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आदरणीय मित्रों ,.बहनों एवं गुरुजनों ,..सादर प्रणाम …..दीपपर्व चल रहा है ,…बच्चों में उत्साह और बड़ों में चिंता है ,…बच्चों को मंहगाई से क्या वास्ता लेकिन बड़ों के लटके चेहरे मजा किरकिरा कर देते हैं ,…. सामान्य बोलचाल में…दीवाली आई दीवाला निकालेगी !….खैर यह मजाक है ,..स्थिति इससे बहुत अधिक गंभीर है ,…हमारे सामने दीपपर्व की उपयोगिता समझने की चुनौती है .
चौदह वर्ष के वनवास के बाद भगवान श्रीराम लक्ष्मीस्वरूपा माता सीता के साथ वापस अयोध्या पधारे थे ,…अवध खुशी में सराबोर था ,….मात-पिता की आज्ञापालन करते हुए राक्षस कुल का विनाश कर रघुनन्दन अपने नगर आये थे ,…..अवध वासियों ने अमावस के अन्धकार को घृत दीपकों से मिटाया था ,… प्रभु श्रीराम ने सम्पूर्ण ब्रम्हांड को अन्धकार से मुक्ति दिलाई थी ,…दीपपर्व उसका आभार था !
आज रघुनाथ का भक्त भारत देश गहन अँधेरे में भटक रहा है ,..आततायी राक्षस सत्ता पर हैं ,….माया के गुलाम विधर्मी तीन तेरह का नंगा नाच दिखाते हैं ,.. अनैतिकता छाई है ….भगवान क्या करें !…वो तभी आयेंगे जब लाने का सामर्थ्य और आने का समय होगा ,…तब तक हर कण, हर तन, हर मन में बैठकर सब देखते रहेंगे,..आखिर इंसान उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है ,…..कितनी कशमकश है ,..राम रावण एक ही तन में !….कहीं राम सोये हैं तो कहीं रावण जाने को राजी नहीं है !…….दशहरा में रावण जलाया था ,… वो अपने स्वरूपों को देख फिर जीवित हो जाता है ,…अमृतकुंड अब नाभि में नहीं सर्वत्र है ! ….उपाय क्या है ?
हमें राम की रोशनी में रावण को भी उपयोगी बनाना होगा !…..अकेला रावण हमें प्रतिपल दुखी करता है ,…..राम अकेले हुए तो हम देवता बन जायेंगे ,…….भाई लोग जन्म जन्मान्तरों के पाप एक चढ़ावे में साफ़ करवाने के लिए लाइन लगाएंगे !……………मानो रावण अन्धकार है ,..एक के ऊपर दूसरी परत अँधेरा और घना करती है ,…काम क्रोध लोभ मद भी अन्धकार हैं ,..इनको भगाने से काम नहीं चलेगा ,…….हमें अन्धकार को रोशन करना होगा ,..मानव जीवन में हर चीज की उपयोगिता है ,…काम आवश्यक है ,…क्रोध भी जरूरी है ,..लोभ ही तो गतिमान बनाता है ,….मद के बिना चैन कहाँ !…..इनको संयम और सत्यता की रोशनी से सराबोर करने की जरूरत है ,…….काम गृहस्थ जीवन की आवश्यक विटामिन है !……दुर्जनों और अपनी बुराइयों पर क्रोध श्रेष्ठ फल देगा !…..मद कर्मयुक्त भक्ति का हो तो क्या कहने !……लोभ उत्थान का हो तो वाह-वाह बल्ले-बल्ले ..
वास्तविक अन्धकार हमारा अहंकार है !…..यही हमसे पाप करवाता है ,..यही लालच की अति करता है ,…यही हमें सबसे अलग करता है ,….इसीका दूसरा स्वरुप हीनभावना है ,….अहंकार की खुराक और अहंकार है !…जैसे बिच्छू के बच्चे अपनी माँ को खाकर पैदा होते हैं ,.वैसे एक अहंकार दसिओं को जन्म देता है ,.लेकिन खुद मिटता नहीं है ,….भोले-भाले पूजा-पाठी आदमी को जब अहंकार होता है कि वो एक लायक बेटे का बाप है तो आगे की कहानी बताने की जरूरत नहीं ,…कुछ न चाहते हुए भी उसे सबकुछ चाहिए !..अपनी इच्छाओं की बलि चढा भी दे तो ,परिवार ,..समाज …रिश्तेदार ……यार दोस्त !!…..नाक कटने का डर रहता है ,…फिर बहूरानी चांदी की खटोली लाती हैं तो उनका ठाठ !……गरीब की धेरी हुई तो बेचारी की बदकिस्मती !!…. हम अर्धनारीश्वर को भूल जाते हैं …. हम अपनों के ही दुश्मन बनते हैं ,..लेकिन अहंकार टूटने न पाए ,…टूट गया तो हीन हो जायेंगे ,…फिर या तो जिन्दा चिता सजेगी या फिर निर्दोष जेलयात्रा करेंगे !
