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कहानी भारतपुर की !

हमार देश
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एक समय की बात है ,….पृथ्वी पर जम्बूदीप के भरतखंड में भारतपुर नाम का गाँव था ,……..बहुत विशाल ,हर तरह से समृद्ध संपन्न ,… सामजिक समरसता में ज्ञान ही सम्मान का पर्याय था ,…. शास्त्र ,शस्त्र , कृषि और वाणिज्य का ज्ञान क्रमशः सम्मानपूर्ण थे ,….वैदिक विधि विधान जीवन में समाहित थे ,…सम्पूर्ण प्रकृति को ईश्वर का प्रतिरूप मानते थे ,…उसीका प्रतिरूप मानव को माना जाता था ,…..संस्कारों से जीवन में धर्म और विज्ञान का समावेश था ,….ईश्वरीय वरदानों के साथ उनके अवतारों की पूजा होती थी,…सब कुछ सहज सरल और शांतिपूर्ण था ,.गाँव विशाल था तो अलग अलग क्षेत्रों तमाम राजा थे ,..तब राजा को ईश्वर का अवतार माना जाता था ,..राजा भी प्रजाहित के दायित्वों के पालन के लिए सबकुछ न्योछावर करने को तत्पर थे ,…राम और कृष्ण सबके आदर्श थे ,….पूरी तरह से धर्म का राज था .

समय के साथ राजाओं की शक्ति के साथ लोलुपता भी बढ़ने लगी ,….. उत्तराधिकार के लिए अपनों का खून भी बहने लगा ,…आपसी संघर्षो का उदय हुआ ,..एक दूसरे का हित साधने के बजाय एक दूसरे का क्षेत्र हडपने के लिए युद्ध होने लगे ,…नवीन अनुसंधान और प्रजाजन को शिक्षा देने वाले ज्ञानी विद्वान राजाओं की चाटुकारी करने लगे ,…महान सभ्यता का संरक्षक वर्ग कर्तव्यविमुख होने लगा ,…ज्ञान और शक्ति के बीच का अंग भक्ति कम होने लगी ,..जिससे स्वार्थ और अहंकार पनपा ..लेकिन महान सभ्यता को कोई अंतर नहीं पड़ा क्योंकि वैदिक शिक्षा और रीतिरिवाज आमजन में गहरे समाये थे ,…गाय ,गंगा, धरती को माता सामान और माता पिता गुरु को देव समान मानने वाली प्रजा पूरी तरह से नैतिक और संपन्न थी ,…गाँव सोने की चिड़िया ही बना रहा .

इस सोने की चिड़िया की ख्याति दूर दूर तक फैली थी ,…दूर कबीलों के धर्मान्ध लालची लुटेरों ने धर्म के नाम पर इस गाँव पर आक्रमण करना शुरू किया ,…..भारतपुर के राजाओं ने लुटेरों का सामना शौर्य से किया ,…अनेकों ने बलिदान दिया,… लुटेरो से आत्मसम्मान बचाने के लिए पतिव्रता स्त्रियों ने जौहर व्रत लिया ,…….साहसपूर्ण युद्धों में युद्धकला के अनुसंधान और अभ्यास की कमी से भारतपुर के सेनानी हारते गए ,…गाँव धन और धर्म दोनों गंवाता रहा  ,….गद्दार जयचंदों ने भी लुटेरों का काम आसान किया ,…एकजुट होकर पूरे गांव की रक्षा के बजाय अपने क्षेत्रों में रहने के कारण गाँव के हिस्से उनके कब्जे में जाते रहे ,…लालच और तलवार से उन्होंने वैदिक सभ्यता को लहूलुहान किया  ,…..बहुतों ने गुलामी मंजूर की लेकिन ज्यादातर ने सिर कटाकर आत्मसम्मान बचाया …..तमाम मारकाट के बाद भी महान सभ्यता की जड़ें नहीं उखड़ी ,..क्योंकि उसकी जड़ें गुरुकुलों में जमी थी ,..

