी !!……….. अपने साथ हवाबाज निकम्मे अधिकारियों की पीठ क्यों न ठोंके .. देश का माल सबकी तिजोरी में जाता है ,….जनता का काम मरना ही है,… पुलिस बेचारी को पीटने हांकने के अलावा कुछ सिखाया ही नहीं ,…… अफसरों को खाने से फुर्सत मिले तो जमीन दिखे ,…….समय से कोई काम नहीं हुआ तो क्या ,…हिस्सेदारी तो सबको मिली …हजारों खून माफ हैं !…….मुफ्त में पूरा खानदान देशसेवा तो नही करेगा ,..खानदान से याद आया ,…मौका ताडकर मुलायम चाचा ने गद्दार गांधियों पर खानदानी होने का आरोप ठोक दिया ,….. उलटे सवालों पर भाषण भी दे सकते हैं …
“..कसम लोहियाजी की .. हमने डीएनए नही चेक कराया है ,……. लुटेरे गाँधी लोग लटकों झटकों से भारत को बार बार गधा बना सकते है ,… हमारा प्रदेश पर कब्ज़ा समाजवादी कानून काहे नहीं बन सकता ,…..गुंडे हत्यारे लुटेरे अपहर्ता बलात्कारी विधायक मंत्री हैं तो का हुआ ,..आधे अभी तक सफ़ेद दिखते हैं……..किसान व्यापारियों के साथ भारत की बर्बादी वालमार्ट को गुर्राकर समर्थन करना हमारी मजबूरी थी ,……हमारा भी देश से का लेना देना है ….भ्रष्टंभ्रष्ट मौसेरे भाई बहन …कालाधन हमारा भी तो है ,…हम मायावती को उखाड़कर आये हैं ,… उनका भ्रष्टाचार खोदना हमारा काम नहीं है ,…हमारी उनकी सबकी जड़ें एक हैं ! … अपनी काहे खोदेंगे ,…हम पक्के समाजवादी है ,…हर कदम अमेरिका के साथ हैं ,…..मंहगाई बेकारी बीमारी से हमको कौनो तकलीफ नहीं है ,..लेकिन कोई प्रधानी कुर्सी का सपना पक्का करे तो समर्थन ले भी सकते हैं ,..आखिर में सबकुछ सोनिया माई ही बताएंगी .. कब तक बचाना है … कब गिराना है ,…कब चिल्लाना है ….कब पूँछ हिलानी है … कब पट्टा बांधकर मलाई चाटनी है !…….अब देखो इटली से हेलीकाप्टर खरीदे .. उसमें भी खाया ,….पकड़े गए तो वापसी करा देंगे ,…जरूरत पड़ी तो एकाधे की शानदार जेलयात्रा करवा देंगे ….जो मर्जी जांच करवा लो ,… बकरे ही पकड़ लो तो हम ईनाम देंगे ,… इटली वाली मालकिन तक कौन माई का लाल पहुंचेगा !…….टू जी से लेकर कोयले थोरियम तक सैकड़ों लाख करोड़ खाया ,… क्या बिगड़ा !….दलाल सगे बाप को नहीं छोड़ता ,… हम देश काहे छोडेंगे !… देश खाने के अलावा किसी बात के जिम्मेदार हम नहीं हैं !……हमारा लक्ष्य दो हजार चौदह है !..”…
…………….मक्कारी गद्दारी लूट की कालिख में चोटी तक डूबे नेताओं से कोई उम्मीद मूरखता ही तो है ,..जिम्मेदार हम भी हैं ,……हम अपनी जिम्मेदारियों से बचने के बहाने गढते हैं ,….
काले सफ़ेद विचारों के बीच तिथि पर नजर गयी ,..माघ शुक्ल पक्ष तृतीया !…….याद आया आज मूरख का जन्मदिन है !…….बचपन याद आने लगा ,…..तमाम अभावों में माँ का अनंत प्रेम !…..उनके व्यंजनों का स्वाद अक्षुण्ण है ,….गोंद के लड्डू ,…आंवला मुरब्बा ,…चूनी-भूसी की मसालेदार रोटी ,..कद्दू के फूल और बेसन की सब्जी आदि तमाम स्वादिष्ट पौष्टिकता …. बीमारी में माँ का सोना जागना एक समान होता ,….सर्दी गर्मी बरसात की कोई परवाह नहीं !… तमाम तकलीफों के बीच मेरी मुस्कान ही उनका सुख था ……बाबा मेरे लिए गाय जरूर पालते थे ,…..उन्होंने सदा मजबूती से अकेले चलना सिखाया ,….दस साल की उम्र में दीवाली की रात खेत सींचने भेजना ,……अँधेरी रातों में जंगलों के पार अकेले बच्चे को निमंत्रण में भेजना उनका अथाह विश्वास ही था ,…. नित्य श्री रामचरितमानस सुनना उनकी आदत थी ,…. डाट के डर से हम एकाग्र होकर पढते थे ,……… हमें शीर्षासन करने में बहुत मजा आता था ,….दुनिया उल्टी जो दिखती थी !…. तब दुनिया का सबसे रोमांचक काम गाय भैंस ढूँढना था ,…..गायें अपने आप आ जाती … हम नए गाँव और मित्र खोज लेते थे …
हम महीने में एक दो बार ननिहाल जरूर जाते थे ,. सात आठ किलोमीटर के बीच पड़ने वाले सभी गाँवों में जलपान विश्राम के पक्के अड्डे ,……अथाह प्रेमवर्षा में यात्रा की थकान कभी मिली ही नहीं ,…..दही मथती नानी हथेली मक्खन से भर देती ,.उसी से पेट भर जाता ……तब पेड़ों के नाम थे ,……पचासों पेड़ों के बीच रोज नयी पसंद का आनंद अवर्णित ही रहेगा ,….ननिहाल में सबका प्रेम मिलना स्वाभाविक था ,..घर गाँव समाज स्कूल सब जगह प्रेम ही प्रेम मिला ,…आठवीं तक नौ स्कूलों में पढ़ने का सौभाग्य भी मिला ,….जीवन में सबसे सब जगह अथाह प्रेम ही मिला ,…….मनमंथन में पीड़ा और बढ़ती है ,….. अनंत अमृतवर्षा के बावजूद यह मरुस्थल प्रेमहीन क्यों लगता है !……क्या पशुवत स्वार्थी हूँ !…..कीड़े मकोडों तक से समानुभूति रखने वाला भोलापन कहाँ गायब हो गया !………..क्या अंग्रेजी बाजार का असर इतना विषैला है जो लहलहाती प्रेमिल धरती को बंजर बना देती है !…क्या काले हथौड़े से माता पिता परिवार समाज के अनमोल संस्कार भी टूट जाते हैं !