सदियों से संत महापुरुष कहते आये हैं कि ‘मानुष की एक जाति सबै एकै पाहिचनबो’…..लेकिन हम या तो अहंकार में अकड़े रहेंगे या फिर हीनभावना में टूट जायेंगे ,..दोनों हालातों में जीत अँधेरे की होती है ,…खुद को श्रेष्ठ मानना बुरा नहीं है ,.. लेकिन दूसरों को कमतर आंकना भी तो अहंकार है !….यहाँ कुछ नए बिंदु आ जाते हैं ,..विषयान्तर हो सकता है खैर ,…धर्म के बिंदु !!….कैसे कोई धर्म सनातन से महान हो सकता है ,..यह किसी और का नहीं स्वयं मेरा मानना है ,……हिंदुत्व ही पूर्ण मानव धर्म है ,.यह अद्वितीय जीवन शैली है जिसको नकारने का अर्थ है खुद को अस्वीकार करना ,….(क्या यह मेरा अहंकार है !!…विनम्रता से कहूँगा नहीं …सत्य कहना अहंकार नहीं स्वाभिमान है )…..देश काल पात्र के अनुसार अन्य धर्मों की उपयोगिता कम नहीं है ,….लेकिन सनातन का अर्थ है सदा से सदा तक अक्षुण्ण !,… सब भारतीय धर्म हिंदुत्व को ही कालाग्नि में मांजते आये हैं ,..काल की कालिख सब पर चढती है ,…भारतीय धर्मों के अलावा सब अपना मूल छोड़ चुके हैं ,क्योंकि उनकी जड़े उथली हैं ,….तमाम विसंगतियों के बीच आज भी हिंदुत्व ही सर्वश्रेष्ठ है !……..ईसाईयों के टुकड़े शराफत के चोंगे में दुनिया हडपने के खयालात दिन दहाड़े पूरे करते हैं ,…सोनिया जैसे देशद्रोही और उनके असंख्य चाटुकार धर्मनिरपेक्षता की माला जपकर खुल्ला धर्मांतरण करवाते हैं ,…उनकी बत्ती गुल होने से पहले फोर्ड फाउन्डेशन जैसे ईसाई सत्ताखोरों के पहरेदार दूसरा रास्ता खोजते हैं ,…….. कबीलाई अराजकता काबू करते करते इस्लामी अमन लूट-मार-काट द्वारा श्रीराम-कृष्ण जन्म भूमि तक काबिज हो गया ,…तुर्रा यह कि चिरकुटिया संविधान और बिकाऊ न्यायतंत्र एक बटा तीन फैसला देते हैं ,..सच कौन नहीं जानता है !!…यदि इस्लामी विद्वानों में इस्लाम की समझ बची है तो बिना शर्त उनको सब अत्याचारी कब्जे छोड़ने का फैसला करना चाहिए ,…प्रतिकार में अथाह प्रेम मिलेगा !…सच यह भी है राम कृष्ण के वंशजों ने मजबूरी में इस्लाम कबूल किया था ,…आज वो गुलाम कठमुल्लों की कठपुतली बने हैं ,…नित बवाल की वजहें बनते हैं ,..कभी हाथ धोने पर दंगे होते हैं ,..कभी दुर्गा विसर्जन नहीं हजम होता ,..कभी विदेशियों के समर्थन में भारतीय अस्मिता को लात मारते हैं ,..जहाँ उनके पास शक्ति है वहां मानवता को बार बार शर्मशार करते हैं ,…तालिबानी गधे पूरी दुनिया को अपनी दुलत्ती पर रखना चाहते हैं ,…वास्तव में वो अपनी बर्बादी को जल्दी आमंत्रण दे रहे हैं !…एक खुदा को मानने वाले कठमुल्ले सौ टुकड़ों में बीच चौरस्ते पर खड़े हैं ,..क्यों ?.. ..क्योंकि वो अधूरे थे, अधूरे हैं और सच्चाई स्वीकार करने तक अधूरे ही रहेंगे !….जन्मदाता और पालक नारी को सामान की तरह लूटने और परदे में सजाने वाला धर्म हो ही नहीं सकता है !….सबकुछ जानते हुए भारतीय कठमुल्ले अपनी जड़ों से वैर क्यों करते हैं ?….क्या कोई कलमी पौधा जड़ों को काटकर फलित होगा ??…यह मूरखता भरा सवाल है !!…आखिरकार सत्य स्वीकारना ही सबके हित में होगा !…रसखान रहीम और अनेकों फकीरों ने स्वीकार किया है …एक खुदा को मानने वाले अलग मस्जिदों में नमाज पढते हैं ,…..लाखों करोड़ों देवी देवताओं को मानने वाला हिन्दू एकसाथ पूजा करता है ,…….प्रत्येक भारतवंशी हिन्दू है ,…हिन्दू सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान करता है ,….यह प्रकृति का मालिक नहीं उसका हिस्सा है ,.उसका आराधक है ,..यह मतलबपरस्त नही आभारवादी है ,…गाय गंगा खेत खलिहान पेड़ पौधे गाड़ी मोटर कलम कापी हथियार औजार सबकी पूजा कर आभार करता है ,..हिंदुत्व कट्टर नहीं विशुद्ध प्रेमी है !….यह लुटेरा नही दधीच की तरह दाता है …..यह भोगवादी नहीं समतावादी है ,..यह अर्धनारीश्वर का आराधक है !…..हमारा स्वाभिमान जागेगा तो न हम हीनभावना के अँधेरे में होंगे और न ही अहंकार की तीखे अँधेरे में तड़पेंगे!..
