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आदरणीय मित्रों ,बहनों एवं गुरुजनों ,..सादर प्रणाम … फिर दशहरा आ गया है ,…देश के कोने कोने में रावण फूंके जायेंगे ,…लेकिन सत्य की विजय का यह त्यौहार अधूरा लगता है ,…राम विजयी हैं ,.. लेकिन रावण भी तो अपराजित है !….. भारत में राक्षसी शक्तिओं की मुख्य प्रतिनिधि सोनिया गांधी रावण के बंधे पुतले पर तीर चलाएगी तो सदियों से समाधिस्थ महान आत्माओं की हंसी भी नहीं रुकेगी .. इनके कारनामों पर बेचारा रावण भी बिना पानी के डूब मरे !……खैर,….पावन त्यौहार पर खलमंडली की वंदना नहीं करूँगा ….मूरख बुद्धि से परखना चाहता हूँ कि रावण आज अपराजित क्यों है ,…… आपसब जानते हैं कि पक्का मूरख हूँ ,…लेख को गंभीरता से पढ़ना आपकी उदारता ही होगी !
लंकाधीश रावण के पक्ष विपक्ष में काफी कुछ कहा सुना जाता है ,..कुछ विद्वान कहते हैं कि सीता माता के हरण के अलावा रावण में सब सद्गुण ही थे ,…वो सदाचारी और प्रकांड पंडित था ,….हालांकि वो भूल जाते हैं कि अशोक वाटिका में सीता मैय्या से जोर जबरदस्ती करने का साहस रावण में नहीं था ,..वो जानता था कि माता के हाथ का तिनका उसको भस्म करने के लिए पर्याप्त है ,..वो श्रीहरि के हाथों ही मरना चाहता था !..उनको अपनी शक्ति दिखाकर मोक्ष लेने की लालसा ने रावण से ये मामूली पाप करवाए थे ,……अन्यथा यह सोचने का विषय है कि दंडकवन के वासी ऋषि मुनि किन पेटो में समाये थे ,….उनके इलाकों में यज्ञादि धार्मिक कर्म बंद क्यों थे ,…दूसरे लोकों के वासी देवता भी उससे भयभीत क्यों रहते थे !…..वास्तव में शक्तिमान ज्ञानी का अहंकार और पाप अक्षम्य होता है ,….रावण एक महापापी और अहंकारी महाज्ञानी था !……खैर इन बातों का कोई लाभ नहीं ,….वो त्रेता युग था ,…..तब बिना पेट्रोल के पुष्पक उड़ते थे ,…आज बिना घोटाला किये मच्छर नही चूसता है !…तब जीवन मूल्यों और आदर्शों के लिए था ,..अब जीवन का आदर्श मूल्य (कीमत) है !….अब के शोर में तब को समझने का प्रयास ही गलत है !……
आज रावण बुराइओं का प्रतीक है ,……सब बुराइयों का मूल कारण काम ,क्रोध, मद, लोभ हैं !..वास्तव में ये खुद में बुरी नहीं हैं ,.ये मानव की आवश्यकता हैं ,…इनके बिना मनुष्य शून्य है ,..वो या तो जड़ होगा या सिद्ध संत या फिर भगवान !…. निजता का भाव ही इन्हें बुरा बनाता है ,…..इन चारों के युग्म और बिखंडन से अनेकानेक बुराइयां जन्म लेती हैं !….जैसे अहंकार, अनैतिकता ,ईर्ष्या, द्वेष आदि !….. इन्ही से सारे पाप होते हैं !……भ्रष्टाचार , अत्याचार ,अनाचार सब इनका ही फल हैं ,..जो अंतत खुद पापी के लिए भी कष्टकारी होते हैं !…..प्रेम, स्नेह आदि अच्छी भावनाएं भी इनसे मिलकर अद्भुत या वीभत्स रूप धारण कर लेती हैं ,… बुराइयों का बहुविधि वर्गीकरण किया जा सकता है,….जिनपर निःसंदेह ही ज्ञानिओं को ग्रन्थ लिखने चाहिए ,..शायद लिखे भी होंगे !………
सबकी तरह मैं मूरख भी इन चारों को जानता हूँ ,.करीब से मिला जो हूँ ,…यथासंभव बिंदुओं पर विचार करने का प्रयास करूँगा !……. ये निःसंदेह सबके अंदर होते हैं ,….लेकिन सदैव कार्यशील नहीं रहते हैं ,…..काम तभी जागता है जब कुछ देखते या सोचते हैं !….क्रोध तभी आता है जब हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता है ,…मद पदार्थजनित भी है और भावजनित भी!… लोभ कुछ पाने की इच्छा है,… वास्तव में ये चारों ही सुख और दुःख का आधार हैं,…..,…आइये अब अलग अलग इनको देखने का प्रयास करते हैं ….
