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अल्पवयस्क युवाओं की पार्टी चल रही है , एक लड़का शराब पीने से इंकार करता है तो उसके साथी उसे मनाते हुए कहते हैं ,… “पी ले ना यार – धोनी भी पीता है ” और धोनी को रोल माडल मानने वाला लड़का तुरंत जाम होंठो से लगा लेता है ,.. यह काल्पनिक घटना सच्चाई के कितना करीब है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम नहीं है /
पिछले दिनों में भज्जी – धोनी की शराबी जंग सबने देखी , डमी बेइज्जती से आहत हरभजन का परिवार तुरंत कानून की शरण में चला गया और कंपनी ने विज्ञापन हटाना ही मुनासिब समझा ,लेकिन क्या किसी ने एक पल के लिए सोचा कि,
करोड़ों युवाओं के रोल माडल ये खिलाडी आखिर शराब का विज्ञापन करते ही क्यों हैं ?
पैसे के ढेर पर बैठे खिलाड़ी अपनी सामजिक जिम्मेदारी और नैतिकता क्यों भूल गए हैं ?
लगभग सभी खिलाडी सचिन तेंदुलकर (जिन्होंने एक शराब कंपनी की करोडो की पेशकश ठुकरा दी थी ) को अपना आदर्श मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं , क्या यह सम्मान दिखावा मात्र नहीं है ?
क्या खिलाडिओं को शराब के दुष्प्रभाव के बारे में नहीं पता है ?
आज पांच साल से ऊपर के करोंडो बच्चे किसी ना किसी क्रिकेटर को अपना आदर्श मानते हैं और उनका बालमन उनकी नक़ल करने को लालायित होता है तो क्या ये खिलाडी आने वाली पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेलना चाहते हैं ?
कहा जा सकता है कि किसी को इस बारे में दिशानिर्देश देना उचित नहीं है ,लेकिन खिलाडी देश का प्रतिनिधि होता है और इस नाते उसकी जिम्मेदारी बनती है ,जिससे दूर भागना समाज के लिए ठीक नहीं है / संभव है कि खिलाडिओं को इतना सोचने की फुर्सत न हो लेकिन उनकी छवि को लेकर सदैव सतर्क रहने वाले परिवार के लोगों को उनकी सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिकता का अहसास दिलाना ही चाहिए नहीं तो कल को कोई १२ साल का लड़का सड़क पर टुन्न होकर गाता मिल सकता है ,…. “किरकेट बदनाम हुआ — माल्या तेरे लिए ”
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