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पितृ विसर्जन !!

हमार देश
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मालविका उठी तो नौ बजे थे  ,..नीरज अभी नींद में था ,…बाहर रिंकू खड़ा मिला ,..”.गुड मार्निंग बेटा !”…कहकर वो सवाली नजर से रिंकू को देखने लगी ,..रिंकू ने कहा

“..आज संडे है माम ,..मुझे दादाजी के पास जाना है ,..आपने प्रोमिस किया था !..”

“..हाँ बेटा याद है,…. लेकिन इतनी जल्दी क्या है, अभी बहादुर भी नहीं आया होगा !..”

“..वो नीचे खड़े है ,..बस आपको बोलना था ,..पापा से कह देना !..”…….कहते हुए रिंकू बाहर निकल गया ,.. मालविका झल्लाते हुए बुदबुदाई …….

.”.. रुआब देखो साहब का ,.माँ बाप को पता नहीं क्या समझते है ….हम इनके लिए दिनरात लगे रहते हैं !..”…………मालविका रसोई में घुस गयी ,..आज बाई भी छुट्टी पर है ,….

उधर रिंकू ने रास्ते में रसगुल्ले लिए !… सुन्दर सा गुलदस्ता खरीदा ,…… पौने घंटे बाद कार एक वृद्धाश्रम के सामने रुक गयी ,…रिंकू अंदर जाने लगा ,…रूककर बहादुर से बोला  …..”..पांच बजे से पहले मत आना !..”…..

घुसते ही रिंकू चिल्लाया ..”.दा ….दू !”

लान में बैठे बुजुर्ग इमारत की तरफ लपके ….”..ओ माखन तुम्हारा पोता आया है !..”

सुनकर माखनलाल बाहर लपके ,…..दरवाजे पर दादा पोते का मिलन हो गया ,….माखनलाल के चेहरे पर करुण खुशी और आँखों में वात्सल्य उफन पड़ा ,…रिंकू ने पैर छूना चाहा तो उन्होंने भींचकर सीने से लगा लिया ,…एक घुटना जमीन पर टिकाये माखन अपने कन्हैया से लिपट गए ,….घेरे खड़े बुजुर्गों की आँखें भी नम हो गयी ..”…अरे वाह ,.. मिठाई भी लाया है !…चलो अब भरतमिलाप बंद करो !..”…………..एक बुजुर्ग महिला ने रिंकू से मिठाईवाला डब्बा लेकर चुहल की ,..रिंकू ने डिब्बा वापस ले लिया ,….सब हँसने लगे ,… रिंकू ने पहले अपने दादाजी को रसगुल्ला खिलाया ,.फिर डिब्बा उन्ही बुजुर्ग को वापस दे दिया ,…उन्होंने सबको बांटा …

“… मेरा मीठा फूल आ गया तो मिठाई और फूल की क्या जरूरत थी !..”……भावुक माखन शिकायती लहजे में बोले  ..

वृद्धाश्रम में पूजा जैसी तैयारी दिखी ,…  मानव और श्रद्धा पकवान बनाने में व्यस्त थे ,…..दो बुजुर्ग महिलायें सहायता कर रही थी ,…रिंकू ने आश्चर्य से देखा तो माखनलाल बोले .

“..आज हम श्राद्ध करेंगे !..”

“.. श्राद्ध क्या होता है ? “…………रिंकू ने विस्मित होकर पूछा

“..अभी देख लेना !… चलो तुमसे बहुत बातें करनी हैं !..”……माखनलाल ने रिंकू को कमरे की तरफ खींचा …

“..नीरज और तुम्हारी माँ कैसे है ?..”………….अंदर गुस्ते ही माखनलाल ने भावुकता से पूछा .

“.. ठीक हैं !….पापा संडे को मिलते हैं ,..देर से आते हैं ,..माम आठ बजे आती हैं ,…कभी कभी दोनों जमकर लड़ते हैं ,.मैं सोता रहता हूँ ,…कौन नींद खराब करे !..”…….लापरवाह जबाब से माखनलाल पीड़ा से बोले

“.ऐसा नहीं बोलते बेटा ,…वो तुम्हारे माँ बाप है !..”

“..आप भी तो उनके बाप हैं !!..”…….रिंकू के सपाट उत्तर से माखनलाल निःशब्द हो गए.