काम जीवन और संतति के लिए नितांत आवश्यक है ,..यह गृहस्थ जीवन में आनंद और प्रेम का प्रमुख स्त्रोत भी है ,….जब काम मर्यादा की सीमा तोड़ता है तो यह विकृत होकर पाप बनता है ,…विकृत होने के दो मुख्य कारण हैं,.आश्चर्य है कि दोनों विपरीत भी हैं ,..प्रथम खुलापन ,..द्वितीय निषेधता !…….खुलापन आमंत्रण देता है तो निषेधता का दबाव लहर उठाने के लिए पर्याप्त शक्ति बनाता है !…..जब अल्पवयस्क किसी को प्रेमालाप करता देखते है , तो उत्सुकता जन्मती है,….चाहे वो चित्र में देखे ,..चलचित्र में देखे या प्रत्यक्ष देखे,..दूसरी तरफ निषेधता वास्तविकता से दूर रखती है ,…..यहीं से बुराई का जन्म होता है ,…काम कभी तृप्त नहीं होता ,..यह प्यासे कुंवे जैसा है ,..यहाँ लैंगिक स्पष्टीकरण का कोई अर्थ नहीं है ,..क्योंकि सभी समान भागीदारी रखते हैं !…अतृप्ति से कुंठा भी जन्मती है जो आयु बंधन तोड़कर महापाप करवाती है ,….अब प्रश्न यह उठता है कि काम को मर्यादित कैसे किया जाय !……बच्चों को यौन शिक्षा इसका उपाय नहीं है ,..यह ज्वलनशीलता को बढ़ा सकता है !…..घर बाहर नैतिक शिक्षा और योग से अवश्य ही स्थिति में सुधार हो सकता है ,….हर काम में महिला पुरुष की समान भागीदारी से नकारात्मक आकर्षण कम होगा ,…मर्यादा न खुलेपन से आएगी और न ही निषेधता से ,..हमें निषेध खुलापन चाहिए ,..खुलापन स्वस्थ विचारों में हो और अनैतिकता निषेध हो !….आगे बढते हैं .
क्रोध आवेगिक ऊर्जा है ,…पुरानी कहावत है कि हम क्रोध उसी पर करते हैं जिससे प्रेम करते हैं ,…यह अर्धसत्य है !… अपेक्षाओं के विपरीत परिणाम से हम क्रोधित होते हैं ,…क्रोध दबकर आक्रोश बनता है और आक्रोश की आग दबकर कुंठा का लावा बनाती है ,..जो सर्वस्व नाश भी कर सकती है ,…इसलिए आवश्यक है कि या तो क्रोध को पैदा होने का अवसर ही न दें या फिर उसे पालकर सकारात्मक दिशा में प्रेरित करें ,..
