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यात्रा स्मृति …….पीड़ित आनंद !

हमार देश
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आगे ,….बोझिलमन शून्यबुद्धि दुखीआत्मा लेकर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली पहुंचा ,…. आभार पर शिकवे शिकायत और कामनाएं भारी पड़ी ,…. वो कुछ नहीं बोले ,…….मन कुछ हल्का हुआ,..शाम हो चली थी ,.. दूसरे दिन वृन्दावन जाने की सोचते हुए वापस आ गया .

दूसरे दिन बांकेबिहारी मंदिर पहुंचा !….बांकेबिहारी की लीला अद्भुत है ,……त्रिलोकस्वामी के आगे हम भिक्षुक बन जाते हैं ,…. स्वार्थवश ही सही हम अहंकार से पूर्णतया मुक्त हो जाते हैं ,..पहले बांके बिहारी से कुछ कहने की इच्छा और साहस नहीं था ,… लेकिन वो तो सुन चुके थे …… लगा जैसे कह रहे हों …. ‘तुमने मेरी बात कब मानी जो मैं तुम्हारी मानता फिरूं’…………..उनको अनसुना करते हुए फिर सवालों की झड़ी लग गयी ……..यह राक्षस राज कब तक चलेगा प्रभु !…दरिंदगी का अंत कब होगा ,….हमारी माँ बहनों को घोर पीड़ा कब तक गोपाल !!!….उन्हें इन्साफ कौन देगा !…..राक्षसों से इन्साफ मांगने का हक भी नही है ,…लुटेरे बेदर्दी से कुचलते हैं !……ये बलात्कारियों के साथी हैं !…..वहशी सत्ता कब तक हमें सताएगी …हम मूरख अज्ञानी सही ….लेकिन तुम हमेशा उद्धार करते हो ,…हम अधूरे मानव अपने स्वार्थ अहंकार लालच वासना में धर्मविमुख होते हैं ,…..फिर भी तुम हमें नहीं छोड़ सकते हो ,…रक्षा करना ही आपका धर्म है ……..उत्तर मिला  ….छोड़ा कब है !… जानकर भी भ्रमित हो !……….अपनी पीड़ा में डूबे हो …दूसरों की कहाँ समझोगे ,..सबकी पीड़ा लोगे तो मैं तुम्हारी लूँगा !..कब लोगे ?………. करुण अट्टहास उपजा ,..यह तुम्हारे सिवा कौन जानता है प्रभु!……………..आत्मविमुख भक्त को सिद्धि नहीं चाहिए ,..मोक्ष भी नहीं मांगता हूँ,.. .. लेकिन मंगता हूँ तो कुछ न कुछ मागूंगा ही …..  पीड़ा सही नहीं जाती है ,. लुटेरे हमारी सुरक्षा कहाँ करेंगे,….लाखों करोड़ों माँओं की घोर पीड़ा सहलाने का हक भी नही है,………….राष्ट्रभक्तों को राजधानी आने का अधिकार नहीं है ,…वो एकजगह खड़े नहीं हो सकते हैं ,……अत्याचार के खिलाफ बोलने भी नही देते प्रभु ! ,…..राजधानी पर राक्षसों का कब्जा है !……हमारे ही जवानों से हमें पिटवाते हैं ,…अत्याचारी हमारी बहनों माताओं पर बेरहमी करते हैं ,……हमें कब तक रुलाओगे !….देश से भूख गरीबी लाचारी कब मिटेगी !…… उस लूले की तरह हूँ जो अपना घर जलता देख रहा है लेकिन पानी भरी बाल्टी नहीं उठा पाता है !…..अत्याचारियों के राज में लाचार आदमी अपनी माँ बहनों के बलात्कार का प्रतिकार भी नहीं कर सकता है ,……वो तो यही कहेगा भगवन…..कृष्णा आके मुझे बचाले !…. भगवन मेरा घर बुझादे !…………अयोध्या में भी यही तो कहा था …..भक्त को रोता देखकर तुमको दया नहीं आती  ……मूरख तुम्हारे अनुपम सौंदर्य जाल में नहीं आयेगा ,.. जब तक !……तुम शर्त भी तो जानते हो!……………….. वार्ता टूट गयी ….भगवान को भेंट की पुष्पमाला पापी गले में ही आ गिरी !…….. पुजारी तीन लड्डू हाथ में थमाकर बोले माला चाहे गौ माता को पहना देना !……………. प्रणाम करते हुए चरणोदक लेकर बाहर निकला ……बाहर भिक्षुकों की फ़ौज !..लाचारी देखकर आत्मा ने फिर धिक्कारा ,…….दो वृद्धों को लड्डू देकर एक का आनंद लेने लगा !……पानी पीते हुए फिर पूछा ….. .प्रभु यह लाचारी क्यों !………इंसानी आत्मसम्मान कैसे मिट सकता है … भगवन ये कैसी माया है !…….पीड़ा पर आनंद ही भारी पड़ा .

