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यात्रा स्मृति ……प्रस्थान !

हमार देश
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कुछ देर विश्राम के बाद श्री द्वारकाधीश मंदिर गया ,…. द्वारिकाधीश के भक्तों की धुन में अपनी पीड़ा पाकर अद्भुत लगा ,…. दर्शन के बाद यमुना तट पर पहुंचा ,…..प्रणाम के काफी देर तक मौन रहा ,..फिर पूछ लिया ……” माता यह दुर्दशा !…कहाँ गया निर्मल शीतल प्रचंड वेग ,….!..”

माता पीड़ित मुस्कान से बोली … “.इन्द्रप्रस्थ वालों से पूछना था पुत्र !….और तुमने अब देखा है !..जर्जर तो कब से हो रही हूँ ,..मैं मृतप्राय हो चुकी हूँ लेकिन तुम्हारे पास समय नही है !..तुम आकर भी मलिन ही करते हो ,..तुम्हे विनाशकारी विकास चाहिए !…..”….. माता के व्यंग्य से और घायल हो गया ,..

“..तुम हमारी परेशानी जानती हो माता ,..इस अंग्रेजी व्यवस्था ने हमारा तन मन सब विषैला कर दिया है ,..राष्ट्र बीमार है ,… हमको बर्बाद करने वाले राक्षस ही हमारे रहनुमा बनते हैं ,.मदांध सत्ता अत्याचार की सीमाएं तोडती जा रही है ,..इन्साफ की गुहार लुटेरे वजीरों को माओवादी लाल सलाम सुनता है ,…..देशद्रोहियों की साजिशों से राष्ट्र भयानक खतरे में है ,………….लेकिन चिंता न कर माता,.. भगवन हमें जरूर बचायेंगे ..उन्होंने ही तुम्हारे पास भेजा है !…”…………..मेरी आशाभरी पीड़ा पर माता मुस्करा उठी .

“…मैं जानती हूँ पुत्र !…..प्रभु प्रदत्त अडिग साहस और वचन समर्पण के सामने कोई परेशानी नहीं रुकती है ,………..राष्ट्र बीमार है तो उपचार हेतु स्वामी रामदेव लाखों करोड़ों भारतपुत्रों समेत तुम्हारे बीच हैं ,….महापुरुषों की चरणरज लेकर तुम आगे बढ़ो !……तुम जानते होगे कि इन्द्रप्रस्थ में घिनौनी साजिशें होती है ,.नरपिशाच सत्ताधारी अपने घिनौने पाप छुपाने के लिए घोरतम पाप करते हैं !…….ये राक्षस ही पुत्रियों के बलात्कार करते करवाते हैं ,…नग्न हिंसा को इन्होने ही बढ़ाया है ,…….तुम्हारे बीच इन्होने अपने लोगों को भेजा,….शांतिपूर्ण विरोध में उन्होंने हिंसा करवाई,…….मानवता के हत्यारे राक्षस अपनी साजिश पूरी करने के लिए किसी की हत्या भी कर देते हैं ,……..इन्होने तुम्हारा बलात्कार किया ,तुमको बेदर्दी से कुचला है ,.. अब तुम्हे ही प्रताडित करने के लिए साजिशों का जाल बनायेंगे ,…इनको अंदर जरा भी मानवता नहीं है ,……घायल अचेत भारत को जगाने वाले महामानव स्वामी रामदेव के विरुद्ध भयानक षण्यंत्र हो रहे हैं ,…उनको चारों तरफ से बाँधने रोकने मिटाने के प्रयत्न होते हैं ,..देशभक्तों देवभक्तों को ताड़ना देना राक्षसी कर्म है !….झूठे दानवों ने सच्चे मानवों को सदा ही आरोपित अपमानित और प्रताडित किया है ,…नहीं करते तो उनका विनाश कैसे होता !…देशद्रोही गांधियों का विनाश निकट है !….”……..