मद बहुत खतरनाक है !….पदार्थ जनित मदों में शराब ,अफीम,गांजा भांग अब पुराने हो चले हैं ,..स्मैक ,हेरोइन और अन्यान्य रासायनिक नशे आधुनिक साधन हैं ,…पान ,गुटखा ,बीड़ी, सिगरेट,खैनी सामान्य बात है ,..लगभग प्रत्येक घर में इनका सेवन करने वाले हैं ,…सवाल यह है कि इनका सेवन क्यों और कैसे शुरू होता है ?…… मैं स्वयं बहुलतावादी नशेड़ी रहा हूँ ….शराब गुटखा सिगरेट बीड़ी खैनी का लंबे समय तक सेवन किया है ,…भांग गांजे का स्वाद भी ले चुका हूँ !…..नशों की शुरुआत अक्सर संगति से होती है ,.. परिवार में कोई नशे का सेवन करता हो और बाहर मित्रमंडली आमंत्रित करे तो शुरुआत होने में तनिक भी देर नहीं लगती है ,…एक बार शुरू हुआ तो काम की तरह अतृप्ति लत को आगे बढाती रहती है ,…काम विकारों में भी मद का बड़ा योगदान है ,…..पिछले दिनों राहुल गांधी का बयान सत्य से दूर नहीं था ,अंदरखाते की खबर झूठी नहीं होगी !….पंजाब के अधिकतर युवा नशों में लिप्त हैं ,…कुछ सोशल ड्रिंकर हैं तो कुछ डेली सोसाइटी सजाते हैं !..गाँव शहर हर जगह हर तरह के नशे प्रचुरता से उपलब्ध हैं ,..हमें कदापि हैरानी नहीं होनी चाहिए यदि बहुत बड़े सफेदपोश इनके काले धंधों में शामिल हों !……..नशों से मुक्ति का साधन कठोरता से रोक और सद्गुणी शिक्षा,.योग आध्यात्म ही है ,…श्री श्री रविशंकर जी के प्रयास आत्मा से नमनीय हैं ,…….दुर्भाग्य से आजकल नशे से मुक्ति तथा हम तुम और बैगपाइपर की सूचना एक ही जगह दिखती है तो चुनाव बैगपाइपर का ही होता है क्योंकि उसमें नायक है !..और मदमाती नायिका भी !……..गुटखा खैनी सिगरेट की जगह आयुर्वेदिक स्वास्थ्यकारी मुखशोधन अच्छे विकल्प हैं ,..
दूसरा मद भावजनित है !…अपनी शक्ति ,क्षमता पर मोहित होना भी मद है ,…..मैं-मेरा ..उद्गम स्थल है तो अहंकार और विनाश परिणाम ,.लेकिन यह सदा विनाशकारी ही नहीं होता है ,…मेरे प्रभु ,…मैं उनका पुत्र ,..मेरा परिवार ,..मेरा देश ,..मेरी दुनिया ,…जैसी व्यापकता सार्थकता भी दे सकती है !
लोभ के स्वरुप भी अनेक हैं ,..जो हमारे पास नहीं और दूसरों के पास है उसे पाने की लालसा ही लोभ है ,.. प्राप्ति के अनुचित उपाय ही इसे पाप बनाते हैं ,..लोभ और मद मिलकर भीषण भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं !……लोभ सदा नुक्सानदायक ही नहीं है ,…अपने सच्चे अधिकारों का लोभ उचित है ,…सर्वहितकारी लोभ सर्वथा उचित है ,..
लेख लंबा हो रहा है ,. विषय बहुत व्यापक है ,….अब निपटाते हैं ..