……………………कुछ खरीदारी करते हुए यमुना जी की तरफ चला ,….. कूड़े से पटी गलियों और बजबजाती नालियों में मस्त सूअरों का राज दिखा ,..मन फिर खिन्न हो गया ,……………. फिर मन में आया …चलो सैफई नई दिल्ली की तरह चमक रहा होगा ,..गुलामों को गन्दगी ही मिलेगी !……….हम अपनी संस्कृति स्वाभिमान खानपान भाषा ज्ञान भूल रहे है ,…. अहंकार क्रोध कपट वासना लोभ के गुलाम है ,….अत्याचार पर चीखते हैं ….राक्षसराज में सुरक्षा सुखशांति ढूंढते हैं ! ………भगवन की मानते तो भारतवर्ष कैसा होता ,..बिलकुल रामराज्य जैसा …इस वृन्दावन में लाखों गऊवें चरती थी ,….अब राक्षसी सत्ताधीश गाय गंगा को देश से मिटाने पर तुले हैं,…..  हमारा अथाह धन चंद राक्षसों की तिजोरियों में कैद है ,….हम कपटी मायाजाल में उलझे हैं  ! ……एक गद्दार अपने गाँव को चमका सकता है तो देशभक्त क्यों नहीं कर सकते हैं ,…हमारा धन खाकर इंसान ही अब राक्षस बनते हैं,…वही बलात्कार करते करवाते हैं !… भगवन का अंश होकर हम रघुवंशी यदुवंशी अगड़ा पिछड़ा दलित हिन्दू मुसलमान में फंसे हैं !………देशद्रोही हमें लूटकर चूसते हैं…. हम मंहगाई का रोना रोते हैं !….वो धर्मनाश करते और हम करवाते हैं ,.. !……..हम जब तक राक्षसों के गुलाम रहोगे ,… तब तक वो व्यभिचार अत्याचार करते रहेंगे ,…मुक्ति चाहते हैं तो एकजुट होकर राक्षसों को उखाड़ फेंकें !…..हम गुलाम नहीं शक्तिमान हैं !…….धर्म संस्कृति स्थापित करने आये स्वामी रामदेव को राक्षसी सत्ता व्यापारी चोर बेईमान देशद्रोही बताती है ,…आगे पता नहीं क्या क्या बताएगी ,..उनकी चले तो फांसी पर लटका दे ….लेकिन देश तो सच्चाई जानता है ,… हमारे लिए लड़ने वालों का साथ हम पूरी शक्ति से देंगे !…..सत्ता व्यवस्था सब हमारे लिए है ……. हमें ही खाती है तो मिटाना हमारा धर्म है ,… इसकी जगह अपनी व्यवस्था बनाएंगे ,…भगवान ने हर बार रास्ता दिखाया है ,..हम भूल जाते हैं !……जब राक्षस मिलकर खाते है तो हम मिलकर उनको सजा भी दे सकते हैं !…..देश के सेवक राक्षसों के गुलाम क्यों हैं ,………..लेकिन हम अज्ञानी तो भगवान को भी बांटते हैं !……मूरख विद्या पढेंगे तो यही होगा न !…….कहाँ से मिलेगी सुख शान्ति !!…..प्रभु भी क्या करेंगे ,..वो अपनी लीला में मस्त हैं  ,…पीड़ा का भी आनंद लेते हैं ……….. ये राक्षस उनके निशान भी मिटाना चाहते हैं… सदियों से राक्षसों की गुलामी करते हुए हम मूरखों ने उनको भी नही छोड़ा ,….हर गाँव गली में रामकृष्ण को मानने वाले देशभक्त है !…वो भी पीड़ा से तड़प रहे हैं ,…..लुटेरों ने फूट डाली लेकिन हम तो मिल सकते हैं ,…………..हम मिलते तो हर गाँव में उत्सव होते ,…..हर्षोल्लास छाता !….हर घर में सुख सम्पन्नता आती ,….मांए बहने सुरक्षित आसमान छूती ,……………मंदिर भगवन का ठिकाना है ,……मूरख भक्त वहां उनको भी ठगते हैं,….ठगों के बीच ऊब जाते होंगे ,…….बच्चों गउओं के बिना कैसे रहते होंगे !……………फिर पीड़ा बेकाबू होने लगी …….

आगे एक व्यक्ति का चश्मा बन्दरराज लेकर चम्पत हो गए !….सुना तो था ..देखा पहली बार कि वृन्दावन के बंदर चश्मा जरूर उतारते हैं ,……..तब तक एक साहब ने मेरे थैले पर धावा बोल दिया ,..मेरे समझाने का प्रयत्न किया कि इसमें तुम्हारे काम का कुछ नहीं है ..लेकिन नहीं माना !…थैला छीनकर ऊंची खंडहरनुमा दीवार पर चढ़ गया ,…मैंने फुसलाने का प्रयत्न किया … वापस कर दो भैय्या ..केले दिला दूंगा !!…लेकिन व्यर्थ ही रहा ,.. एक वृद्ध सज्जन बोले कि आप बैठो…खाने के सामान के अलावा कुछ नहीं लेते हैं ,.. अभी छोड़ देगा !….मैं प्रतीक्षा करने लगा ,..बन्दरराज ने सलीके से लिफाफा खोला ,…तब तक तीन और साथी आ गए ,…वृद्ध सज्जन ने कहा अब नुक्सान करेंगे !……………बन्दरराज मुझे घूरते हुए एक एक वस्तु का मुआयना करते रहे ,….. दया आई होगी तो कुछ काटा तोड़ा नहीं और न ही नीचे गिराया …अन्यथा नाली में ही जाता ,…पूरी जांच पड़ताल के बाद वो साथियों सहित चले गए ,..अब उतारा कैसे जाय !……फिर याद आया ..बचपन में पेड़ पर चढ़ने से पहले सोचते थे क्या ……कुछ पलों में सामान जेब में भरकर मैं फिर नीचे था ,….बन्दरराज और सज्जन का आभार करते हुए आगे चला !……..