“..हाँ माता !.. गांधी लोग विचित्र प्रजाति के राक्षस हैं !….ऊपर से पूर्ण अहिंसक अंदर से खतरनाक मगरमच्छ ,..इनके राज में अपराधी बलात्कारी भ्रष्टाचारी निर्भय हैं ,..खुद सबसे बड़े अपराधी हैं ,.. अपराध से पक्की रिश्तेदारी होगी ,…..बगुलाभगती साजिशों से इन्होने देश खा लिया ,…विदेशी डालर के बराबर वाला रुपया इनके राज में पचपन गुना गरीब हुआ,…इनकी तिजोरियों में हमारी सोने की चिड़िया कैद है ,…..खूंखार विदेशी लुटेरों के बाद भी एक भारतीय कमाकर दस परिजनों को खिलाता-पिलाता पढाता-लिखाता था !…इनके भयानक लूटराज में सब कमाकर भी एक माँ बाप को नहीं पाल पाते है ,..भ्रष्टाचार व्यभिचार शिष्टाचार बन गया है ,…..भगवन ने हमें सबकुछ दिया ,…पूरी दुनिया से बहुत ज्यादा संपन्न बनाया ,.लेकिन लुटेरों की साजिशों ने खोखला कर दिया !…..अब हडपने के लिए तो राक्षसों को मुह खोलना ही पड़ेगा ,..हमारा धन सभ्यता संस्कार प्रकृति सबकुछ लूटा है ,…..बचाखुचा विदेशी बापों के हवाले कर दिया ,….राक्षस अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए हम गुलाम शहंशाहों को अठन्नी चवन्नी फेंकेंगे ,…जनार्दन अपना स्वर्णिम हक छोड़कर ,.एक दूसरे का गला पकडेगी ..!..”…..मेरी पीड़ा और छलकी तो माता स्नेह से बोली .

“ऐसा नहीं होगा पुत्र !…राक्षसों का मुह खुला रह जाएगा !..भारतवर्ष खाने की क्षमता किसी राक्षस में नहीं है ,.. फिर अखंड महान भारत का उदय होगा !…तुम पुनः विश्वशक्ति और विश्वगुरु बनोगे !… भारतवर्ष में अथाह धन ,अनंत शक्ति ,अतुलित ज्ञान है ,…..पूरी दुनिया तुम्हारे क़दमों पर चलेगी !…..राक्षसों को मार भगाओ फिर रामराज्य जैसा सुख मिलेगा !….”…..मैं सुखद वचनों को शून्यता से ग्रहण कर रहा था ,…माता रूककर फिर बोली .

“…..मेरे मूरख पुत्र तुम पीछे देख रहे हो …आगे देखो ….धर्मविजय सामने है ,…साजिशों और अत्याचार के अतिरेक पर सर्वनाश होता है ,………उस साजिश को समझो जो ये नवगांधी आजमाने जा रहे हैं ,….इन्होने सदा तुम्हारी भावनाओं का उत्पीडन किया है ,……. बलात्कार को हथियार बनाकर राक्षस अपनी साजिश को अमलीजामा पहनायेंगे !. …देशद्रोही सत्ता देशभक्तों को सताएगी और बलात्कारी राक्षस न्याय के देवता होने का स्वांग भरेंगे !….. भ्रष्ट राक्षसराज बदले बिना न्याय संभव नहीं है ,….स्वामीजी और सभी राष्ट्रभक्त बलात्कारियों को कठोरतम दंड के पक्षधर हैं ,……स्वामी जी के इन्द्रप्रस्थ जाने पर ये साजिशों को और बढ़ाएंगे !….  भारतद्रोही तुम्हारे स्वेद रक्त मांस का धन बचाने के लिए तुम्हारी भावनाओं को हथियार बनायेंगे ,………पडोसी की पीड़ा में खुश और चलचित्र के झूठे धारावाहिक देखकर रोने वालों को बहकाना सरल हैं ,……इनका साजिशी नाटक समझना होगा ,….