फिर इस गाँव पर गोरे गाँव के की नजर पड़ी ,..जो पूरी दुनिया को अपने कब्जे में करना चाहते थे ,…वो व्यापारी बनकर आये और धीरे धीरे शक्ति बढाने लगे ,…..आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से वो अपनी सभ्यता का प्रसार करते गए ,…फूट डालकर राज करने की कला से राजे रजवाड़े उनके गुलाम बनते गए ,…आमने सामने बैठकर शांतिवार्ता करने में अपनी तौहीन समझने वाले राजा उनके पालतू कुत्तों की तरह हो गए ,……गाँव की दुर्दशा से आम जन में समृद्ध संस्कारों की जगह अन्धविश्वास और कायरता जमने लगी ,..ज्ञान और शक्ति विहीन सूखी भक्ति से जीवन पार करने लगे,…लूटों से सोने की चिड़िया कंगाल होने लगी ,… दोहरी मार झेलती जनता भगवान भरोसे हो गयी ,.लेकिन अपनी मिटटी के लिए मर मिटने वाले कम नहीं थे ,..उन्होंने गोरों को भगाने के लिए तमाम लड़ाइयां लड़ी ….लेकिन चंद जयचंदों और स्वार्थपरता के कारण विजय नहीं मिली ,……गोरों की साजिशें बहुत गहरी थी ,.वो गाँव पर हमेशा के लिए कब्ज़ा करना चाहते थे ,…..उन्होंने गाँव के गुरुकुल बंद कराये ,….समृद्ध ग्रामीण उद्योगों को बंद करवाया ,…पवित्र न्यायप्रणाली को बर्बाद किया ,….समरसता के अमृतकुंड में वैमनस्यता का जहर घोला ,…जातिओं के बीच नफरत फैलाई ,…गौपालक देश में गौकशी की शुरुआत कराई ,….कानून कायदा के नाम पर तमाम तरह की बेड़ियों गाँव को जकड दिया ,.लेकिन आजादी कि लौ बड़ी होती गयी ,….एक तरफ मिटटी के दीवाने सिर पर कफ़न लपेटे घूम रहे थे ,…तो दूसरी तरह अहिंसा के हथियार से लड़ाई चलती रही ,…तमाम बलिदानों के बाद आखिरकार गोरों को जाना पड़ा ,…लेकिन धूर्तों ने जाते जाते गाँव के दो टुकड़े कर दिए ,….इससे भी बड़ी साजिश यह हुई कि भारतपुर की गद्दी अपने पालतू जयचंद को सौंप गए .

खंडित लोकतंत्र में तबसे भारतपुर पर इस जयचंदी खानदान का राज था ,.. दो चार बार मुखौटे बदले ,…लेकिन वही लुटेरी अंग्रेज व्यवस्था ही कायम रही !…..इस खानदान की साजिशों से देश पार नहीं पा सका ,….उसके पीछे बाहर गाँव वालों की शक्ति भी है ,..गाँव में अनेकों सामंत बन गए ,….अब पूरा गाँव ठेके पर चलने लगा ,..कोई जाति  ,कोई धर्म तो कोई क्षेत्र का ठेका उठाकर सब लूटने लगे ,……उजड्ड अल्पसंख्यकों को उदार बहुसंख्यकों के खिलाफ गोलबंद किया गया ,…..बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक बनाने की साजिशें भी बराबर चलती रही ,…धार्मिक वैदिक सभ्यता के जनक भारतपुर में धर्म की बात करना गुनाह हो गया ,…गौकशी के साथ गंगा की बर्बादी और ताकतवरों का अत्याचार आम बात हो गयी ,…भक्ति ज्ञान और साहस की जगह छल कपट और अत्याचार ने ले ली ,…सदिओं की गुलामी और लूट से आम जनता मूरख बन गयी ,…उसने अपना आत्मसम्मान गिरवी रख दिया …..अत्याचारियों के सफ़ेद कपडे और लटके झटकों में अपना इलाज ढूँढने लगी ,.. बाहर गाँव के लुटेरों ने वेश बदलकर लूटना शुरू किया ,….भ्रष्ट लुटेरों के राज में समृद्ध और नैतिक गाँव गरीबी ,बेकारी,बीमारी नशों और बाजारू अनैतिकता के जाल में पूरी तरह फंस गया ,……फिर एक साहसी सन्यासी ने देश जगाने की ठानी !……….बीमार देश को योग और आयुर्वेद से ठीक करने का अखंड संकल्प देखकर जाग्रत जनता उनके पीछे हो गयी ,.भारतपुर का स्वाभिमान जागने लगा ,..दूसरी तरफ बाजारवाद में डूबी और भ्रष्टाचार से तंग जनता को साथ लेकर एक संत सिपाही ने हुंकार भरी ,..रातों रात उसकी ख्याति बुलंदी पर पहुँच गयी ,…लेकिन सदियों के अँधेरे को चुटकी में दूर करना संभव नहीं था ,… सत्ता पर लुटेरे जयचंदों की पकड़ मजबूत थी ,..दोनों को एकबार हार मिली ,…लेकिन वो हारे नहीं थे ,… इन हारों में भी रोशनी दिखी ,….

