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वेश्यावृत्ति पर कानून …एक दोधारी तलवार (Jagran junction forum)

हमार देश
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सभी आदरणीय ब्लागरों को मेरा प्रणाम ,.. इस ज्वलंत मुद्दे पर विचार रखने के काबिल ना होते हुए भी मैं लिखने का दुस्साहस कर रहा हूँ ,..कहीं कोई गलती या असहमति होने पर मैं क्षमा मांगता हूँ ,..आप सभी सह्रदय हैं ,.अवश्य ही क्षमा करेंगे,..एक विनती और है,. कृपया पूरा पढ़ें जरूर ,..लेख थोडा लम्बा हो सकता है, लेकिन आपका स्नेह भी गहरा है ,.
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वेश्यावृत्ति एक सामाजिक अपराध तो है ही लेकिन वर्तमान हालात में इसे सामजिक बीमारी का नाम दिया जा सकता है ,..आज कल जिस तरह से झुग्गी झोपड़ी से लेकर पांच सितारा होटलों तक यह मोटे मुनाफे का धंधा चल रहा है ,.हमारे समाज के लिए बहुत घातक है ,..खैर मैं इसमें शामिल दलालों , पुलिस वालों ,अधिकारिओं ,नेताओं की बात ना कर केवल इसमे शामिल महिलाओं की ही बात करूंगा ..
सबसे पहले मैं आदरणीय अशोक जी के एक वाक्य का उल्लेख करूंगा ,..” कोई भी नारी इस धंधे में स्वेच्छा से नहीं आ सकती “..मैं इससे काफी हद तक सहमत हूँ,लेकिन पूरा सहमत नहीं हूँ ,.इसके दो कारण हैं —

१- कोई भी नारी होने से पहले मानव है ,.यही समानता नारी पुरुष को एकसाथ बांधे हुए है ,..अतः मानवीय दुर्गुण नारिओं में होना कोई बड़ी बात नहीं है ,.स्वाभाविक ही है ..

२-स्वेच्छा से पहले मैं इच्छा को रखूंगा ,..और यह अटल सत्य है कि आज हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हो गए हैं
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औरतें कई कारणों से इस गंदे धंधे में आ जाती हैं ,.मुख्य कारण जो मेरी समझ में आते हैं ,.

१-जबरन – लालची भेडिये मासूम बच्चों ,महिलाओं को उनकी गरीबी का फायदा उठाकर ,मीठे सपने दिखा पिछड़े इलाकों से महानगर लाकर उनका सौदा कर देते हैं ,.फिर उस गरीब के पास कोई रास्ता नहीं बचता है ,..और घुट-घुट कर रोज मरना ही उसकी नियति बन जाती है ,..यह सबसे घोर अपराध है ,.

२-मजबूरीवश – कई लोग अपने सामने कोई अन्य रास्ता ना देख इसको अपना लेते हैं ,..यह एक बड़ी सामजिक समस्या है जिसको व्यापक दृष्टि से देखना जरूरी है ,…मजबूरी कई तरह की हो सकती है ,.पेट के भूख की ,.अपनो के इलाज की ,…नशों की ,…..जेब खर्च की ,……आदि ,………लेकिन यहाँ पर एक बात कहना बहुत जरूरी है कि ..भगवान सभी रास्ते कभी नहीं बंद करता ,…..जो लोग मजबूरीवश इस पेशे में आ गए हैं वो कभी न कभी जरूर सोचते होंगे कि एक और अन्य प्रयास किया होता तो शायद बच सकती थी ..