तुमको प्रलोभन और दुष्प्रचार से भटकायेंगे ,….तुम्हारे अंदर आपसी दुश्मनी के बीज डालकर भारतद्रोही गांधी स्वयं को तुम्हारा तारणहार बताएँगे !…..ये तुम्हारी भावनाओं से खेलेंगे !…तभी तुम अपनी जिंदगी से खेलने का अधिकार दोगे !…….इनके राक्षसत्व का घनत्व बहुत ज्यादा है ,… सत्ता के लिए अपनों तक का रक्तपान करते हैं ,…तुम्हारे खंडित होने से इनका कार्य सहज होता है ,…..ये धर्म को भी फुसलाने डराने खरीदने का प्रयास करते हैं ,…फिर करेंगे !……..भारत के सभ्यता संस्कार भाषा को उपेक्षित करने वाला स्वयं अपना दुश्मन बन जाता है ,….ये खुद भी अपने दुश्मन हैं …पश्चिमी ताकतों का भारत को हडपकर सदा के लिए गुलाम बनाने का भयानक षण्यंत्र सफल नहीं होगा !…भारत का जागरण काल है ,….हर परिस्थिति में देवत्व से अहंकारी राक्षसत्व हारेगा !……इनके विनाश और भारत के उत्थान में ज्यादा दूरी नहीं है ,…प्रभु ने तुम्हे इतना दिया है लेकिन साजिशों में स्वाभिमान भूल गए !……..अब दैवीय राष्ट्रभक्त ने जगाया है तो आगे बढ़ो ! .. तुम सब अपनी कमियां दूर करो ,…लुटेरों की फैलाई कुसंस्कृति को बदलो …..तुम आत्मविजय करो पुत्र ! …….”

माता की बात पर मैं हंस पड़ा ….  “.. लीलाधर प्रभु से कहना माता ,…मैं कुछ भी नहीं करता तो आत्मविजय कैसे करूँगा !…. प्रयास भी किया तो अहंकार के बीज पड़ेंगे !..पीड़ा उससे अच्छी है माता !…… विजय उनकी ही होगी !…..विदेशियों की साजिशों के ठेकेदार गांधियों ने भारतवर्ष और भगवान को चुनौती दी है ,…तो वही निपटेंगे न माता !..मुझे क्या लेना देना !……..जब जो मन आये वही करता हूँ ! …अच्छा कभी गांधी बाबा से नहीं मिली माता !…”…………मेरी बाल जिज्ञासा से माता मुस्काकर बोली

“…. कल मोहनदास गांधी से कहा था ,…यह है तुम्हारे सत्य का असली सत्य !……तुम्हारे मानसपुत्र राक्षस बने !….क्योंकि वो पहले से राक्षस ही थे ,….तुम उनकी खूनी साजिशों को जानते थे ,……..फिरभी मौन रहे !…..आज समस्त राजतंत्र लगभग उनके जैसा है ,…. सब गुलाम हैं,.. गुलामी भारतवर्ष की परंपरा बन गयी है ,..सर्वपक्षी स्वर्णपक्षी भारत को आक्रांताओं ने घायलकर बर्बाद किया है ,…ये गाँधी उनके ही साथी हैं ,….इनकी साजिशों से हमारी संताने अपना धन धर्म परम्परा संस्कार प्रकृति सब लुटवाते आये हैं ,….. मायावी अत्याचारी लोग सरल मूरख मानवों की भावनाओं से खेलते हैं ,….इस धरा ने तुम्हारे अपराधों की सजा भुगती है !……अब तुम्हारी माला जपने वाले देशद्रोही लुटेरो को दंड मिलेगा ,…उन्हें जनता जनार्दन का अधिकार देना होगा ,….अथाह काला धन तुम्हारा नहीं पूरे राष्ट्र का है ,…भारत में भय भूख गरीबी अत्याचार भ्रष्टाचार बलात्कार तुम्हारे अमानुषी वंशजों की देन है ,…..यह काला धन जनता की सोच से बहुत ज्यादा है ,…एक दिन में भारत की तस्वीर बदलेगी !….डाकुओं के शासन में महान देश की सम्पन्नता ,.सरलता ,…संस्कृति ,…गौरव ,..सुख शान्ति सब लुटा है ,..अब सब वापस करना होगा ….अब साजिश की तो बहुत गंभीर परिणाम होंगे ,…अपने सफ़ेद राक्षसों को समझाना ,….नहीं तो तुमको भी राजघाट छोड़ना पड़ सकता है !..”…..