….स्वाभिमानी व्यक्ति के पास तटस्थ नजर भी होती है ,…इंसान अपनी गलतियाँ जरूर जानता है ,….एक बार क्षोभ होगा ….दूसरी बार भी हो सकता है ,..तीसरी बार भी संभावनाएं बन सकती हैं ,..लेकिन चौथी बार संभावनाएं नगण्य होंगी !….पांचवीं पार गलती की कोई संभावना नहीं होगी !…..स्वाभिमान जादुई चिराग है जो राह भी दिखायेगा और प्रकाश पुंजों को जोड़ेगा भी !….यही अंतर्मन के दीप जलाएगा !..
गौरवशाली अतीत वाला राष्ट्र अपने नागरिकों से उम्मीद करता है कि वो स्वाभिमानी बनेंगे और अपने लिए एक होंगे ,…अंग्रेजों और नेहरू की फूट डालकर राज करने की साजिश तोड़ेंगे ,..संघर्ष होते हैं लेकिन लुटेरों के अलावा अत्याचार किसी ने नहीं किया है !……युगों पुराने हृदयी सहअस्तित्व को दो सौ साल का झूठा इतिहास नही मिटा सकता है ,….एक माँ के चार पुत्र अलग रूप , कद ,ज्ञान ,कमाई वाले होंगे ,..लेकिन माता को सभी अतिप्रिय हैं,…. माता को संकट में देखकर नवजात लाचार बालक भी एकसाथ प्रतिकार करते हैं ,…हम तो हर तरह से सक्षम हैं ,…आज माता गंभीर संकट में है ,….गद्दार कपूतों ने देश को विदेशियों का गुलाम बना दिया है ,.. …अब हम न तो अहंकारी रहेंगे और न हीन असमर्थ !….हम मानवता राष्ट्र और धर्म के रक्षक हैं ,..हमारी सुरक्षा भी तभी होगी ,……हम रामभक्त ही नही उनके वंशज भी हैं ,..उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ना और सबको एकजुट होना सिखाया है ,…..लुटेरी सत्ताओं ने हमें बांटा काटा है ,….अब हमारा अस्तित्व दांव पर है ,…अब हम अलग नहीं रह सकते हैं ,..जातियों का अभिप्राय सिर्फ कर्म से है ,…जो अब मिश्रित हो गए हैं ,…करो तो मानो नहीं तो सब भारतीय मानव !..न कोई छोटा न बड़ा ,…लायकदार को सम्मान ढूँढना नहीं पड़ता है ,….हम सप्रेम स्वाभिमान सहित एकदूसरे को जगायेंगे ,..हम एकजुट होकर राक्षसों का विनाश करेंगे ,…..संयम और सत्य के रामदीप से अपने साथ पूरा देश रोशन करेंगे !…..जाति धर्म क्षेत्र भाषा सब टुकड़े एक भारत के अंग हैं ,.. जुड़े होकर भी अलग रहना हमारी मूरखता थी ,..हम मूरखता त्यागकर स्वाभिमानी भारतीय बनेंगे ,..हमारा स्वर्णिम भविष्य हमारी राह देख रहा है ,….हम आज भी सोने की चिड़िया हैं ,…हमारी सुख शान्ति और वैभव की लक्ष्मी मैय्या लुटेरों के कब्जे में है ,..जिसे हम लाकर रहेंगे !…..हम भी हिंदुत्व से दूर हुए थे…. जिसकी कीमत चुकायी है !.. पापों की सजा भुगतनी पड़ती है ,..भुगतनी भी चाहिए…. अब सबको सच्चाई के रास्ते पर लौटना ही होगा ,… नैतिकता बचाना है !..ज्ञान भक्ति और शक्ति की पवित्र त्रिवेणी से भवसागर पार समझो !….हमें अपने ह्रदय और विचार खोलने हैं !….संकीर्णता से विसंगतियाँ बढ़ती हैं ,..हर भारतीय का मूल हिंदुत्व है ,..उसको सींचना सबके हित में है ,…हिंदुत्व सनातन सत्य मानवधर्म है ,.. धरती पर धर्महीन जानवर भी नही हैं !…धर्म से निरपेक्ष भ्रष्ट लुटेरों की बात और है ,…उनके विनाश तक हमारा हर दिन दशहरा और हर रात दीवाली होगी !……..रावणों को राममय करते हुए प्रकाशपुंजों को जोड़ते ही जायंगे …अँधेरा धरा से मिटकर रहेगा !….बस अंतर्मन के दीप जलने में देर है ,..राम प्रतीक्षा करते होंगे !……………………….लेख फिरसे लंबा हो गया ,……बाकी फिर कभी ……दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !….वन्देमातरम !
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