हर सोच नया बहाना गढ़ने में समर्थ है ,…..तस्वीर का दूसरा पहलू भी होता है ,…उलटे माहौल में अपने मन विषय विकार वासना पर काबू न होना वास्तविक असमर्थता है ,….स्वर्णिम आत्मा पर कालिख लपेटने के जिम्मेदार हम हैं ,…..हर व्यक्ति स्वाभाविक मूर्ख लगने लगता है ,…हर असमर्थता को मिटाने में भारतीय सभ्यता संस्कार सक्षम हैं ,..जिसे मिटाने के लिए महामूर्ख सत्ताधारी राक्षस सतत प्रयत्नशील हैं ,…तो हमारी भी जिम्मेदारी है !
…..माता पिता बाबा और पूरी दुनिया ने सिखाया है .. सच के साथ धैर्यपूर्ण साहस से डटे रहो ,……दुनिया की कोई ताकत नहीं गिरा सकती है ,…ईश्वर कभी हमारा साथ नहीं छोड़ सकते !……….. परमपिता सदैव साथ हैं ,…फिर भी परमआनंद से अधिकांशतः वंचित हूँ !…..फिर एक बहाना मिलता है ,….. ‘प्रेमिल संघर्ष में भी आग निकलती है ,…यह तो उनकी शीतल कृपा है जो झुलसने से बचाती है …एक दिन मरुस्थल में हरियाली जरूर आएगी’ ….बहानों के ढेर तले हम सबकुछ भूलते ही हैं .
जन्मदिन निकल गया ,….प्रभु को कुछ नहीं अर्पित किया ,..प्रार्थना की …… ” वो सबकुछ ले लो जो तुमसे दूर करता है ,…सब अहंकार क्रोध संशय विषय विकार मिटा दो प्रभु ,…..मुझे ही मिटा दो !……लेकिन वो तड़प मत मिटाना जिससे मूरख तुम्हारी तरफ चला था ,…..उसके बिना तुम्हारा विष्णुलोक भी अस्वीकार है !…..उसके साथ सबकुछ स्वीकार है ….यह स्वाभिमान मत मिटने देना कि हम तुम्हारी विशेष अनुकम्पा वाले भारतीय मूरख हैं !,…..भारतीयता का उत्थान तुम्हारे ऊपर है भगवन ,…..मानवता की रक्षा का मात्र यही उपाय है …. भारतपुत्र तुम्हारे प्रिय पुत्र हैं ,…हमारा आत्मविश्वास वज्र से कठोर और हिमालय से ऊंचा करो …… हे भक्तवत्सल !….. विषभरे बंजर ह्रदय को फिर निर्मल प्रेममय करो !…..वहां बैठकर राक्षसों को उनके कर्मों का दंड दो !…… लुका छिपी अब बंद करो दीनानाथ !…….हम मूरख कीड़ों पर दया करो …..सामने आकर वही अबोधता दो जिसमें तुम्हारा ही स्वरुप था ,….सर्वत्र सिर्फ तुम मिलते थे !…………………………हमारी चेतनाहीनता उतना ही सत्य है जितना भारत पर निर्दयी लुटेरों का कब्ज़ा होना ,…………………….हे चैतन्यधामी !… कटु सत्य को तुम्हारे सिवा कौन बदल सकता है ,…हमें चेतनावान जिम्मेदार बनाना होगा .. तुम मूरख के जिम्मेदार हो !….. तुम गैरजिम्मेदार नहीं हो सकते !……कदापि नहीं ……सूर्योदय चंद्रास्त की प्रतीक्षा नहीं करता ……….हे परमेश्वर !….हर अचेतन ह्रदय में प्रेम वर्षा करने वाला सूर्य आलोकित करो ….यह कालिमा मिटाओ प्रभु !…यही तुम्हारे प्रेम की जिम्मेदारी है !….. कृपा करो प्रभु !..”…………………….
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