लगा भगवन फिर बोले ,……मूरखराज तुम सब मेरे ही पुत्र हो ,.मैं हमेशा सबके साथ रहता हूँ लेकिन तुम नहीं देखते हो !…..जब तुम मुझे भूलते हो तो तुमको भी भूलकर पीड़ा का आनंद लेता हूँ ,…. अलग अलग होकर राक्षसों को राजधानियाँ तुम सौंपते हो !…….अत्याचार के खिलाफ जो आवाज नहीं उठाते वो भी तो अत्याचारी हैं ,…राक्षसों के खिलाफ एक नहीं होने वाले भी तो राक्षसी हैं ,..तुम्हारी मुसीबत का हल तुम्हारी उँगलियों में है ,….इसमें इतनी ताकत है कि उसके सैलाब में अत्याचारी तिनके की तरह उड़ जायेंगे !….लेकिन ऊँगली को दिमाग ही चलाता है ,..दिमाग से राक्षसी मायाजाल निकालकर मुझे बैठाओ !..सबकुछ दूंगा ,…….सच्चे कर्मों के ऊंचे फल ही मिलेंगे ,.. दुनिया में कुछ भी तुम्हारा नहीं है ,……लेकिन सबकुछ तुम्हारा ही है ,…तुम एक होकर राक्षसी ताकतों को भगाओ,…..फिर हर गाँव सैफई जैसा बनाना ,…हर घर लक्ष्मीनिवास बनेगा ,.पहले उस लायक तो बनो !…….बलात्कारी दरिंदों को प्राणदंड मैंने भी दिया था ,…फिर घोर दंड मिलेगा !…मेरी व्यवस्था से कभी कोई नहीं बचेगा !….तुम अपनी व्यवस्था देखो ,……..गिरोह बनाकर मासूम को कुचलने वाले बार बार प्राणदंड के अधिकारी हैं !……….राक्षसी सत्ता यह नियम नहीं बनाएगी ,… वो तो सभा भी नहीं करेंगे ,.. सोचते होंगे सर्दियों के दो चार दिन में तापमान और गिर जायेगा ,आक्रोश भी ठंडा हो जायेगा !……….वो खुद बलात्कारी हैं !..नियम बनाया भी तो पालन नहीं होगा …..राक्षसों के राज में बलात्कारी भ्रष्टाचारी अत्याचारी हमेशा बेख़ौफ़ ही होंगे ,…गाय गंगा भगवान हिन्दुस्तान के दुश्मनों को राज का अधिकार नहीं है ,… अधर्मियों की राजनीति धर्म सभ्यता संस्कार सब मिटाना चाहती है ,….ये देशद्रोही भारतवर्ष को उस मनमोहन की तरह बिना रीढ़ का गुलाम बनाना चाहते है ,….लेकिन अत्याचारियों का सदा सर्वनाश हुआ है ,………..मैं ब्रम्ह हूँ !…तुम ब्रम्हपुत्र हो !….मेरे वंशजों को राक्षसी राजतंत्र मिटाकर धर्मराज लाना है !…… पीड़ा के आग हर ह्रदय में फैलनी चाहिए ,…. इसी आग में राक्षसी सत्ता को जड़मूल से जलाना  !….मेरे पुत्र पुत्री तपकर शुद्ध होंगे ,…… राक्षस साजिशी और मायावी हैं ,..एकजुटता से इनका जाल तोडना कठिन नहीं होगा ,….अब आत्मविमुखता त्यागो !…… मेरे पुत्र पुत्री स्वाभिमान से संपन्न होकर फिर इनको मिटायेंगे,…तुम महान राष्ट्र की नयी गौरवगाथा अपने हाथ से लिखोगे !… अटूट डोर थामे कर्मपथ पर बढते रहो ,..हमदोनो की परीक्षा एक साथ पूरी होगी !….यमुना से मिलकर ही जाना …

मैं कुछ नहीं कह सका ,…शून्य भावनायुक्त आंसू फिर निकलने को व्याकुल हो उठे ,………वापस मथुरा चल पड़ा ,…रास्ते में वात्सल्य ग्राम जैसे प्रभु सेवा मंदिर देख बहुत खुशी हुई …..क्रमशः

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