इन हारों की असली जिम्मेदार मूरख जनता ही थी ,…वो मूरख जनता जो अपना इतिहास गौरव सब भूल चुकी थी ,…महान ऋषिओं तपस्विओं के ज्ञान और अनेकों महान बलिदानों को मानते हुए भी उनके पीछे एकजुट नहीं थी ,…अपनी भाषा ,सभ्यता से प्रेम के बावजूद उसको पराधीन मानती थी  ,…. मंदिरों में चढावा चढाकर भीख मांगती थी … लेकिन अपनी औलादों की कुशलता के लिए एकजुट होकर लुटेरों से संघर्ष करने में कतराती थी ,….. अपने खंड की चिंता तो करती है लेकिन पूरे गाँव की चिंता नहीं करती थी ,..मूरख भूल गए थे कि गाँव जलेगा तो सबको स्वाहा होना है ,…………इसी दौर में कुछ पक्के मूरखों ने एक दल बनाया ,…कुछ दिन जनजागरण के बाद वो खुद भ्रमित हो गए ,… भक्ति में अहंकार पनप गया ….लेकिन अहंकार तो टूटता ही है ,…………..एक दिन सबका टूटा!!…. सबने मिलकर सब खंडों को जोड़ दिया ,.सबने भारतपुर की रक्षा और निर्माण का व्रत लिया ,….कर्तव्यविमुख लोगों को कर्तव्य का भान हुआ ,…खंडित लोकतंत्र मजबूती से खड़ा हुआ ,…गद्दार जयचंदों ने गाँव से माफ़ी मांगी और सब धन देकर अपनी सजा भुगती ,...नशों की महामारी बंद हुई और योग का प्रसार हुआ ,……भारतगाँव में नयी व्यवस्था का उदय हुआ ,….वंचित जनता को समान अधिकार और सम्मान मिला , ……..बाहर गाँव के लोग हैरान थे,.. उन्होंने भारतपुर को नमन किया ,….धन आने से धर्म की स्थापना सरल थी ,..अधर्म और भ्रष्टाचार का नाश् हुआ ,..रामराज्य फिर साकार हुआ …ज्ञान ,शक्ति और भक्ति की त्रिवेणी फिर बहने लगी …..मात पिता का सम्मान होने लगा ,….गाय गंगा और धरती लहलहाने लगी  …सबके घरों में सदाचार सुख समृद्धि की अखंड ज्योति जलने लगी !….वन्देमातरम !

(यह कथा मानव अपने पुत्र को सुनाएगा जब वह आठ वर्षों का होगा )…

[ महान हास्य कलाकार श्री जसपाल भट्टी जी को हार्दिक श्रद्धांजलि देता हूँ ,..आम आदमी के हित में कला के माध्यम से व्यवस्था पर सतत चोट करना उनकी महानता थी , …उनके असामयिक निधन से सशक्त आम आवाज बंद हो गयी ,…. विश्वास करता हूँ कि उनके रोंपे पौधे उनकी कमी पूरी करेंगे  ,..प्रभु उनको अपने श्री चरणों में स्थान दें ,…उनको शत शत प्रणाम ]



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