सब अवगुण अमर्यादा और असंयम से उपजते हैं ,……धर्म ही सही राह दिखाता है ,.इसे अपनाना होगा !….रावण आज अपराजेय है तो इसका कारण यही है कि हमने राम की मान्यता कम कर दी है ,..रावण दिमाग पर छाया है राम अंतर्मन में सोये हैं ,…..काम क्रोध मद लोभ मोह बुराई और पापों के जनक हैं ,..लेकिन यदि संयमित किया जाय और इनको व्यापकता अपनाई जाय तो निःसंदेह लाभकारी भी होंगे ,…यहाँ संयमित और व्यापकता के विपरीत अर्थ नहीं निकालने चाहिए ,…..निज हित में संयम !….सर्वहित में व्यापक !….दुनिया बहुत सीधे सिद्धांत पर चलती है ,….धन ऋण बराबर है ,..जितना अपने आनंद के लिए भागेंगे उतना कष्ट मिलने की उम्मीद रहती है ,…जितना दूसरों को आनंद देंगे उतना मिलने की सम्भावनाये बढ़ती हैं ,…काम की अधिकता अतृप्ति के दुःख का कारण बनती है ,…क्रोध स्वयं को जलाता है ,..यदि यह बुराई पर हो तो शायद लाभकारी होगा ,….निज लोभ से पाप होते हैं ,..लेकिन यदि सर्वहित का हो तो पुण्य है ,..मद सब विकारों का बीज है लेकिन यदि भगवतभक्ति का है तो सर्व पापनाशक हो सकता है ,…अंत में प्रबल विश्चास से कहता हूँ कि राम ही हमारा उद्धार करेंगे ,…समस्त बुराइओं का शमन रामनाम को अंगीकार करने से ही होगा ……छोडिये न काम बिसारिये न राम को !…..राम को नहीं बिसारेंगे तो गलत होने की संभावना कम होगी ,..काम करते रहेंगे तो परिणाम भी अवश्य मिलेगा !…..सुख का मूल सभी भावनाओं के संयमित योग से मध्यमार्ग में है .
..अंत में यथा राजा तथा प्रजा !….लंबी गुलामी के अनैतिक राज में हमारी पीढियां कहीं न कहीं अनैतिकता की पालक भी बनी ,…अधर्मी शक्तियों के सामने घुटने टेकने से धर्म का क्षरण हुआ है ,..सच्चाई और साहस से लड़ने वाले मोक्ष प्राप्त कर गए ! …संसाधनों की कमी से उपजे आपसी संघर्षों में हम निजवादी हो गए ,…हम संकुचित होकर अपने तक सीमित हो गये है ,…प्रबल दुर्भाग्य यह है कि लोकतंत्र के पैंसठ सालों में भी हम खानदानी राजशाही व्यवस्था के अनुरूप ही व्यवहार करते आ रहे हैं ,..हम खंडित और शक्तिहीन राजा हैं ,…अपनी शक्ति ही नहीं ज्ञात है ….आवश्यकता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपना सामर्थ्य अधिकार और कर्तव्य समझे ,…लुटेरों एकजुट होकर लुटेरों के जाल को तोड़े !… अपना राज दायित्व निभाए ,.राजा भगवान का प्रतिनिधि होता है ,..हम भगवान के प्रतिनिधि की तरह अपने योग्य प्रतिनिधि को पूरी ईमानदारी से चुने ,…बुराइयों की परम्परा मिलकर रोकनी होगी ,..सच्चाई और धर्म की विजय से सब सुख और शान्ति मिलेगी …राम ही सदैव विजयी होंगे ,…रावण की अपराजेयता तात्कालिक है !….भ्रष्टाचारी ,अत्याचारी,अनाचारी सदा दुखी रहेगा ..उसकी आने वाली पीढियां भी भयानक कष्टों का भोग करेगी जो उनके अत्याचारी पूर्वज भी हो सकते हैं .
..वैसे नितांत मूरख प्रवचन की मुद्रा दिखाए तो हंसी आना लाजिमी है ,…तो दिल खोलकर हंसिये ,…लेकिन रावण की तरह क्रोध और अहंकारी अट्टहास नहीं ,….राम की तरह क्षमाशील विनम्रता से ,…देखिये आनंद आता है कि नहीं ,..बताइयेगा जरूर ……सत्यमेव जयते !!!
वन्देमातरम !
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