“..क्या उन्होंने शर्म से लंगोटी उतारी थी माते !….”…..मूरख की ठिठोली से माता खीज गयी .

“..कैसी मूरखों वाली बात करते हो पुत्र !……..अच्छा ..तुम मूरख ही हो ,..मूरख ही रहना ….अपने प्रिय मूरखों से भी मिलते रहना !………..योगेश्वर रामकृष्ण स्वयं सब करवा लेंगे !..उन्हें सबका उद्धार करना है ,.तुम्हारे जैसे करोड़ों पीड़ित ईशपुत्र राक्षसों का सर्वनाश करेंगे !…..सवा सौ करोड़ भारतमित्रों में उनका ही अंश हैं ,बस पहचानना शेष है !…. ..मानवता और भारत के दुश्मनों को कठोर दंड मिलेगा ,..समस्त भारतवासियों को न्याय मिलेगा !………राक्षसों के अन्याय अत्याचार और षण्यंत्र उनको ही मिटाएंगे ,….पराक्रमी युगदृष्टा के नेतृत्व में करोड़ों राष्ट्रभक्त अन्यायतंत्र को मिटाकर न्यायपूर्ण व्यवस्था बनायेंगे ,..भारत स्वाभिमान जाग्रत हो चुला है ,….राक्षसतंत्र की विनाशगाथा नियति लिख चुकी है ,..अहंकारी पापी जितना अकड़ेगे उतना चूर होंगे !……तुम अपनी कमियां देखकर ठीक करो !….अपने साथ भारतवर्ष बदलने का संकल्प लो !……………… हठ छोडकर समर्पित हो जाओ !…प्रभु तुम्हारे हठ का आनंद ले रहे थे ,…….अब जय-पराजय हानि-लाभ मान-अपमान सब भाव छोड़कर उनकी पराक्रमी लीला का आनंद लो !…….अज्ञान छोड़कर महाज्ञान आत्मसात करो ,….प्रभुकृपा से सब काम अतिशीघ्र पूरे होंगे !……..भगवत वचनपान के साथ आत्मविश्राम भी करना ,..विराट यात्राएं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं ,… मैं भी प्रतीक्षारत हूँ !…… कुछ समय प्रयागराज के आतिथ्य में रहूंगी ,……महाकुम्भ में साधु संतों तपस्वियों आमजनों के साथ चराचर जगत के समस्त देव देवियाँ आयेंगी ,..तुम भी वहां आना !……तुम नया संसार देखोगे ,….जहाँ न्याय प्रेम और धर्म ही होगा ,…….मानव उत्थान का मार्ग धर्म से ही निकलता है ,……..उस तरफ प्रस्थान करो ,. …निर्भय रहो !… आत्मविलासी परस्वार्थी बनो !!….विकार रहित बनो !!….इस पावन धरा का ऋण तुम्हारे ऊपर भी है ,..इसे अत्याचार व्यभिचार से मुक्त कराना तुम्हारा परम कर्तव्य है !….कर्तव्यनिष्ठ रजकण बनो !..”…………माँ यमुना के स्नेह भरे आशीर्वाद को अश्रुओं की गवाही में शिरोधार्य किया ,.. आत्मा से पुनः प्रणाम किया ,….उन्होंने फिरसे प्रभुदास होने का आशीर्वाद दिया !…..मैं आनंदविभोर होकर वापस चल.पड़ा …….एक और यात्रा समापन पर थी ,….. किन्तु यात्राचक्र कभी समाप्त नही होता है ,….एक यात्रा का समापन अगली की तैयारी मात्र है ,……….जय श्री राधेकृष्णा….वन्देमातरम !

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