३- लालचवश – इंसानी फितरत में लालच सबसे खतरनाक चीज है ,…तमाम लोग ज्यादा पाने की चाह में इसमें आ जाती होंगे …कई पढीलिखी और संभ्रांत महिलाएं सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इसको अपनाती हैं ,..कुछ मौज-मस्ती के लिए भी ….यह हमारे नैतिक पतन की पराकाष्ठा है,..
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अब दूसरी बात करते हैं ,...कई सम्मानीय ब्लागरों ने वेश्यावृत्ति पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने का विचार दिया है ,....मैं इससे असहमत हूँ ,.यह किसी हालत में व्यवहारिक नहीं है ..
सिर्फ दो तरीकों से यह संभव है ,.
१- पंचांग में कलियुग की जगह सतयुग लिखा हो
२-तानाशाही में भी संभव हो सकता है ,.लेकिन इसके दुष्परिणाम अपेक्षाकृत ज्यादा हो सकते हैं ....मैं थोडा स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ ..
कामपीड़ित हर व्यक्ति होता है ,.. और अब कोई योगी,ध्यानी भी नहीं है..अतः समाज में अवैध सम्बन्ध ,बलात्कार ,अपहरण ,हत्या जैसे अपराध और ज्यादा बढ़ सकते हैं..(वैसे भी कहाँ कम हैं ) …हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि महिलाएं पुरुषों से काफी कम हैं ,…..
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अब अगली बात करते हैं ,.कानून बनाने की ,…..यह सबसे गंभीर सवाल है ,...कानून बनाना जरूरी है,. लेकिन सवाल केवल वैधता का नहीं होना चाहिए ..
कानून को दोतरफा होना चाहिए ,..

१-पंजीकृत यौनकर्मिओं को पूरा सम्मान ,पहचान ,और उनकी समस्याओं का समाधान मिले ….
२-गली मोहल्लों में पनपती बीमारी को हर हालत में रोका जाये और उनके लिए कठोर दंड हो …

……………..इससे यौन कर्मिओं के शोषण पर लगाम लगेगी ,..कठोर कानून से जबरन वेश्या बनाने वाले भेडिओं में भी डर पैदा होगा ,…..मजबूरी में इसको अपनाने वाली औरतों के लिए भी यह राह चुननी कठिन होगी (अभी बहुत सरल है )…..सामजिक पतन पर भी रोक लग सकती है ..नैतिकता व्यक्तिगत होती है ,इसमे कानून कुछ नहीं कर सकता है,..लेकिन भय बड़ी चीज है जिसका होना जरूरी है ,…

कुछ आशंकाएं और भी हैं ,.जैसे वेश्यावृत्ति को सही मानना इसको बढ़ावा देना होगा ,…इसीलिए मैं कहता हूँ ,.इस क़ानून को दोधारी तलवार होना चाहिए ,.जो वेश्यावृत्ति को एक जरूरत मानते हुए भी इस पर लगाम लगाने में सक्षम भी हो ,……. यह इसलिए और ज्यादा जरूरी है क्योंकि एड्स जैसी बीमारीओं को महामारी बनने से रोकना ही होगा ..अन्यथा ???
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सबसे जरूरी बात जो मैं कहना चाहता हूँ कि ,….बिना सामजिक ,नैतिक ,आध्यात्मिक जनजागरण के इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है ,.कुल मिलाकर समाज यदि अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझ ले तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है ,और समाज को अपनी चिंता से ही मुक्ति नहीं है ,..हमारे नेता तो खुद ही अनैतिक अभिलाषाओं के गुलाम हैं ,…..व्यवस्था परिवर्तन भी आवश्यक है ….
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मैं पुनः निवेदन करता हूँ कि ,.शुरू में यह लेख मैं लिखना नहीं चाहता था,..लेकिन इस बड़ी समस्या पर अपने विचार ना रखकर मैं अपने ब्लाग के नाम के साथ अन्याय करता …
किसी को भी मेरे विचारों से जरा भी तकलीफ हुई हो तो मैं करबद्ध होकर क्षमा मांगता हूँ ,…..सभी सम्मानीय लेखकों/पाठकों से विशेष विनती है ,.कृपया अपने विचारों से अवगत जरूर कराएँ ,…धन्यवाद
संतोष कुमार

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