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चिता भस्म !

हमार देश
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आदरणीय मित्रों ,बहनों एवं गुरुजनों ,..सादर प्रणाम …….कुछ दिन पहले धर्मनगरी उज्जैन में श्री महाकालेश्वर की भस्म आरती देखने का सौभाग्य मिला ,… उस अनुभव को व्यक्त करना करीबन नामुमकिन है ,..तब तन मन की होश कहाँ रहती है !……सुना है कि दिव्य आरती देखने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती है ,..शायद यह सच हो, लेकिन मृत्यु तो अवश्यम्भावी है ,..वो नागा साधु भी नहीं बच सकते जो पूरे समर्पण से भगवान की सेवा करते हैं ,..लेकिन वो मृत्यु भय से पार जरूर होते होंगे …ब्रम्हांड के स्वामी को चिता भस्म सर्वाधिक प्रिय क्यों ?…यकीनन इसके उत्तर हमारे धर्मग्रंथों में होंगे लेकिन मूरख दिमाग कहाँ रुकता है तो लिखने बैठ गया .

‘ सत्यम शिवम सुन्दरम ‘…सर्वमंगलकारी से महाकाल तक भगवान शिव के अनेकों रूप हैं ,…….मानव का कालाग्नि में भस्म होना अकाट्य सत्य है …मृत्यु ही परमसत्य है !….परमपिता का अभिषेक परमसत्य से.!! … यह मानव के लिए सन्देश है कि जलकर ही तुम परम पवित्र होगे ,…जिस तन से दुनिया में तमाम सही गलत काम किये वो अग्नि में जलकर परमपवित्र हो गया ,….इतना पवित्र कि वही मुझे सर्वाधिक प्रिय है !.

परम से पहले तमाम सत्य हैं ,…रक्त-मांस,मल-मूत्र के बीच माँ को असह्य वेदना देकर हम पैदा होते हैं ,..तब हम भगवान स्वरुप होते हैं ,….हमारे माता पिता यथाशक्ति पालन पोषण करते हैं ,…हमारी मात्रभूमि सबका पोषण करती है ,…. हम बड़े हो जाते हैं ,…गुरु से शिक्षा मिलती है ,…गुरु के रूप हमारे माँ बाप,मित्र, पडोसी, समाज ,विद्यालय पूरी प्रकृति ही होती है ,…हमें अच्छे बुरे दोनों ज्ञान मिलते हैं ,… संस्कारों कुसंस्कारों को अनुभव में ढालते हुए हम बड़े हो जाते हैं ,… हमारी भूमिका समयानुसार विस्तारित-संकुचित होती रहती है ,…हम नहीं सोचते कि हमारा जीवन क्या है ?..क्यों है ?…पैदा होना था हो गए … मरना होगा तो मर जायेंगे !…जिस पवित्र आत्मा को लेकर हम जन्मे थे उसे अपवित्र करने में कोई कमी नहीं रखते हैं ,…आखिर इन्द्रियां भी तो भगवान ने दी हैं ,…उनको न तृप्त किया तो पैदा होने का क्या लाभ ,..यहाँ हम चूकते ही हैं ,…इन्द्रियां कभी भी तृप्त नहीं होती ,..मन को वश में करना कठिन है !….कठिन को सरल करने के लिए भगवान ने हमें अवतारों ,.संतों ,..महापुरुषों के माध्यम से दिव्य ज्ञान दिया है ,…लेकिन हम तो मूरख हैं ,..भला मूरख को ज्ञान का क्या मतलब ,…इसलिए हम इन सब बातों से दूर ही रहना चाहते हैं .ठीक है ,..हमें दिव्य ज्ञान नहीं चाहिए !…..लेकिन हम अपनी जरूरतों से भी उदासीन हो जाते हैं ,…क्या यह हमारी मूर्खता की पराकाष्ठा नहीं है ,…हम कहेंगे कदापि नहीं !..हम अपनी जरूरतों के प्रति कहाँ उदासीन होते हैं ,…उल्टा अपनी सात नहीं तो दो चार पीढ़ियों की जरूरतों का सामान जरूर जुटाना चाहते हैं !………