फिर दोनों में घर, स्कूल ,खेलकूद ,.यार-दोस्त,..सब बातें हुई ,………थोड़ी देर बाद पंडितजी के आने की सूचना मिली

श्राद्ध की तैयारी हो चुकी थी ,…. सब कतार में बैठ गए ,….उनके सामने पंडितजी ने आसन लगाया ,…रिंकू एक तरफ खड़ा होकर देखने लगा ,…सबने कुश की अंगूठी पहनी …फिर कुश जल और कुछ सामग्री हाथ में रखवाकर पंडित जी ने मंत्रोच्चार किया ,…सबसे पूर्वजों को याद करने को कहा ,.सबने श्रद्धा भाव से क्रिया पूरी की ,….फिर आग जलाई गयी ,.. थोड़ी पूड़ी खीर मिलाकर सबने होम किया ,…सबकी आँखें श्रद्धा में नम हुई  ,…..  जाकिर दादा कर्मकांड से अलग होकर भी भावुक हो गए ,… उठता धुंवा लहरदार शक्ल लेकर विलीन होता रहा ,… पंडितजी ने पकवानों को छत पर रखने को कहा ,…यह कौवे पंक्षियो का हिस्सा था ,…गौ ग्रास भी निकाला गया !…..फिर पंडितजी के भोजन की बारी आई  ,…रिंकू को अनायास हंसी आने लगी ,..शायद पंडितजी के खूब खाने की कहानी पढ़ी सुनी होगी ! ..लेकिन पंडितजी ने एक कचौरी और थोड़ी खीर ही ली ! ,… उन्होंने बताया कि चार जगह खाकर आ रहा हूँ ,.. पांच जगह और जाना है !….सबने दक्षिणा देकर पंडित जी से आशीर्वाद लिया ,..पंडित जी के जाने के बाद सबके खाने की बारी थी ,…खा पीकर माखनलाल श्रद्धा और चार बुजुर्गों के साथ रिंकू पास के मंदिर चला गया ,….श्रद्धा सब पकवान साथ लायी थी ,..वहां बैठे भिखारिओं में सब बांट दिया ,…उनको देखकर रिंकू परेशान लगा .

… सबने दर्शन किया ,.फिर प्रसाद लेकर बरामदे में बैठ गए ,..रिंकू के बालमन में सवाल भरते जा रहे थे ,…..उसने असमंजस से पूछा .

“..दादू माम कहती हैं कि भगवान वगवान कुछ नहीं  है ,…होता तो दुःख तकलीफ क्यों होती !..” … माखनलाल से पहले श्रद्धा बोल पड़ी .

“..दुनिया में भगवान ही हैं रिंकू !….ये दुनिया उनकी है और वो दुनिया के हैं !….अगर भगवान नहीं है तो दुनिया भी नहीं होती ,…बिना माँ बाप के औलाद नहीं होती ,…. अमीरी गरीबी सुख दुःख सब हमारे कर्म से हैं …..अपना हक छोड़कर दूसरों का छीनेंगे तो कंगाली ही रहेगी !”

“..लेकिन इन्होने भगवान का क्या बिगाड़ा है !..”…..रिंकू भिखारिओं की तरफ इशारा करते हुए बोला .

“..कोई भगवान का कुछ नहीं बिगाड़ सकता बेटा !….क्या पता इन लोगों ने पिछले जन्म में कोई पाप किया हो ,..किसी का हक लिया हो !…किसी को सताया हो !……..लेकिन हमको किसी से घृणा नहीं करनी चाहिए ,..इनके अंदर भी भगवान हैं ,…वो भी इनके साथ कष्ट भोगते हैं ,.तभी वो दीन दुखियों की सेवा से प्रसन्न होते हैं ,…वो कहते हैं कि सच्चे कर्म करो अच्छा फल लो ,..सब उनकी ही महिमा है !….तू ही दाता –तू ही दीन –तू ही दीनानाथ ! ”………..एक बुजुर्ग ने समझाने का प्रयास किया  ….फिर सब वापस आ गए ,……..बातों में पता चला कि मानव और श्रद्धा अक्सर यहाँ आते हैं ,..उनके माँ बाप नहीं हैं !………खाना खाने के बाद सब सुस्ताने लगे ,..मानव रिंकू और माखनलाल लान की एक बेंच पर बैठ गए .