असली खेल यही से शुरू होता है …..धरती पर आसुरी शक्तियां हमेशा रही हैं ,..आगे भी रहेंगी …उनको नियंत्रित करना हमारा परम कर्तव्य है ,..हम सबमें इनका प्रभाव है ,.जिसे नियंत्रित करके ही हम राक्षसों को रोक सकते हैं ,…सुसंस्कारी शिक्षा से यह संभव है ,…सात्विक भोजन ,भजन से हम भी सात्विक बनते हैं …..मौजूदा राक्षसी शक्तियां हमें तबाह करने का ताना-बाना मजबूत कर चुकी हैं ,…. दुर्जन हमें अपने जाल में फंसाने के लिए हमारी कामनाओं का चारा ही डालती हैं ,…नेतागिरी की चाहत वालों को सल्तनत ,…माया के चाहवानों को कुबेर का भण्डार !….काया हेतु गली मुहल्लों से लेकर पंचतारा होटलों की भरमार !….बेरोजगार को मुफ्तखोरी भत्ता ,..मजदूर को दारू का जुगाड़ !…किसान को मोबाइल मनोरंजन !….सूटेड बूटेड शहरी के लिए चमकदार माल ,रेस्टोरेंट दिखाते हैं …….मनोरंजन के नाम पर सबकुछ है  …बदले में लुटी हुई सोने की चिड़िया गुलामी में जकड रही है ,…..जाने अनजाने हम मानव ही मानवता के दुश्मनों के जाल बनते हैं ,…इसीलिए घर घर ज्ञान सुख समृद्धि की गंगधारा बहने वाले देश में हर चेहरे पर चिंता और असुरक्षा का खौफ है !…..राम-कृष्ण विष्णु शिव-शक्ति के आराधक देश में राक्षसराज क्यों है ?…

फूट डालकर लूटो राक्षसों का कामयाब मूलमन्त्र है !…….. धर्मों, जातियों फिर क्षेत्रों भाषाओं में ,…सब के बीच टकराव के सच्चे झूठे कारण पैदा करते हैं ,….सब जगह गुलाम सामंत बनाओ कि वही हमारे असली रहनुमा लगें ,…लोकतंत्र में राजशाही चलानी है तो विपक्षी सामंतों को भी मिलाओ ,…फिर राज पक्का है !……यह राज हमें सतत खा रहा है ,..अब निगलने को आतुर है ,……….राक्षसों का कमाल है कि गांधी नेहरू कांग्रेस जैसी भयानक विदेशी साजिशों को महान बताने वाले बुद्धिजीवी परमवैभव प्राप्त हैं ,..धर्मनिरपेक्ष भेड़ों की खाल ओढ़े भेडिये हमारे धन के साथ हमारे धर्म सभ्यता संस्कृति भी निगल रहे हैं .

इनकी कामयाबी के पीछे हमारी मूरखता का सबसे बड़ा योगदान है ,.सच्चे सुख को छोड़कर बाजारू सुख की कामना सभी मूर्खताओं की जननी है ,….अज्ञानी होने के साथ हमारे अंदर से भक्तिभाव भी लुप्त हो रहा है ,…दिखाने के लिए तो हम बहुत भक्त हैं ,..पूजा पाठ करते हैं !…तीरथ व्रत करते हैं ,….कथा कीर्तन भजन सुनते हैं ,…अब योग ध्यान भी करने लगे हैं ,..लेकिन इन सबसे भगवान गायब हो गए हैं ,…..हम भगवान के भक्त नहीं सिर्फ भिखारी हैं !…….जब हम भगवान का कोई काम नहीं कर सकते हैं तो उनकी कोई कृपा पाने के अधिकारी भला कैसे होंगे ,….हम अंदर से गंदे हैं तो बाहर इत्र लगाने का क्या लाभ !….पूर्ण कृपा के लिए भगवान के आराधकों को खण्डों से आजाद होना होगा ,….सद्कर्मी एकता से अपनी धरती का कोना कोना महकाना होगा ,…….भगवान की पूजा के समय तमिल मराठी पंजाबी गुजराती बंगाली होना कोई महत्त्व नहीं रखता है ,…..ठाकुर ब्राम्हण दलित पिछड़ा को वर्गानुसार कृपा नहीं मिलती है ,…दीनानाथ उन्ही के हैं जो उनके रास्ते पर चलते हैं ,..जिनके मन में सबके प्रति करुणाभाव है ,..यदि हम परहित नहीं कर सकते हैं तो भी सच्चा निजहित करने से भगवन प्रसन्न ही होंगे ,..सच्चा निजहित लूटराज से मुक्ति ,…गाय गंगा प्रकृति का संरक्षण ,..दैवीय ज्ञान और संस्कारों को बढाने में है !………….नशा व्यसन मुक्ति ,..आपसी रंजिशों के खात्मे से भगवान कृपा अवश्य मिलेगी ,…विदेशी साजिशों का अंत होगा !….सच को पहचानने में हमारी कमजोरी और भ्रम का कारण अज्ञान और अभक्ति ही है ,……चिताभस्म के परम सत्य तक पहुँचने से पहले हमें कई सत्यों का पालन करना होगा ,…….अपनी सोच में जरा बदलाव करने से हम पवित्र होते जायेंगे ,..तभी हम और हमारी संतति सुखी सुरक्षित रह पायेगी !………

निःसंदेह महामूरख हूँ ,…लेकिन बदलाव का प्रबल विश्वास है ,…ईश कृपा होगी ,…हम बदलेंगे ,.समाज बदलेगा ,….देश भी जरूर बदलेगा !..जय श्री महाकाल !!..वन्देमातरम !

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