“..दादू !…..कोई भगवान को मानता है कोई नहीं!..कोई रोज मंदिर जाता है कोई कभी नहीं जाता ,…कोई माँ बाप के लिए रोता है तो कोई  घर से दूर करता है ,…कोई भीख मांगता है कोई देता है ,….आप पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते है ,..और आपको .!!.”……..रिंकू के मन में प्रश्न घुमड़ रहे थे ,…माखनलाल अपने बारह साल के पोते पर मुग्ध हो गए ,…..मानव ने रिंकू को समझाते हुए कहा .

“..रिंकू दुनिया गोल है ,.हर चीज में भगवान का अंश है ,….भगवान ने सबके लिए नियम बना दिया ,..जो जैसा करेगा वैसा भरेगा ,.आत्मा अमर और साफ़ है लेकिन उसपर हमारी सोच गन्दगी की तरह जम जाती हैं ,..हम अपने लालच से खुद पाप करते हैं ,..भगवान को भूलकर खुद को भी भूल जाते हैं ,..फिर पाप और फल का सिलसिला जन्म जन्मांतर तक चलता है ,…पहले सब सच्चे और सुखी थे ,…..फिर पाप बढ़ने लगे तो दुःख भी बढ़ने लगे ,..अब चारों तरफ पाप और दुःख का समुन्दर है ,…हम जितना बुरा काम करेंगे उतना ही दुःख मिलेगा ,..देर सबेर कर्मफल जरूर मिलता है  ,… भिखारी अगले जन्म में राजा हो सकता है ,..और राजा अगले जन्म में भिखारी,….भगवान की कृपा से एक जन्म में दोनों भी हो सकते हैं ,..पूजा-पाठ, व्रत-जप, मंदिर दर्शन होता है कि इंसान प्रेरणा लेकर अपने सद्गुण बढाए !……तब उनकी कृपा मिलती है ,…..  निराशा में वही सहारा बनते हैं ,…. इंसान को दुखाने वाले की पूजा भगवान नहीं लेते हैं,….अन्यायी के साथ उसके आगे झुकने वाले को भी भगवान दंड देते हैं ………….भगवान को न मानने वाले भी एकदिन उसकी शरण में जाते हैं ……उनकी भक्ति से क्या नहीं मिलता ,..दुःख भी हवा के झोंके की तरह लगते हैं !..”…….मानव की बात रिंकू शायद समझ नहीं पाया .

“.हम श्राद्ध क्यों करते हैं ?..”………………..मानव फिर बोला

“..हम अपने माँ बाप के बनाये हैं ,.वही हमको पालते पोषते हैं ,… दुनिया में वो पहले भगवान हैं ,..उनके माँ बाप उनके भगवान थे ,…साल में एक बार अपने पूर्वजों को हम श्रद्धा से याद करते हैं,.उनके अनेकों त्यागों का धन्यवाद करते हैं ,…. सनातन परम्परा से तर्पण करते हैं ,..ये हमारे ऋषि मुनियों के बताए रास्ते हैं ,…पितर देव खुश होते है तो हमें आशीर्वाद देते है !..”

“..हे भगवान !………..कितने भगवान !!,.. पंडितजी को क्यों खिलाते है !…उनको भूख भी नहीं होती फिर भी !!..”……रिंकू ने फिर मासूमियत से पूछा ,..इस बार माखन लाल बोले

“..बेटा ,..सब भगवान ही तो हैं ,…सबमें उनका अंश है तो सब वही हुए !….और पहले पंडित का धन केवल विद्या थी ,.. उनको खिलाने से बहुत पुण्य होता था ,..अब परम्परा बन गयी है ,…किसी भूखे को खिलाने से पुण्य ही होता है ,..कर्मकांड विधि से हों तो ज्यादा फल देते हैं ,…अब पूरी विधि नहीं कर पाते है तो श्रद्धा भाव से जितना हो जाय बहुत है ,….भाव के भूखे हैं भगवान !…अगर पंडित जी नहीं आते तो भी करते ,.आ गए तो अच्छा हो गया !……”

“.. दादू !..आपने क्या पाप किये जो -…… !..”………… बात पूरी होने से पहले ही माखनलाल के चेहरे पर दर्द का तूफ़ान उमड़ आया ,…..रिंकू सहम गया !………..मानव स्तब्ध हो गया ….कुछ संभलते हुए माखन ने बोलना शुरू किया ,..

“..बेटा पता नहीं कितने पाप किये हैं ,……इस जन्म में सरकारी नौकर था ,..हमेशा बच्चों की सुख सुविधा देखी ,.. माँ-बाप की शिक्षा भूलकर माया में उलझ गया !…फाइलों से आते पैसे को अपना हक समझा ,..पता नहीं कितनों का गुनाहगार हूँ ,..तभी कठोर सजा मिल रही है !..”………….फफककर माखनलाल ने सिर झुका लिया ,..मानव और रिंकू ने भरसक सांत्वना दी ,..बहुत देर बाद वो शांत हुए ,…तो रिंकू को सीने से लगाकर बोले

“..बेटा तुम जैसे हो वैसे सच्चे रहना !…”…………

“..दादू ,.. पाप और दंड का सिलसिला कैसे बंद होगा ?..”…………..प्रश्न का उत्तर नहीं था ,… बहादुर आ गया था ,…रिंकू ने दादू के पैर छूकर आशीर्वाद लिया ,..सबसे विदा ली ,…जाते समय मानव बोला .

“..रिंकू ये सिलसिला बंद हो सकता है अगर हम सबमें खुद को देंखें ,….अपने आराध्य को इतना बड़ा बनाएँ कि सब उसी में दिखें ,……जितना सम्मान अपना करते हैं उतना सबका करने लगे तो सब ठीक हो जाएगा ,…सच्चे प्रायश्चित से भगवान पिछले जन्म का पाप भी माफ करेंगे ,…लेकिन हमारी आँख दूसरों को ही देखती है ,..खुद को नहीं !..”…………………..रिंकू भरे मन से घर आ गया ,..रास्ते भर वो सोचता ही रहा ..

घर पहुंचकर माँ ने हाल चाल पूछा ,..अनमने ढंग से उसने सब बताया ,….फिर पूछा …

”….आपलोग दादू को यहाँ क्यों नहीं रखते हैं !…”

“..बेटे,.. उनको भी यहाँ रहना चाहिए,.लेकिन हम मजबूर हैं ,..दोनों कमाते हैं ,…बाबूजी सनकी हैं ,.हमारी कोई बात उनको अच्छी नहीं लगती है ,…चलो तुम मिल आया करो उनसे वो वहां भी खुश हैं !.”…….नीरज ने सफाई दी ..

“..पापा ,..जब मैं रात में शराब पीकर आऊँगा तो आप सनकी नहीं होंगे !……आपको माँ बाप से प्यार की जगह आया की परवरिश मिलती तो समझते !……”……… नीरज मालविका की आँखें लाल हो गयी ,….रिंकू चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गया ,…दोनों में से कोई उसके पास नहीं आया !……रात में नीरज मालविका से कह रहे थे ,…कल बहादुर से सामान माँगा लेना ,.पितृ विसर्जन करवाना है ,…ज्योतिषी ने पितृ दोष बताया है तभी दो साल से प्रमोशन नहीं मिला ,….अगर न मिला तो बहुत मुसीबत बढ़ेगी ! …………..रिंकू से रहा न गया ,…..उनके करीब जाकर बोला .

“..पापा ,…आप सच में पितृ दोषी हैं ,.आपकी पूजा फल नहीं देगी ,….फ़्लैट क्या करेंगे,.. किसी वृद्धाश्रम में बुकिंग करवा लीजिए !….”……………दोनों खा जाने वाली नजरों से रिंकू को घूरने लगे ,..वो फिर बोला

“..पापा,…. आपने अपने भगवान को घर से बाहर निकाला है ,..जैसी करनी वैसी भरनी होगी ,..आज दादू वृद्धाश्रम में हैं ,…कल आपको जाना होगा ,.. आप मेरे लिए करते हैं तो बंद कीजिये ..मुझे सिर्फ दादू चाहिए !…”…………….रिंकू की सच्ची भावनाओं से दोनों की आत्मा चीख उठी !… नीरज ने रिंकू को गोद में उठाकर भरे गले से कहा !…………….बाबूजी को अभी लेने चलें !!….रिंकू खुशी से छिटककर उछलने कूदने लगा ,….दोनों उसकी खुशी देखकर निहाल हो गए ,……रात के बारह बजे ,..तीनो आश्रम पहुंचे ,…चौकीदार ने सुबह आने को कहा ,…. वो वहीँ बैठकर सुबह की प्रतीक्षा करने लगे …..इति

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